इस समय देश के हर व्यक्ति पर करीब 4.8 करोड़ का कर्ज है। 2014 में देश पर करीब 49 लाख करोड़ का कर्ज था जो अब बढ़कर 185.94 लाख करोड़ हो गया है। कर्ज के यह आंकड़े राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में आये हैं। व्यापार में आयात लगातार बढ़ रहा है और निर्यात कम होता जा रहा है। रूपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर होता जा रहा है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि डॉलर की कीमत 100 रूपये तक जा सकती है। आर्थिकी के यह आंकड़े किसी को भी विचलित कर सकते हैं क्योंकि बढ़ता कर्ज हर अनुमान को तहस-नहस कर सकता है। इसी बढ़ते कर्ज का परिणाम है कि महंगाई और बेरोजगारी लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन क्या देश की सरकार इसके प्रति चिंतित है? क्या सरकारी ईमानदारी से इस समस्या को हल करने का प्रयास कर रही है? बढ़ते कर्ज, महंगाई और बेरोजगारी का अंतिम परिणाम क्या होगा? पिछले दस वर्षों में कर्ज में चार गुना से भी अधिक की बढ़ौतरी हुई है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह कर्ज कहां निवेश हो रहा है? क्योंकि इस अवधि में सरकार ने कोई नया सार्वजनिक उपक्रम तो स्थापित नहीं किया है उल्टे पहले से चले आ रहे संस्थानों को प्राइवेट सेक्टर के हवाले करने का ही काम किया है। विश्व की तीसरी, चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के जो सपने परोसे गये हैं क्या उसका परिणाम है यह बढ़ता कर्च? आर्थिकी के यह आंकड़े हर व्यक्ति के सामने रहने चाहिये क्योंकि इसी दौर में देश ने नोटबंदी भी भोगी है। इन्हीं आंकड़ों के आईने में सरकार के चुनावी वायदों को तोलना होगा। यह फैसला करना होगा कि एक सौ चालीस करोड़ के देश में अस्सी करोड़ लोगों की सरकारी राशन पर निर्भरता एक उपलब्धि है या अभिशाप। इसी परिदृश्य में यह समझना भी आवश्यक हो जाता है कि भ्रष्टाचार और काले धन के जिन आंकड़ों पर अन्ना और रामदेव के आन्दोलन हुये थे उनका व्यावहारिक सच क्या है? काले धन के आंकड़ों में बढ़ौतरी हुई है और जिस भी भ्रष्टाचारी पर जितने बड़े आरोप लगे वह भाजपा में शामिल होते ही पाक साफ हो गया। आज भाजपा खुद कांग्रेस युक्त हो गयी है। हर दल का बड़ा भ्रष्टाचारी भाजपा में शामिल होकर पाक साफ हो गया है। पिछले एक दशक में न्याय बुलडोजर जस्टिस तक पहुंच गया है। चुनावों में लगातार सफलता का श्रेय देश के चुनाव आयोग के नाम जाता है क्योंकि वोट चोरी के आरोपों ने यह सच देश के सामने पूरे प्रमाणिक दस्तावेजों के साथ परोस दिया है। वोट चोरी का आरोप आज हर आदमी की जुबान पर आ गया है। भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेस को अपने दम पर नेता प्रतिपक्ष के मुकाम तक पहुंचा दिया है। अब यह ‘‘वोट चोर गद्दी छोड़’’ कांग्रेस को और सशक्त बनाएगा यह तय है। लेकिन इसी वस्तुस्थिति में कांग्रेस को अपने ही भीतर बैठे भाजपा और दूसरे दलों के स्लीपर सैलों से सावधान रहने की आवश्यकता है। क्योंकि हर चुनाव के दौरान कांग्रेस का कोई न कोई नेता ऐसा ब्यान देता आया है जिसने पार्टी को अर्श से फर्श पर लाने का काम किया है। राहुल गांधी ने जब कांग्रेस के अन्दर बैठे स्लीपर सैलों को ललकारा था उन्हें अब सही में पार्टी से बाहर करने का समय आ गया है। आज के कांग्रेसियों को संघ के सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक चिन्तन के बारे में कोई बुनियादी जानकारी नहीं है। उन्हें संघ के चिन्तन की जानकारी देनी होगी। क्योंकि भाजपा का संघ के बिना कोई बुनियादी आधार ही नहीं है। यदि कांग्रेस यह नहीं कर पाती है तो देश और पार्टी दोनों के का ही बड़ा अहित होगा। कांग्रेस को संघ के चिन्तन को समझना होगा।