Tuesday, 16 December 2025
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भाजपा के राजनीतिक चरित्र पर उठते सवाल


जब सत्तारूढ़ सरकारें जनता का विश्वास खो देती हैं तब ऐसी स्थिति एक जनान्दोलन की शक्ल ले लेती है। किसी भी सरकार को परखने समझने के लिये दस वर्ष का समय बहुत होता है। क्योंकि इतने समय में उसकी वैचारिक समझ के बारे में पूरा खुलासा सामने आ जाता है। सरकार की वैचारिक समझ और नीयत पर जब कोई बुनियादी सवाल खड़े कर देता है और उन सवालों पर जब सरकारों की प्रतिक्रियाएं वैचारिक न रहकर केवल सतही हो जाती है तब अविश्वास और गहरा जाता है। आज देश में केन्द्र से लेकर राज्यों तक सभी सरकारें इस अविश्वास में घिर चुकी हैं। विपक्षी दलों की राज्य सरकारें केन्द्र पर उनके साथ असहयोगी भेदभाव बरतने का आरोप लगा रही हैं। केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा का तीसरा कार्यकाल चल रहा है और अधिकांश राज्यों में भाजपा की ही सरकारें हैं इसलिये भाजपा के राजनीतिक चरित्र पर चर्चा करना आवश्यक हो जाता है। भाजपा संघ परिवार की एक राजनीतिक इकाई है जो जनसंघ से जनता पार्टी में विलय के बाद 1980 में पैदा हुई। वैसे संघ परिवार के 1948 और 1949 में गठित हुए विद्यार्थी परिषद और हिन्दुस्तान समाचार एजैन्सी शायद सबसे पुराने अनुसांगिक संगठन हैं। केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार जनसंघ घटक के सदस्यों की आरएसएस के साथ भी सक्रियता रखने के कारण दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर टूटी थी। उसके बाद 1990 में वीपी सिंह सरकार में भाजपा भागीदार थी। लेकिन मण्डल आयोग की सिफारिशें केन्द्र द्वारा लागू करने के मुद्दे पर भाजपा की वीपी सिंह सरकार के विरोध में खड़ी हो गयी। मण्डल के विरोध में कमण्डल खड़ा हो गया। मण्डल आयोग के कारण अन्य पिछड़ा वर्ग को मिले 27% आरक्षण का विरोध कमण्डल आन्दोलन ने किया। अन्य पिछड़ा वर्ग को मिले आरक्षण के विरोध में खड़े हुए आन्दोलन में आत्मदाह तक हुए। शिमला में भी आत्मदाह की घटनाएं घटी हैं। परिणाम स्वरुप केन्द्र में सरकार गिर गयी। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में तीन बार भाजपा नीत सरकारें तेरह दिन तेरह माह और फिर एक टर्म के लिये बनी। 2004 से 2014 तक केन्द्र में डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार दो टर्म के लिये रही।

डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ भाजपा/संघ प्रायोजित अन्ना और रामदेव के आन्दोलन आये। इन आन्दोलनों में भ्रष्टाचार और काले धन के भरोसे गये आंकड़ों ने आग में घी का काम किया। 2G स्पेक्ट्रम पर सीएजी विनोद राय की रिपोर्ट आयी जिसमें 1,76,000 करोड़ का घपला होने का आरोप लगा। इसी के साथ कॉमनवेल्थ गेम्स का मुद्दा जुड़ गया। बाबा रामदेव ने काले धन के लाखों करोड़ के आंकड़े परोसे। लोकपाल की मांग इस आन्दोलन की केन्द्रीय मांग बन गयी। भ्रष्टाचार और काले धन के आंकड़े के प्रचार प्रसार में केन्द्र में सरकार बदल गयी। 2014 में कांग्रेस और अन्य दलों से बड़ी संख्या में नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया। लेकिन भ्रष्टाचार और काले धन के आरोपों पर क्या जांच हुई यह आज तक सामने नहीं आया है। जबकि विनोद राय का अदालत में यह बयान सामने आया है कि उन्हे गणना करने में चूक हो गई थी और कोई खपला नहीं हुआ है। कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन में हुये घपलेे के आरोप में भी क्लीन चिट मिल गयी है। काले धन का आंकड़ा पहले से दो गुना हो गया है। लोकपाल में भ्रष्टाचार का कोई बड़ा मामला गया हो ऐसा भी कुछ सामने नहीं आया है।
इस सरकार ने 2014 और 2019 के चुनाव में जो वायदे किये थे वह कितने पूर्व हुये हैं? दो करोड़ युवाओं को प्रतिवर्ष नौकरी देने का वायदा कितना पूरा हुआ है? महंगाई 2014 के मुकाबले आज कहां खड़ी है? इसका कोई जवाब नहीं आ रहा है। जबकि देश में इन दस वर्षों में दो बार नोटबन्दी हो चुकी है। सरकार ने सभी कमाई वाले सार्वजनिक उपक्रमों को प्राइवेट सैक्टर को थमा दिया है। इस सरकार ने कोई बड़ा संस्थान खोला हो ऐसी कोई जानकारी सामने नहीं है। आज रुपया डॉलर के मुकाबले सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है जबकि कर्जदारों की सूची में भारत विश्व बैंक में पहले स्थान पर पहुंच गया है। आज देश को हिन्दू-मुस्लिम के मतभेद और ई.डी. सी.बी.आई. और आयकर जैसी एजैन्सियों के डर से चलाया जा रहा है। जिस लोकप्रिय मतदान से इस सरकार के बनने का दावा आज तक किया जाता रहा है उस दावे की हवा राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों ने पूरी तरह से निकाल दी है। आज प्रधानमंत्री स्वयं व्यक्तिगत आरोपों में घिरते जा रहे हैं। पचहत्तर वर्ष पूरे होने पर स्व घोषित सिद्धांत पर भाजपा को ही पूर्ववरिष्ठ नेतृत्व जिस तर्ज में सवाल दागने लग गया है उसके परिणाम भयानक होंगे। इन्हीं कारणों सेे आज भाजपा अपना नया राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं चुन पा रही है। आज भाजपा के राजनीतिक चरित्र पर उठते सवाल उसके आकार से ही बड़े होते जा रहे हैं। इन सवालों से ज्यादा देर तक बच पाना आसान नहीं होगा।

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