

डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ भाजपा/संघ प्रायोजित अन्ना और रामदेव के आन्दोलन आये। इन आन्दोलनों में भ्रष्टाचार और काले धन के भरोसे गये आंकड़ों ने आग में घी का काम किया। 2G स्पेक्ट्रम पर सीएजी विनोद राय की रिपोर्ट आयी जिसमें 1,76,000 करोड़ का घपला होने का आरोप लगा। इसी के साथ कॉमनवेल्थ गेम्स का मुद्दा जुड़ गया। बाबा रामदेव ने काले धन के लाखों करोड़ के आंकड़े परोसे। लोकपाल की मांग इस आन्दोलन की केन्द्रीय मांग बन गयी। भ्रष्टाचार और काले धन के आंकड़े के प्रचार प्रसार में केन्द्र में सरकार बदल गयी। 2014 में कांग्रेस और अन्य दलों से बड़ी संख्या में नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया। लेकिन भ्रष्टाचार और काले धन के आरोपों पर क्या जांच हुई यह आज तक सामने नहीं आया है। जबकि विनोद राय का अदालत में यह बयान सामने आया है कि उन्हे गणना करने में चूक हो गई थी और कोई खपला नहीं हुआ है। कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन में हुये घपलेे के आरोप में भी क्लीन चिट मिल गयी है। काले धन का आंकड़ा पहले से दो गुना हो गया है। लोकपाल में भ्रष्टाचार का कोई बड़ा मामला गया हो ऐसा भी कुछ सामने नहीं आया है।
इस सरकार ने 2014 और 2019 के चुनाव में जो वायदे किये थे वह कितने पूर्व हुये हैं? दो करोड़ युवाओं को प्रतिवर्ष नौकरी देने का वायदा कितना पूरा हुआ है? महंगाई 2014 के मुकाबले आज कहां खड़ी है? इसका कोई जवाब नहीं आ रहा है। जबकि देश में इन दस वर्षों में दो बार नोटबन्दी हो चुकी है। सरकार ने सभी कमाई वाले सार्वजनिक उपक्रमों को प्राइवेट सैक्टर को थमा दिया है। इस सरकार ने कोई बड़ा संस्थान खोला हो ऐसी कोई जानकारी सामने नहीं है। आज रुपया डॉलर के मुकाबले सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है जबकि कर्जदारों की सूची में भारत विश्व बैंक में पहले स्थान पर पहुंच गया है। आज देश को हिन्दू-मुस्लिम के मतभेद और ई.डी. सी.बी.आई. और आयकर जैसी एजैन्सियों के डर से चलाया जा रहा है। जिस लोकप्रिय मतदान से इस सरकार के बनने का दावा आज तक किया जाता रहा है उस दावे की हवा राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों ने पूरी तरह से निकाल दी है। आज प्रधानमंत्री स्वयं व्यक्तिगत आरोपों में घिरते जा रहे हैं। पचहत्तर वर्ष पूरे होने पर स्व घोषित सिद्धांत पर भाजपा को ही पूर्ववरिष्ठ नेतृत्व जिस तर्ज में सवाल दागने लग गया है उसके परिणाम भयानक होंगे। इन्हीं कारणों सेे आज भाजपा अपना नया राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं चुन पा रही है। आज भाजपा के राजनीतिक चरित्र पर उठते सवाल उसके आकार से ही बड़े होते जा रहे हैं। इन सवालों से ज्यादा देर तक बच पाना आसान नहीं होगा।