Thursday, 18 September 2025
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जिम्मेदार तन्त्र की जवाबदेही तय होनी चाहिये

इस बार हिमाचल में बरसात ने जिस तरह का कर बरपाया है और उससे जो बुनियादी सवाल खड़े हुये हैं उन पर समय रहते गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। अन्यथा सर्वाेच्च न्यायालय की टिप्पणियां को घटते समय नहीं लगेगा। सर्वाेच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि यदि समय रहते सही कदम नहीं उठाये गये तो प्रदेश देश के मानचित्र से गायब हो जायेगा। सर्वाेच्च न्यायालय की इस चिन्ता के बाद एन.जी.टी. ने भी एक समाचार का संज्ञान लेते हुये टी.सी.पी., शहरी विकास, पर्यावरण विज्ञान एवं तकनीकी और क्लाइमेट चेंज, राज्य प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड तथा देहरादून स्थित पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को नोटिस जारी करके अनियन्त्रित निर्माणों पर उनके जवाब तलब किये हैं। यह चिन्ता और संज्ञान अपने में बहुत गंभीर है। सर्वाेच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद यह लगा था कि विधानसभा सत्र में समूचा सदन इस भविष्य के सवाल पर गंभीरता से चिन्तन करेगा। परन्तु ऐसा हो नहीं सका है। हमारे माननीय केवल केन्द्र से प्रदेश को आपदा ग्रस्त क्षेत्र घोषित करने के प्रस्ताव तक ही सीमित रहे हैं। एन.जी.टी. ने जिस तरह से सारे संबद्ध विभागों से जवाब तलब किया है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सारे विभाग कहीं न कहीं अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल रहे हैं। यह विभाग अपनी जिम्मेदारियां क्यों नहीं निभा पायें हैं? राजनीतिक दबाव कितना हावी रहा है यह स्थितियां अब स्पष्ट होने का वक्त आ गया है।
स्मरणीय है कि 1971 में किन्नौर में आये भूकंप का असर शिमला के लक्कड़ बाजार और रिज तक पड़ा था। लक्कड़ बाजार कितना धंस गया था यह आज भी देखा जा सकता है। रिज को संभालने का काम तब से आज तक चल रहा है और आज रिवाली मार्केट को खतरा पैदा हो गया है क्योंकि जिस तरह का निर्माण उस क्षेत्रा में चल रहा है यह उसका प्रभाव है। शिमला में अवैध निर्माणों को बहाल करने के लिये नौ बार रिटेंशन पॉलिसीयां लायी गयी। एन.जी.टी. में मामला गया था और एन.जी.टी. ने स्पष्ट निर्देश दिये थे की अढ़ाई मंजिल से ज्यादा का निर्माण नहीं किया जायेगा? यदि आज एन.जी.टी. के फैसले के बाद हुये निर्माणों की ही सही जानकारी ली जाये तो पता चल जायेगा कि इस फैसले का कितना पालन हुआ है। चंबा में रवि अपने मूल बहाव से 65 किलोमीटर गायब हो गयी है यह रिपोर्ट प्रदेश के तत्कालिक वरिष्ठ नौकरशाह अभय शुक्ला की है। प्रदेश उच्च न्यायालय को भी यह रिपोर्ट सौंपी गयी थी। लेकिन इस रिपोर्ट पर कितना अमल हुआ है? शायद कोई अमल नहीं हुआ है और आज चंबा में रवि के कारण हुआ नुकसान सबके सामने है।
इस बार जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई दशकों तक नहीं हो पायेगी। सरकार पहले ही कर्ज के आसरे चल रही हैं। बादल फटने की जितनी घटनाएं इस बार हुई है इतनी पहले कभी नहीं हुई हैं। यह घटनाएं उन क्षेत्रों में ज्यादा हुई हैं जो जल विद्युत परियोजनाओं के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। बहुत सारी परियोजनाएं स्वयं खतरे की जद़ में आ गयी हैं। इसलिये यह चिन्तन का विषय हो जाता है की क्या इस तरह की बड़ी परियोजनाएं प्रदेश हित में हैं। जल विद्युत परियोजनाएं, फोरलेन सड़कों का निर्माण और धार्मिक पर्यटन की अवधारणा क्या इस प्रदेश के लिये आवश्यक है? क्या यह प्रदेश बड़े उद्योगों के लिए सही है। जितना जान माल का नुकसान इस बार हुआ है उससे यह चर्चा उठ गयी है कि इस देवभूमि से देवता अब रूष्ट हो गई हैं। इस चर्चा को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। क्योंकि देव स्थलों को पर्यटन स्थल नहीं बनाया जा सकता।
एन.जी.टी. ने जितने विभागों से रिपोर्ट तलब की है उन सारे विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों से यह शपत पत्र लिये जाने चाहिये कि उन्होंने स्वयं निर्माण मानकों की अवहेलना तो नहीं की है। इसी के साथ शीर्ष प्रशासन और राजनेताओं से भी यह शपथ पत्र लिये जाने चाहिये कि उन्होंने मानकों की कितनी अवहेलना की है। क्योंकि जब तक जिम्मेदार लोगों को जवाब देह नहीं बनाया जायेगा तब तक यह विनाश नहीं रुकेगा।

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