Thursday, 18 September 2025
Blue Red Green
Home सम्पादकीय सरकार और मीडिया के रिश्तों पर उठते सवाल

ShareThis for Joomla!

सरकार और मीडिया के रिश्तों पर उठते सवाल

इस समय हिमाचल वित्तीय अस्थिरता के एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जिसका असर राजनीतिक स्थिरता पर भी पढ़ सकता है। अब तक के कार्यकाल में यह सरकार डेढ़ हजार करोड़ का ऋण प्रतिमाह ले चुकी है। वित्तीय कठिनाई की बात इस सरकार ने सत्ता संभालने के तुरन्त बाद ही प्रदेश की जनता के सामने भी रख दी थी। प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर यह सरकार श्वेत पत्र भी लायी है। इस श्वेत पत्र के माध्यम से वित्तीय संकट के लिए पूर्व सरकार को जिम्मेदार ठहराया गया। लेकिन कठिन वित्तीय स्थितियों के बीच जब इस सरकार ने पूर्व सरकार से हटकर छः मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां कर डाली। इसी के साथ सलाहकारों और विशेषाअधिकारियों की एक लम्बी लाइन खड़ी कर ली तो पहली बार सरकार की नियत और नीति पर शंकाएं ऊभरी। जब ऐसी नियुक्तियां कैबिनेट रैंक में होने लगी तो शंकाएं पख्ता होने लगी। विपक्ष ने आरटीआई के माध्यम से कर्ज के आंकड़े जुटाकर जनता के सामने रख दिये। सरकार का कौन सा खर्च वित्तीय समझ के दायरे से बाहर हो रहा है इसकी ठोस जानकारी सबसे पहले सचिवालय के गलियारों में चर्चा में आती है और उसके बाद मीडिया के माध्यम से जनता के पास पहुंचती है।
इस संद्धर्भ में इस सरकार का सबसे नाजुक सवाल चुनावों के दौरान जनता को बांटी गई गारन्टीयां हैं। इन गारन्टीयों को यथा घोषित रूप में पूरा कर पाना मौजूदा वित्तीय स्थिति में संभव ही नहीं है। इन मुद्दों पर शुरू में ही सवाल न उठ जाये इसके लिए व्यवस्था परिवर्तन का सूत्र लोगों को पिलाया गया। इसी सूत्र के प्रभाव तले लोकसभा चुनावों तक प्रशासन के हर स्तर पर तबादलों की संस्कृति पर अमल नहीं किया गया। जब प्रशासन को सरकार के भीतर का खोखलापन समझ आया तो। उसका परिणाम भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के रूप में सामने आया। वैसे भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के मामले में पूर्व सरकार का आचरण भी इस सरकार से कतई भिन्न नहीं रहा है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के दौरान पूर्व सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का एक आरोप पत्र सीधे जनता की अदालत में जारी किया था। वैसे पहले ऐसे आरोप पत्र हर विपक्ष सत्ता पक्ष के खिलाफ राजभवन को सौंपता रहा है। वैसे ऐसे आरोप पत्रों पर खुद सरकार में आकर कभी किसी ने कोई ठोस कारवाई नहीं की है। लेकिन जब कांग्रेस ने राज भवन का रूट न लेकर सीधे जनता का रूख किया था तब कुछ अलग उम्मीद बंधी थी जो सही साबित नहीं हुई। बल्कि इस सरकार ने इस संद्धर्भ में एक नई संस्कृति को जन्म दिया है।
इस सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार को लेकर जब पहला पत्र बम्ब वायरल हुआ था तब उस भ्रष्टाचार की कोई जांच करने के बजाये उस पत्र पर कुछ पत्रकारों के खिलाफ मामला बनाकर उस चर्चा को दबा दिया गया। उसी दौरान मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य को लेकर चर्चाएं उठी और उस पर कांग्रेस के सचिव ने एसपी शिमला को पत्र लिखकर ऐसे लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की थी। उसके बाद एक पत्रकार के खिलाफ मंत्रिमण्डल की बैठक की रिपोर्टिंग को लेकर एफआईआर दर्ज की गयी। अब शिमला और हमीरपुर के दो पत्रकारों के खिलाफ झूठी खबरें चलाने के लिये एफ.आई.आर. किये गये हैं। धर्मशाला में दो पत्रकारों को एक निजी स्कूल से उगाई करते हुए विजिलैन्स ने गिरफ्तार किया है। सरकार के मीडिया सलाहकार ने ब्यानजारी करके झूठी खबरें चलाने वालों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करने का ऐलान किया है। झूठी खबरें छापना चलाना अपराध है उगाही करना तो और भी बड़ा अपराध है। ऐसे कृत्यों की निंदा होनी चाहिए। ऐसी उगाई करने वालों को दण्ड मिलना चाहिए।
झूठी गलत खबरें छापने पर मानहानि का मामला दायर करने का प्रावधान है। ऐसी खबरों का खण्डन भी उसी प्रमुखता के साथ छापना/प्रसारित करना बाध्यता है। लेकिन बिना कोई खण्डन जारी किये या मानहानि का नोटिस दिये बिना सरकार द्वारा सीधे पुलिस कारवाई पर आना कहीं न कहीं कुछ अलग ही संकेत देता है। इस सरकार ने प्रदेश से छपने वाले साप्ताहिक समाचार पत्रों के विज्ञापन बन्द कर रखे हैं। जिन पत्रकारों के पास सरकारी आवास है उनका किराया पांच गुना बढ़ा दिया गया है। 65 वर्ष से अधिक की आयु वाले पत्रकारों से आवास खाली करवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। देशभर की राज्य सरकारें पत्रकारों को सुविधाएं देने की घोषणाएं कर रही है। लेकिन हिमाचल सरकार इस तरह के हथकण्डे अपना कर मीडिया को गोदी मीडिया बनाने के प्रयासों में लगी है। आज सरकार नहीं चाहती कि उससे कोई पत्रकार तीखे सवाल पूछे। प्रदेश में ईडी और आयकर की छापेमारी हो रही है और उसमें कुछ सरकारी विभागों की कारगुजारियां भी संदेह के घेरे में आयी हैं। सरकार नहीं चाहती कि इस पर उससे सवाल पूछा जाये। जब कोई सरकार मीडिया को दबाने के लिये इस हद तक उतर आये तो उसके परिणाम क्या निकलेंगे? आम आदमी के साथ मीडिया कितना खड़ा रह पायेगा? यह सवाल भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण है।
 
 

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search