Thursday, 18 September 2025
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क्या नीट और जेईई का विकल्प नहीं हो सकता

इस बार नीट की परीक्षा को लेकर मामला सर्वाेच्च न्यायालय तक जा पहुंचा है। आरोप लग रहा है कि शायद इस परीक्षा का पेपर लीक हुआ है। आरोप का आधार एक अभ्यार्थी अंजलि पटेल की प्लस टू की वायरल हुई अंक तालिका है। वायरल अंक तालिका के मुताबिक अंजलि प्लस टू के कैमिस्ट्री और फिजिक्स पेपरों में फेल है जबकि नीट में उसका स्कोर 720 में से 705 रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी नीट की परीक्षा पर उठते सवालों की जांच की मांग की है। देश के इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश के लिये जेईई और मेडिकल संस्थानों में प्रवेश के लिये नीट की परीक्षाएं केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा वर्ष 2009 से आयोजित की जा रही है और इन परीक्षाओं के संचालन के लिए वर्ष 2017 से एनटीए का गठन किया गया है। जब से इन संयुक्त प्रवेश परीक्षाओं का चलन शुरू हुआ है उसी के साथ इन परीक्षाओं के लिये कोचिंग संस्थानों का चलन भी आ गया है।
देश के हर कोने में कोचिंग संस्थान या इनकी ब्रांचें उपलब्ध हैं। इन संस्थानों में इन परीक्षाओं की कोचिंग के लिये बच्चों से लाखों की फीस ली जा रही है। इन दिनों इन परीक्षाओं में कोचिंग के लिये दाखिला लेने के लिये इन संस्थाओं के विज्ञापनों से अखबारों के पन्ने भरे हुये मिल जायेंगे। हर संस्थान का यह दावा मिल जायेगा कि उसके संस्थान से इतने बच्चे परीक्षा के टॉप में पास होकर प्रवेश ले चुके हैं। यह दावे कितने सही होते हैं इसकी पड़ताल करने का समय कितने अभिभावकों या बच्चों के पास होता है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। क्योंकि हर अभिभावक और बच्चा कोचिंग लेकर इंजीनियर या डॉक्टर बनना चाहता है। कई बार बच्चों पर यह परीक्षा पास करने का इतना मनोवैज्ञानिक दबाव और तनाव होता है कि बच्चे आत्महत्या तक करने पर आ जाते हैं। राजस्थान के कोटा में शायद कोचिंग संस्थानों का हब है ओर वहीं से सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले सामने आये हैं। एक बार राजस्थान विधानसभा में भी यह मामला गूंज चुका है और प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री ने इस पर कई सनसनी खेज खुलासे करते हुये परीक्षा और कोचिंग संस्थानों पर एक बड़े फर्जीवाड़े के आरोप लगाये थे। अब जब यह मामला सर्वाेच्च न्यायालय में जा पहुंचा है और इसमें सीबीआई की गहन जांच की मांग की जा रही है तब इसके विकल्पों पर विचार करना आवश्यक हो जाता है।
इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों में प्रवेश का आधार प्लस टू पास होना रखा गया है। इन संस्थानों में भी प्लस टू ही कोचिंग का आधार है। लेकिन बहुत सारे कोचिंग संस्थान ऐसे भी हैं जो प्लस टू के बिना ही कोचिंग में प्रवेश दे देते हैं। ऐसे प्रवेश को डम्मी प्रवेश की संज्ञा दी जाती है। बच्चा किसी स्कूल से प्लस टू करने के बजाये डम्मी प्रवेश लेकर ऐसे कोचिंग संस्थानों से ही प्लस टू का प्रमाण पत्र हासिल कर लेता है। क्योंकि इन संसथानों ने किसी न किसी मान्यता प्राप्त स्कूल से टाईअप कर रख होता है। इसलिये पहला फर्जीवाड़ा किसी मान्यता प्राप्त स्कूल में दाखिला लिये बिना ही प्लस टू पास करने का प्रमाण पत्र हासिल करना हो जाता है। यह कोचिंग संस्थान किसी शिक्षा बोर्ड द्वारा प्रमाणित शैक्षणिक संस्थान तो होते नहीं हैं। फिर इनके द्वारा डम्मी प्रवेश से रेगुलर प्लस टू का प्रमाण पत्र मिल जाना अपने में ही फर्जीवाड़ा सिद्ध हो जाता है। ऐसे डम्मी प्रवेशों की गहन जांच किया जाना बहुत आवश्यक है।
इसलिये इस समस्या का एक निश्चित हल खोजा जाना आवश्यक हो जाता है। इंजीनियरिंग और मेडिकल में प्रवेश का मूल आधार प्लस टू पास होना है। ऐसा नहीं है कि कोई बच्चा प्लस टू किये बिना ही संयुक्त प्रवेश परीक्षा पास करके ही प्रवेश का पात्र बन जाये। जब ऐसा नहीं है तो फिर संयुक्त प्रवेश परीक्षा पास करने का वैधानिक लाभ क्या है? यह प्रवेश परीक्षा तो अपनी सुविधा के लिये एक साधन मात्र है। जब 2012 तक ऐसी संयुक्त प्रवेश परीक्षा का कोई प्रावधान था ही नहीं तो उसके बाद इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी? संयुक्त प्रवेश परीक्षा पास करने पर क्या एन ए टी कोई सर्टिफिकेट जारी करता है शायद नहीं। ऐसे में जब मूलआधार ही प्लस टू है तब क्या यह आवश्यक नहीं हो जाता कि देशभर में प्लस टू का पाठयक्रम एक बराबर करके पूरे देश में एक जैसे ही प्रश्न पत्र जारी किये जायें। इस तरह प्लस टू का जब देश भर में पाठयक्रम और परीक्षा प्रश्न पत्र एक जैसे ही होंगे तो फिर संयुक्त प्रवेश परीक्षा की आवश्यकता ही क्यों रह जायेगी। उसी की मेरिट के आधार पर प्रवेश मिल जायेगा इसमें कोई पेपर लीक या फर्जीवाड़े की गुंजाइश ही नहीं रह जायेगी। यह सुझाव एक सार्वजनिक बहस और सर्व सहमति के लिये दिया जा रहा है। आज की परिस्थितियों में इस पर व्यापक विमर्श की आवश्यकता है।

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