Thursday, 18 September 2025
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मोदी का तीसरा कार्यकाल -कुछ उभरते सवाल

नरेंद्र मोदी तीसरी बार लगातार प्रधानमंत्री बनने वाले स्व. पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद पहले नेता हैं। इसके लिये वह निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं। लेकिन इस बार वह एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। क्योंकि भाजपा को अपने दम सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं मिल पाया है। इसलिये माना जा रहा है कि इस बार वह लगातार अपने सहयोगियों के दबाव में रहेंगे। इस बार भी चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़े गये। हर चुनावी वायदे को मोदी की गारंटी बनाकर परोसा गया। लेकिन यह गारंटियां भी पहले जितनी सफलता नहीं दिला पायी। ऐसा क्यों हुआ और इस पर भाजपा की समीक्षा के बाद क्या जवाब आयेगा इसका पता आने वाले दिनों में लगेगा। मोदी ने देश की सता 2014 में संभाली थी। 2014 और 2019 में जो वायदे देश के साथ मोदी भाजपा और एनडीए ने किये थे यह 2024 का चुनाव इन वायदों की परीक्षा था और उस परीक्षा में निश्चित रूप से यह सरकार सफल नही हो पायी है। इस बार विपक्ष भी पहले से कहीं ज्यादा सशक्त होकर उभरा है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि इस बार जनता ने एक सशक्त विपक्ष के लिये मतदान किया है। विपक्ष ने चुनाव प्रचार के दौरान जो तीखे सवाल सरकार से पूछे और सरकार उन सवालों का जब जवाब नहीं दे पायी उससे जनता का विश्वास विपक्ष पर बना तथा एक ताकतवर विपक्ष देश को मिला। जिस विपक्ष पर यह तंज कसा जाता था कि इस बार वह संख्या में पहले से भी कम होगा तो वह विपक्ष इस बार दो गुना होकर उभरा है। इसलिये यह माना जा रहा है कि इस बार विपक्ष की आवाज को सदन के भीतर दबाना आसान नहीं होगा। क्योंकि मतदान के अंतिम चरण के साथ ही जब एग्जिट पोल के परिणाम आये और उनकी खुशी में प्रधानमंत्री गृह मंत्री और वित्त मंत्री ने शेयर बाजार में अप्रत्याशित बढ़त आने के अनुमान लगाये तो उससे बाजार में बढ़त देखने को मिली। लेकिन जैसे ही वास्तविक चुनाव परिणाम आये तो शेयर बाजार धड़ाम से नीचे बैठ गया और एक दिन में ही निवेशकों का तीस लाख करोड़ डूब गया। शेयर बाजार के इस उतार चढ़ाव पर राहुल गांधी ने सवाल उठा दिये। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंच गया है और शीर्ष अदालत में इसका संज्ञान लेते हुए संबद्ध पक्षों से जवाब भी मांग लिया है। यही स्थिति नीट की परीक्षा को लेकर सामने आयी हैं और शीर्ष अदालत ने इस पर भी सवाल पूछ लिये हैं। पैगासैस पर संयुक्त संसदीय कमेटी की जांच की मांग उठ चुकी है। उम्मीद की जा रही है कि 2014 से लेकर आज तक जो भी गंभीर राष्ट्रीय मुद्दे संसद के शोर में दबकर रह गये हैं उन पर अब संसद में चर्चा अवश्य होगी। नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और विजय माल्या जैसे लोग अब तक विदेश से क्यों वापस नहीं लाये जा सके हैं इसका जवाब देश की जनता के सामने आयेगा। इसी कड़ी में सबसे महत्वपूर्ण स्थिति तो संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के ब्यान से उभरी है। इस चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा में संघ भाजपा के रिश्तों के बीच जो लकीर खींचने का प्रयास किया था संघ प्रमुख के ब्यान को उस लकीर का जवाब माना जा रहा है। इस बार जिस तर्ज पर विपक्ष के लोगों को तोड़कर भाजपा में शामिल करने का अभियान चलाया गया और इस अभियान में ज्यादा फोकस कांग्रेस पर था। यदि इस अभियान के माध्यम से कांग्रेस को कमजोर दिखाने की रणनीति न रही होती तो शायद एनडीए मिलकर भी सरकार बनाने की स्थिति में न आ पाता। लेकिन इस रणनीति से जो भाजपा का वैचारिक धरातल पर नुकसान हुआ है उसकी भरपाई निकट भविष्य में संभव नहीं है। संघ प्रमुख का ब्यान इसी बिन्दु से जुड़े सवाल माना जा रहा है। क्योंकि इस ब्यान में उठाये गये सवाल एक लंबे अरसे से जवाब मांग रहे थे जिन्हें अब तक सशक्त स्वर नहीं मिला है।

 

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