चुनाव प्रचार अंतिम चरण पर चल रहा है। अब तक हुये मतदान के आधार पर दोनों गठबंधन एनडीए और इंडिया दोनों अपनी अपनी सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। मतदान प्रतिशत के आंकड़े 2019 की तुलना में बहुत नीचे हैं। कम मतदान होना इस बात का प्रमाण नहीं माना जा सकता है कि यह मतदान सत्ता पक्ष या विपक्ष के पक्ष में जायेगा। आज भाजपा नीत गठबंधन पिछले दस वर्षों से केंद्र की सत्ता पर काबिज है। 2014 के चुनाव से पहले जिन मुद्दों पर देश में अन्ना हजारे और स्वामी रामदेव के आन्दोलन आये थे उनके परिणाम स्वरुप देश में सत्ता परिवर्तन हुआ था। 2014 के चुनाव में भाजपा नीत एनडीए गठबंधन केंद्र की सत्ता पर काबिज हुआ था। उस समय जो वायदे देश की जनता के साथ किये गये थे उनमें से कितने पूरे हुये हैं। यह हरेक के सोचने और समझने का विषय है। इसके बाद 2019 के चुनाव हुये और एनडीए फिर सत्ता पर पहले से ज्यादा बहुमत के साथ काबिज हुई। आज 2024 के चुनाव में मोदी भाजपा ने 400 पार का नारा दिया है। लेकिन 2014 और 2019 के चुनाव में जो वायदे किये गये थे उनमें से कितने पूरे हुये हैं। क्या इस पर कोई विधिवत चर्चा आयोजित हो पायी है शायद नहीं। यह सोचने का विषय है 2014 में तब की सरकार को भ्रष्टाचार का प्रयाय करार दिया गया था। अन्ना आन्दोलन का केंद्रीय मुद्दा लोकपाल की स्थापना था। 2014 के सत्ता परिवर्तन के बाद लोकपाल की स्थापना हुई है। लेकिन लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के कितने और कौन से मामले गये और उनके परिणाम क्या रहे हैं क्या इसकी कोई जानकारी सार्वजनिक रूप से बाहर आयी है शायद नहीं। इस चुनाव में भी यूपीए सरकार के समय के घोटाले की सूची भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने हिमाचल की चुनावी जनसभा में रखी है। लेकिन उसमें यह नहीं बताया कि इन पर कारवाई करने की जिम्मेदारी किसकी थी। 2014 से 2024 तक कांग्रेस और अन्य दलों से भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे नेता भाजपा में शामिल हुये हैं उनके ऊपर लगे आरोपों का क्या हुआ। जब 2014 और 2019 में किये गये वायदे पूरे नहीं हुये तो 2024 में किये जा रहे वायदों पर विश्वास कैसे किया जा सकता है। क्या आज आरएसएस के ही अनुसार अनुषांगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच बंद नहीं हो चुके हैं? क्या यह नीतियों या नीयत में बदलाव के परिणाम नहीं हैं। इस चुनाव में आरएसएस ने भाजपा का चुनाव में समर्थन नहीं करने का आहवान किया है। लेकिन इस आहवान का कोई स्पष्ट कारण भी नहीं बताया है। आज देश में भाजपा मोदी के विकल्प के रूप में कांग्रेस और राहुल गांधी को देखा जा रहा है। लेकिन कांग्रेस की राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारें क्यों सत्ता से बाहर हो गयी इसका कोई जवाब जनता में नहीं आया है। स्वभाविक है कि बदलाव बनने के लिये सरकार में परफारमैन्स करके दिखाना होगा। इस समय हिमाचल में कांग्रेस की सरकार पन्द्रह माह से सत्ता में है। क्या यह सरकार पन्द्रह माह में परफारमैन्स कर पायी है शायद नहीं। यह सरकार भी स्पष्टवादी मीडिया की विरोधी है। बेवाक लिखने वालों का गला घोटने के लिये किसी भी हद तक जा सकती है। ऐसे में जब विकल्प की स्थिति ऐसी होगी तो उस पर कैसे विश्वास किया जा सकेगा? यह सवाल अपने में बड़ा होता जा रहा है। इसके परिणाम क्या होंगे यह और भी गंभीर होता जा रहा है। ऐसे में यह आंशका बढ़ती जा रही है कि इस बार चुनाव परिणाम के साथ ही कहीं अराजकता अपने पांव न पसार ले।