भाजपा ने इस लोकसभा चुनाव के लिये अब की बार चार सौ पार का नारा लगाया हुआ है। इसी के साथ दूसरे दलों के एक लाख लोगों को भाजपा में शामिल करने का लक्ष्य रखा है। अब तक अस्सी हजार लोगों को शामिल करवा लिये जाने का दावा किया जा रहा है। अब तक किस दल से कितने पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद और पूर्व विधायक तथा अन्य पदाधिकारी भाजपा में शामिल हो चुके हैं इसकी सूचियां प्रसारित की जा रही हैं। यदि सही में भाजपा के प्रति इस स्तर की कोई वैचारिक स्वीकृति बनती जा रही है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिये। यदि ऐसा केन्द्रीय जांच एजैन्सीयों के राजनीतिक दुरुपयोग से हो रहा है तो यह निश्चित रूप से सभी के लिये आने वाले समय में घातक सिद्ध होगा। पिछले दोनों आम चुनावों में भाजपा की जीत का आंकड़ा हर बार बढ़ा है। हर चुनाव के दौरान दूसरे दलों में तोड़फोड़ हुई है। हर चुनाव के लिये एक आंकड़ा पहले ही उछाल दिया जा रहा है। और फिर हर संभव मंच से उसका प्रसार करवाया जाता रहा है ताकि परिणाम के दिन किसी को यह अजीब सा न लगे। लेकिन हर चुनाव के बाद ई.वी.एम. मशीनों की विश्वसनीयता पर सवाल भी उठते रहे हैं। यह आरोप लगते रहे हैं कि ई.वी.एम. हैक हो सकती है बल्कि इन्हीं आरोपों के साये में आयी डॉ. स्वामी की याचिका के बाद इन मशीनों में वी.वी.पैट का प्रावधान किया गया। ई.वी.एम को लेकर एक दर्जन से भी अधिक याचिकाएं विभिन्न उच्च न्यायालयों और सर्वाेच्च न्यायालय में आ चुकी हैं। बल्कि इसी दौरान उन्नीस लाख ई.वी.एम. मशीनों के गायब होने का सच भी आर.टी.आई. के माध्यम से बाहर आ चुका है। जिस पर अभी तक कोई निर्णायक कारवाई नहीं हो पायी है। जब किसी चयन प्रक्रिया पर सवाल उठने शुरू हो जाते हैं तो उस चयन के परिणामों की विश्वसनीयता स्वतः ही प्रश्नित हो जाती है। 2019 के चुनाव में 542 लोकसभा चुनाव क्षेत्रों में से 373 चुनाव क्षेत्रों में कुल डाले गये वोटो और गिने गये वोटो में बड़ा अन्तराल पाया गया था। लेकिन परिणाम भाजपा के घोषित और प्रचारित आंकड़े के करीब रहे। स्वभाविक है कि जब 542 में से 373 चुनाव क्षेत्रों में इस तरह की विसंगति सामने आयेगी तो कोई भी व्यक्ति ऐसे परिणाम पर विश्वास कैसे कर पायेगा। यदि चुनाव परिणामों की अपनी विश्वसनियता ही सन्देह के दायरे में आयेगी तो ऐसे परिणाम के आधार पर बनाई गयी सरकार की स्वीकार्यता कैसे बन पायेगी। स्वभाविक है कि ऐसी बनी सरकार को उसकी एजैन्सीयों के दुरुपयोग करने से नहीं रोका जा सकता। चुनाव में यदि विश्वसनीयता की कमी होगी तो उसके परिणाम किसी भी गणित से देश के लिये शुभ नहीं हो सकते। इस समय सर्वाेच्च न्यायालय के पास ए.डी.आर और इंडिया गठबंधन की याचिका विचाराधीन चल रही है। इसमें यह मांग की गयी है कि वी.वी.पैट की पर्ची को स्वयं मतदाता चुनाव बॉक्स में डालें। इसका प्रावधान किया जाये। दूसरी मांग यह है कि शत प्रतिशत वी.वी.पैट की गणना सुनिश्चित की जाये जो अभी 5% ही है। इस मांग पर चुनाव आयोग का यह ऐतराज है कि इससे मतगणना और परिणाम घोषित करने में पांच-छः दिन का और समय लग जायेगा। जब पहले ही चुनाव प्रक्रिया इतनी लंबी कर दी गयी है तो उसमें छः दिन का और समय लग जाने से कोई अन्तर नहीं आयेगा। चुनाव की विश्वसनीयता स्थापित करने के लिये सर्वाेच्च न्यायालय को यह मांग स्वीकार कर लेनी चाहिये और चुनाव आयोग को भी इसका विरोध नहीं करना चाहिये।