लेकिन यह भी एक प्रमाणित सच है कि रात चाहे कितनी भी काली और लम्बी क्यों न हो पर सवेरा आकर ही रहता है। इस समय सारे गंभीर प्रश्नों से ध्यान हटाने का जो प्रयोग धर्म और जातियों में आपसी टकराव खड़ा करके किया जा रहा था उसका एक चरम अभी राम मन्दिर प्राण प्रतिष्ठा के रूप में सामने आ चुका है। इस आयोजन पर शंकराचार्यों से लेकर अन्य विश्लेषको ने जो सवाल उठाये हैं उससे शायद सत्ता को कुछ झटका लगा है। इसलिये इस आयोजन के बाद राहुल गांधी के न्याय यात्रा को असफल करने के लिये हर राज्य में अड़चने पैदा करने का प्रयास किया गया है। इसी के लिये ‘‘इण्डिया’’ गठबन्धन को तोड़ने के सारे प्रयास शुरू हो गये हैं। जिस तरह से गठबन्धन के बड़े घटक दल अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस को सीटे देने के लिये तैयार नही हो रहे हैं उससे स्पष्ट हो जाता है कि चुनावों से पहले ही यह गठबन्धन दम तोड़ देगा। सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़ने की बाध्यता पर आ जायेंगे।
राम मन्दिर प्राण प्रतिष्ठा आयोजन ने हर दल को प्रभावित किया है। बल्कि हर दल में वह लोग स्पष्ट रूप से चिन्हित हो गये हैं जो धर्म की राजनीति में संघ भाजपा के जाल में पूरी तरह फंस चुके हैं। ऐसे में यह और भी स्पष्ट हो जाता है कि जो राजनीतिक लोग या दल धर्म और राजनीति में ईमानदारी से अन्तर मानते हैं उन्हें बड़े जोर से यह कहना पड़ेगा की राम मन्दिर प्राण प्रतिष्ठा का जो आयोजन हुआ है वह शुद्ध रूप से संघ भाजपा का एक राजनीतिक कार्यक्रम था। इस आयोजन के बाद भाजपा के ही अन्दर उठने वाले सवालों को लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देकर चुप करवाने का प्रयास किया गया है। लेकिन इस आयोजन के बाद जो कुछ बिहार, झारखण्ड और चण्डीगढ़ में घटा है उससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि मोदी अभी भी शंकित हैं कि क्या अकेला राम मन्दिर ही उनको सफलता दिला पायेगा? इसी शंका ने उनको ‘‘इण्डिया’’ को तोड़ने के प्रयासों में लगा दिया है। ‘‘इण्डिया’’ में नीतीश कुमार, ममता बैनर्जी, अखिलेश यादव और केजरीवाल की सीट शेयरिंग को लेकर जिस तरह का आचरण सामने आ रहा है उसका भाजपा और कांग्रेस पर क्या प्रभाव पड़ेगा इस पर अगले अंक में आकलन किया जायेगा। लेकिन जो कुछ मोदी ने किया है वहां निश्चित रूप से उनके डर का ही प्रमाण है।