Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home सम्पादकीय ई वी एम पर उठते सवाल घातक होंगे

ShareThis for Joomla!

ई वी एम पर उठते सवाल घातक होंगे

ई वी एम पर इन चुनावों के बाद भी सवाल उठने शुरू हो गये है। संभव है कि यह मामला सर्वाेच्च न्यायालय तक भी पहुंच जाये क्योंकि सैकड़ो साक्ष्य जुटा लिये जाने का दावा किया गया है। ई वी एम पर हर चुनाव के बाद सवाल उठते आ रहे हैं। सभी राजनीतिक दल ई वी एम की विश्वसनीयता पर सवाल उठा चुके हैं। ई वी एम से 2004 से चुनाव करवाये जा रहे हैं और 2009 में चुनाव से ही इस पर सवाल उठने शुरू हो गये थे। वर्ष 2009 में पूर्व उप प्रधानमंत्री वरिष्ठतम भाजपा नेता एल के आडवाणी ने इस पर सवाल उठाये थे। वर्ष 2010 में तो भाजपा नेता जी वी एल नरसिम्हा राव ने तो इस पर डेमोक्रेसी एट रिस्क कैन वीे ट्रस्ट ऑवर ई वी एम मशीन लिख डाली थी। आडवाणी ने इस किताब की भूमिका लिखी है और नितिन गडकरी ने इसका विमोचन किया है। भाजपा नेता पूर्व मंत्री डॉ स्वामी तो इस पर सुप्रीम कोर्ट भी गये थे और तब इसमें वी वी पैट का प्रावधान किया गया था। वर्ष 2016 से 2018 के बीच उन्नीस लाख मशीने गायब हो चुकी है और आर टी आई में यह जानकारी सामने आयी है। निर्वाचन आयोग ने इस तथ्य को स्वीकारा है। इन गायब हुई उन्नीस लाख ई वी एम मशीनों के बारे में आज तक सरकार कुछ नहीं कर पायी है। हर चुनाव में ई वी एम मशीनों को लेकर सैकड़ो शिकायते आती है। ई वी एम हैक होने से लेकर मशीन बदल दिये जाने के आरोप लगते है। दिल्ली विधानसभा में आप विधायक सौरभ भारद्वाज ने तो ई वी एम हैक करके दिखा दी थी। वर्ष 2017 में आप विधायक ने सदन के पटल पर यह प्रदर्शन किया था। इस तरह वर्ष 2009 से लगातार ई वी एम के माध्यम से चुनाव करवाये जाने की विश्वसनीयता पर लगातार सवाल उठते आ रहे है। मांग की जा रही है कि ई वी एम के स्थान पर मत पत्रों से ही चुनाव करवाये जाये। लेकिन चुनाव आयोग पर इन सवालों और इस मांग का कोई असर नहीं हो रहा है। उन्नीस लाख ई वी एम मशीनों के गायब होने पर जो आयोग और सरकार अब तक चुप बैठी है क्या उस पर आसानी से विश्वास किया जा सकता है। इस बार इन ई वी एम मशीनों पर राजनेताओं और राजनीतिक दलों में नहीं वरन आम आदमी ने सवाल उठाये हैं। वरिष्ठ वकील इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं। इस समय ई वी एम पर से आम आदमी का भरोसा लगातार टूटता जा रहा है। फिर ई वी एम मशीन की सामान्य समझ के लिए भी इंजीनियर होना आवश्यक है। और इसका सीधा सा अर्थ है कि यह ई वी एम मशीनों की वर्किंग आम आदमी की समझ से परे हैं ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक जी चयन प्रक्रिया की आम आदमी को बुनियादी समझ ही नहीं है उस पर विश्वास कैसे कर पायेगा। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता माने जाते हैं ऐसे लोकप्रिय नेता के नेतृत्व में चुनाव चाहे जिस मर्जी प्रक्रिया से करवाये जाये उनकी पार्टी का जीतना तय है। इसलिये जिस प्रक्रिया पर आम आदमी का विश्वास हो और उसे समझ आती हो उसके माध्यम से चुनाव करवाने में नुकसान ही क्या है। यदि मत पत्रों से चुनाव करवाने और उनकी गणना करने में चार दिन का समय ज्यादा भी लग जाता है तो उसमें आपत्ति ही क्या है? यह समय लगने से नेता और चुनाव प्रक्रिया दोनों पर ही विश्वास बहाल हो जायेगा। इस समय उन्नीस लाख ई वी एम मशीनों के गायब होने पर सरकार और चुनाव आयोग दोनों की निष्क्रियता आम आदमी की समझ में आने लगी है। इसमें आम आदमी का वर्तमान चुनाव प्रक्रिया पर से विश्वास उठना स्वभाविक है। यदि समय रहते इस प्रक्रिया को न बदला गया तो आम आदमी का आक्रोष क्या रख अपना लेगा इसका अन्दाजा लगाना कठिन है।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search