Friday, 19 September 2025
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यह राहुल की जीत है या मोदी भाजपा की हार

सर्वाेच्च न्यायालय ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को गुजरात के सी.जे.एम. की अदालत से मानहानि के मामले में मिली दो वर्ष की सजा को अन्तिम फैसला आने तक स्थगित कर दिया है। राहुल को यह राहत सैशन कोर्ट और गुजरात उच्च न्यायालय से भी नहीं मिली थी। दो साल की सजा मिलने से उनकी सांसदी और इस नाते मिला हुआ सरकारी आवास भी छिन गया था। यह सजा मिलने के बाद इस फैसले की अपील सत्र न्यायालय में की गयी जो अब तक लंबित है। इसी के साथ इसमें मिली सजा को स्थगित रखने की याचिका भी दायर की गयी थी। जिसको सत्र न्यायालय और गुजरात उच्च न्यायालय ने स्वीकार नहीं किया और अब सर्वाेच्च न्यायालय से यह राहत मिली है। यह राहत मिलने से राहुल की संसद सदस्यता और आवास दोनों बहाल हो जायेंगे। राहुल के खिलाफ सदस्यता और आवास छीनने की कारवाई को 24 घंटे के भीतर अन्जाम दे दिया गया था लेकिन अब बहाली में वही तेजी नहीं दिखाई जा रही है। जब सजा का फैसला आया था तब जिस तरह की प्रतिक्रियाएं भाजपा नेताओं की आयी थी और वह बहाली में लगाई जा रही देरी से यह सन्देश जाने लगा है कि सर्वाेच्च न्यायालय का फैसला राहुल की जीत से ज्यादा यह मोदी भाजपा की हार तो नहीं बन गया है।
भारतीय दण्ड संहिता निर्माताओं ने हर अपराध की गंभीरता को आंकते हुए उसमें अधिकतम दण्ड का प्रावधान किया हुआ है जो आजीवन कारावास और मृत्यु दण्ड तक का है। मानहानि के मामले में अधिकतम सजा दो वर्ष की है। किसी भी अपराध में जब कोई न्यायधीश अधिकतम सजा सुनाता है तब उसमें वह यह कारण भी दर्ज करता है कि अधिकतम सजा क्यों दी जा रही है। लेकिन सर्वाेच्च न्यायालय ने यह साफ कहा है कि ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में अधिकतम सजा के आधारों की व्याख्या ही नहीं की है। जब राहुल सत्र न्यायालय और फिर गुजरात उच्च न्यायालय में अपील में गये तो वहां भी मान्य अदालतों ने इस पक्ष का संज्ञान ही नहीं लिया। यदि राहुल गांधी को इस मामले में दो वर्ष से एक दिन की भी सजा कम होती तो उनकी संसद सदस्यता न जाती। इसलिए आम आदमी में यह धारणा बनती जा रही है कि राहुल को संसद से बाहर रखने के लिये यह मामला बनाया गया था। इस सजा के बाद ही गुजरात में मोदी समाज का अधिवेशन हुआ और गृह मन्त्री अमित शाह उसमें शामिल हुए। इस सम्मेलन में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को समाज का रत्न कहा गया। राहुल के खिलाफ मानहानि का मामला करने वाले पूर्णेश मोदी को महिमामण्डित किया। इस मामले में जो कुछ घटा है उससे यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि आज प्रधानमन्त्री से लेकर पूरी भाजपा तक राहुल से डरी हुई है।
2014 में जब से मोदी ने सत्ता संभाली है तब से लेकर आज तक राहुल और नेहरू-गांधी परिवार को घेरने के लिये जो कुछ भी इस सरकार ने किया है उससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी स्वतः ही राहुल से हल्के पड़ते जा रहे हैं। एक नेता को संसद से बाहर रखने के लिये इस सीमा तक जाना कई सन्देशो और आशंकाओं की आहट मानी जा रही है। 2024 के चुनावों को टालने से लेकर कुछ भी घट सकता है। क्योंकि इस समय जो बहुमत संसद में भाजपा को हासिल है उसके सहारे हिंदुत्व को लाने के लिये सरकार किसी भी हद तक जा सकती है। संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के नाम से जो भारत का नया संविधान कुछ अरसे से वायरल होकर बाहर आया है उस पर संघ से लेकर भारत सरकार तक सबकी चुप्पी अपने में बहुत कुछ कह जाती है। हिंदुत्व को संवैधानिक तौर पर लागू करने के जो निर्देश एक समय मेघालय उच्च न्यायालय के फैसले के माध्यम से भारत सरकार तक 2019 में आ चुका है उस पर भी अभी तक की खमोसी अर्थ पूर्ण लगती है।

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