Friday, 19 September 2025
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आजादी की स्वर्ण जयन्ती-कुछ बिन्दु...

देश को आजाद हुए पचहत्तर वर्ष हो गये हैं इसलिए इसे स्वर्ण जयन्ती कहा जा रहा है। लेकिन इसी के साथ इसे अमृत काल की संज्ञा भी दी जा रही है। समय के गणित से तो यह अवसर स्वर्ण जयन्ती बन जाता है लेकिन इसे अमृत काल क्यों कहा जा रहा है यह समझना कुछ कठिन हो रहा है। इसलिये इस कालखण्ड पर एक मोटी नजर डालना अवश्यक हो जाता है। देश को आजादी अंग्रेजों के तीन सौ वर्ष के शासनकाल से 1947 में मिली। अंग्रेज व्यापारी बनकर देश में आये और शासक बन कर गये। व्यापारी से शासक बन जाना अपने में ही बहुत कुछ कह जाता है। इससे यह भी समझ आता है कि व्यापारी की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण हो जाती है। तीन सौ से अधिक रियासतों में बंटे देश में एक व्यापारी कैसे शासक होने तक पहुंच गया यह अपने में ही एक बड़ा सवाल बन जाता है। इसी सवाल के परिपेक्ष में अंग्रेज के शासन का ‘‘मूल मन्त्र फूट डालो और राज करो’’ इस मन्त्र को समझने और इसका विश्लेषण करने पर बाध्य कर देता है। करोड़ों की जनसंख्या और सैकड़ों राजाओं वाले देश में एक व्यापारी तीन सौ वर्ष तक राज कर जाये यह महत्वपूर्ण है। क्योंकि संख्या बल के रूप में तो अंग्रेज बहुत ही नगण्य थे। फिर उन्होंने किसमें फूट डाली। स्वभाविक है कि इस फुट का आधार यहीं के लोगों को बनाया गया। एक राजा को दूसरे से श्रेष्ठ बताया गया। एक धर्म और जाति को दूसरे धर्म और जाति से श्रेष्ठ बताया गया। इसी श्रेष्ठता को प्रमाणित करने के लिये सब में आपसी वैमनस्य बढ़ता चला गया। इसके सैकड़ों प्रमाण इन तीन सौ वर्षों के इतिहास में उपलब्ध है। इस श्रेष्ठता के अहंकार को सामान्य करने में भी बहुत लोगों का बहुत समय लगा है और इसके भी सैकड़ों प्रमाण उपलब्ध है। अंग्रेजी शासन का तीन सौ वर्ष का इतिहास इस तथ्य से भरा पड़ा है कि जाति-धर्म और भाषा की श्रेष्ठता की होड़ समाज में ऐसी दूरियां खड़ी कर देती हैं जिन्हें पारना आसान नहीं होता है।  इसी तीन सौ वर्ष के इतिहास में यह भी मौजूद है कि जब अंग्रेज को यह लगने लगा कि यह जाति, धर्म और भाषा की श्रेष्ठता का हथियार ज्यादा देर तक नहीं चल पायेगा तब उसने इन्हीं आधारों पर राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को उभार दिया और राजनीतिक संगठन खड़े करवा दिये। इन संगठनों ने आजादी की लड़ाई के बीच ही अपने लिये अलग-अलग राज्यों की मांग तक कर डाली कुछ संगठनों के कार्यकर्ता तो यहां तक चले गये कि वह स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध अंग्रेज के मुखबिर तक बन गये। देश का विभाजन इसी सब का परिणाम है। धार्मिक श्रेष्ठता और उससे उपजी राजनीतिक महत्वकांक्षा ने मिलकर पाकिस्तान का सृजन किया है। इस परिदृश्य में आजाद हुये देश की नई सरकार के सामने चुनौतियों का पहाड़ था। नया संविधान बनाया जाना था। रियासतों को देश में मिलाना था। बहुजातीय, बहुभाषी और बहुधर्मी देश में यह सब आसान नहीं था। क्योंकि देश का बंटवारा ही धर्म के आधार पर हुआ था। इसलिये इस बहुविधता को सामने रखते हुये देश और सरकार को धर्मनिरपेक्ष रखा गया। संविधान सभा में बहुमत से यह फैसला लिया गया था। इसके बाद देश के विकास की ओर कदम बढ़ाया गया। देश की जनसंख्या का एक बड़ा भाग अति पिछड़ा था इसे मुख्यधारा में लाने के लिये उसकी पहचान करने और उपाय सुलझाने के लिये काका कालेलकर की अध्यक्षता ने एक कमेटी बनाई गयी जिसने आरक्षण का सुझाव दिया। इसी के साथ भू-सुधारों का मुद्दा आया। बड़ी जमीदारी प्रथा को खत्म करने के लिये कानून बने। फिर बैंकों के राष्ट्रीयकरण के लिये कदम उठाये गये। संसद में कानून बनाया गया। जब यह सारे उपाय किये जा रहे थे तभी एक वर्ग इसका विरोध करने पर आ गया। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद बड़े बहुमत से बनी सरकार के मुिखया के चुनाव को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी। चुनाव रद्द हो गया और देश में आपातकाल की नौबत आ गयी। 1977 में जनता पार्टी की सरकार ऐतिहासिक बहुमत से बनी। लेकिन 1980 में यह सरकार दोहरी सदस्यता के नाम पर टूट गयी। जिस दोहरी सदस्यता के कारण सरकार टूटी उसका खुला रूप मण्डल बनाम कमण्डल आंदोलन में सामने आया। आज यही रूप डॉ. मोहन भागवत के नाम से कथित रूप से लिखे गये संविधान के वायरल रूप में सामने आया है। लेकिन सरकार से लेकर संघ तक किसी ने भी इसका खण्डन नहीं किया है। सारे आर्थिक संसाधन योजनाबद्ध तरीके से प्राइवेट सेक्टर के हवाले किये जा रहे हैं। बैंक पुनः निजी क्षेत्र को सौंपने की तैयारी है। आम आदमी आज भी बीमारी का इलाज ताली थाली बजाने में ही ढूंड रहा है। नई शिक्षा नीति की प्रस्तावना में ही कह दिया गया है कि हमारे बच्चे खाड़ी के देशों में बतौर हेल्पर समायोजित हो जायेंगे। अच्छी शिक्षा और अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही है। सतारुढ़ दल कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के बाद सारे क्षेत्रीय छोटे दलों के खत्म हो जाने की भविष्यवाणी का चुका है। लेकिन इस सब के बाद भी यह काल अमृत काल कहा जा रहा है और हम स्वीकार कर रहे हैं। पाठको और देशवासियों को स्वर्ण जयन्ती और अमृत काल की शुभकामनाओं के साथ यह आग्रह रहेगा कि इन बिन्दुआंे पर कुछ चिन्तन करने का प्रयास अवश्य करें।

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