Friday, 19 September 2025
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आखिर क्या है कोरोना का सच

कोरोना को लेकर हर आदमी व्यक्तिगत स्तर पर डरा हुआ है यह इस समय का कड़वा सच है। यह डर इसलिये है क्योंकि उसे पहले दिन ही जब 24 मार्च को लाकडाऊन शुरू किया गया था तब यह कहा गया था कि घर से बाहर नही निकलना है। यहां तक कहा गया कि अस्पताल भी तभी जाना है यदि कोई सर्जरी होनी है और उसके लिये पहले से समय तय है अन्यथा न जायें। यह सब प्रधानमन्त्री ने स्वयं कहा था। प्रधानमन्त्री से बड़ा तो कोई है नही। इसलिये प्रधानमन्त्री के निर्देश पर सब डर कर घरों में बैठ गये। इसके बाद भी जब-जब प्रधानमन्त्री ने देश को सम्बोधित किया उन्होने परोक्ष/अपरोक्ष में इस डर को हर बार और पुख्ता किया।  कोरोना के कारण जब सारी आर्थिक गतिविधियों पर विराम लग गया और करोड़ो लोगोें का रोज़गार छिन गया प्रवासी मज़दूर के लिये दो वक्त के खाने का संकट खड़ा हो गया तब जहां सरकार ने इसके लिये राहत का पैकेज घोषित किया उससे भी यह डर कम होने की बजाये और बढ़ा क्योंकि जो बंदिशें लगी हुई थी उनमें कोई ढील नहीं दी गयी। प्रधानमन्त्री के कहने पर जनता ने  ताली-थाली भी बजाई और दीपक भी जलाये लेकिन इससे निकली ऊर्जा कोरोना को रोक नहीं पायी। फिर भी जनता ने प्रधानमन्त्री के फैसलों पर कोई आपति नही जताई।
लेकिन जब अनलाक शुरू किया तब कोरोना के मामले लाखो में पहुंच चुके थे जबकि लाकडाऊन लगाते समय यह संख्या केवल पांच सौ थी। यहां पर पहली बार यह प्रश्न उठा कि जब संक्रमण से यह बिमारी फैल रही है तो इस समय अनलाक क्यों किया गया दूसरे राज्यों में फंसे लोगों को अपने राज्यों में आने की अनुमति क्यों दी गयी। जिन प्रवासी मज़दूरों की व्यथा-कथा शुरू में सुप्रीम कोर्ट ने भी नहीं सुनी थी बाद में उसी सुप्रीम कोर्ट ने इन मज़दूरों को पन्द्रह दिन के भीतर  अपने-अपने घरों तक पहुंचाने के निर्देश राज्य सरकारों को दे दिये। जैसे-जैसे इन फैसलों की अनुपालना बढ़ती गयी उसी अनुपात में संक्रमण भी बढ़ता गया और आज कोरोना के मामले छःलाख तक बढ़ गये। कोरोना का संक्रमण अभी अपने चरम तक पहुंचना बाकी है यह भी बताया जा रहा है। इसका अन्त होकर हालात पहले की तरह सामान्य कब होेंगे यह कहने की स्थिति में कोई नही है। अनलाॅक में बहुत सारी आर्थिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने की अनुमति दे दी गयी है। यह गतिविधियां शुरू भी हो गयी हैं लेकिन इन गतिविधियों से पहले के अनुपात में एक चैथाई राजस्व भी नही मिल पा रहा है। इसे पहले की स्थिति में आने को लम्बा समय लगेगा यह तय है और जब तक पुरानी स्थिति बहाल नही हो जाती है तब तक राजस्व की कमी पूरी होना संभव नही है।
 यह अब आम बहस का विषय बन गया है कि कोरोना से निपटने के लिये सरकार ने जो जो फैसले लिये हैं उनके परिणाम बहुत उत्साहजनक नहीं रहे हैं। कोरोना के कारण पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है। बल्कि अब तो राज्य और केन्द्र के फैसलों में ही मतभिन्नता सामने आने लग पड़ी है। हिमाचल जो एक समय कोरोना मुक्त होने की स्टेज़ पर पहुंच गया था वहां अब एक हज़ार से ज्यादा मामले हो गये हैं। हर रोज़ इनमें वृद्धि हो रही है। इस बढ़ौत्तरी के कारण सरकार ने दूसरे राज्यों से आने वालों पर प्रतिबन्ध लगा रखा था। इस प्रतिबन्ध पर कुछ पूर्व वरिष्ठ नौकरशाहों ने मुख्य सचिव को रोष जताते हुए पत्र भी लिखा था। प्रदेश सरकार ने केन्द्र सरकार को भी अपने फैसले से अवगत करवा दिया था। लेकिन अब केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार के फैसले को न मानते हुए प्रदेश को पर्यटकों के लिये खोल दिया है। विदेशों से भी पर्यटक आ सकते हैं। इस फैसले से स्वभाविक रूप यह सवाल उठता है कि कोरोना को लेकर प्रदेश और केन्द्र की समझ व आकलन में अन्तर है।
 कोरोना को लेकर अभी तक कोई दवाई नही आयी है। केवल परहेज से ही काम चलाया जा रहा है। परहेज में जो कुछ सुझाया गया है उसकी सख्ती से अनुपालना करने को कहा जा रहा है। जो भी दवाईयां इसके मरीज़ो को दी जा रही है उनकी प्रमाणिकता को लेकर डाक्टरों में मत भिन्नता है। यह मतभिन्न्ता का मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा है। बहुत सारे डाक्टर कोरोना को एक सामान्य फ्लू बता रहे हैं। उनके मुताबिक यह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर फार्मा कंपनीयों का फैलाया गया एक बड़ा जाल है। फार्मा कंपनीयों पर लग रहे ऐसे आरोपों को एक एनजीओ ‘‘साथी’’ द्वारा अज़ीम प्रेमजी के सहयोग से की गयी स्टडी से बल मिलता है। इस स्टडी के महत्वपूर्ण  निष्कर्ष मैं पहले ही पाठकों के सामने रख चुका हूं। आयुर्वेद में अगर कोई इसकी दवा बनाने का दावा कर रहा है तो उसे आयुर्वेद की बजाये एलोपैथी के मानको पर परखा जा रहा है। जैसा कि स्वामी रामदेव के दावे के साथ हुआ है। जबकि आयुर्वेद के दावे को तो आयुर्वेद के मानको पर ही परखा जाना चाहिये। लेकिन आयुर्वेद की पक्षधरता का दावा करने वाली मोदी सरकार ने आईसीएमआर की तर्ज पर शायद अब तक आयुर्वेद परिषद गठित ही नही की है।
 जब से लाकडाऊन शुरू हुआ है तब से कोरोना के अतिरिक्त दूसरे मरीज़ो के ईलाज के बारे में कोई चिन्ता और  खरब  ही नही है। जबकि देशभर में लाकडाऊन से पहले लाखों मरीज़ रोज़ाना अस्पतालों में आते थे। यदि कोरोना से पहले तक अन्य बिमारियों से प्रतिवर्ष मरने वालों के आंकड़े सामने रखें जाये तो यह लगता है कि सही में इसको लेकर डर ज्यादा फैलाया गया है। डा. विश्वरूप राय चौधरी जैसे जो डाक्टर कोरोना को एक सामान्य फ्लू बता रहे हैं उनकी बात में दम नज़र आता है। भारत सरकार के गृह मन्त्रालय  के सांख्यिकी डिविजन द्वारा वर्ष 2017 के लिये जारी रिपोर्ट के आंकड़े यह बताते हैं कि प्रतिवर्ष देश में विभिन्न बिमारियों से मरने वालों का आंकड़ा पचास लाख से ऊपर ही रहता है। भारत सरकार की इस रिपोर्ट के यह तथ्य भी पाठकों के सामने रख रहा हूं। ताकि सरकार से हटकर आप इस पर अपनी स्वतन्त्र राय बना सकें। क्योंकि जब तक आम आदमी इस डर से बाहर नही निकलता है तब तक किसी भी च़ीज का कोई असर और अर्थ नहीं होगा।
देश में प्रतिवर्ष होती हैं 60 लाख से अधिक मौतें

This Report for the year 2017 is the forty fourth in the series of the publication presenting statistics on causes of death obtained through the Civil Registration system under the Registration of Briths and Deaths Act, 1969. Section 10(2) of the  Act. empowers the state Government to enforce the provision relating to medical certification of cause of death in specified areas taking into consideration the availability of medical practitioner who has attended to the deceases at the time of death. At present, the scheme has been made applicable to limited areas and selected hospitals.
 Section 10(2) In any area, the state Government having regard to the facilities available therein in this behalf require that a certificate as to the cause  as to the cause of death shall be obtained by Registra from such person and in  such form as may prescribed.
Section  10(3)  Where the State Government has required under sub-section (2) that a certificate as to the cause og death shall be obtained , in the event of the death of any person who,   during his last illness,  was attended by a medical practitioner, the medical practitioner shall , after the death of that person, forthwith , issue without charging any fee, to the person  required under this Act to give information concerning the death, a certificate in the prescribed form stating to the best of his knowledge and belief the cause of death, and the certificate shall be received and delivered by such person to the Registrar at the time of giving information concerning the death  as required by this Act.
 Section 17(1) (b) Subject to any rules made in this behalf by the state Government including rules relating to the payment of fees and postal charges, any person may obtain an extract from registration -records relating to nay death provided that no extract relating to any death, issued to any person, shall disclose the particulars regarding the cause of death as entered in the register.
Section 23(3) Any medical practitioner who neglects or refuses to issue a         certificate under sub-section 10 and any person who neglects or refuses to deliver such certificates shall be punishable with fine which may extend to fifty rupees.  

























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