

वित्त मन्त्राी ने जब बीस लाख करोड़ के आंकड़े के डिटेल सामने रखे है तब यह सामने आया है कि जिस एमएसएम ई क्षेत्र के लिये 50,000 करोड़ का इक्विटी फण्ड जारी किया गया है उसमें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग की परिभाषा भी बदल दी गयी है। इस बदली परिभाषा के अनुसार अब एक करोड़ के निवेश वाला उद्योग सूक्ष्म 10 करोड़ का निवेश लघु और 20 करोड़ के निवेश वाला मध्यम उद्योग होगा। वित्तमन्त्री के मुताबिक एमएसएम ई क्षेत्र में 45 लाख उद्योग ईकाईयां पंजीकृत हैं। अब जो 30 करोड़ लोग बेरोज़गार हैं यदि उनमें से आधे लोग भी सूक्ष्म उद्योग लगाकर अपना रोज़गार शुरू करना चाहें तो उन्हे क्या एक करोड़ प्रति व्यक्ति के हिसाब से ऋण मिल पायेगा? क्या इतना पैसा बैंकों और सरकार के पास है? क्या आज एक करोड़ बेरोज़गार को एक करोड़ प्रति व्यक्ति देने की स्थिति है? शायद यह कभी संभव नही हो सकता। लेकिन घोषणा कर दी गयी है क्योंकि इस पर यह सवाल पूछने वाला नही है कि ऐसी अव्यवहारिक घोषणाएं करके समाज को ठगा क्यों जा रहा है।
उद्योगों की इस परिभाषा के बाद वित्त्मन्त्री ने समाज के लोअर मिडिल क्लास की परिभाषा सामने रखी है। उनके मुताबिक छः लाख से अठारह लाख कमाने वाला व्यक्ति लोअर मिडिल क्लास में आता है। वित्तमन्त्री के मुताबिक कम से कम छः लाख प्रतिवर्ष अर्थात 50,000/-रूपये प्रमिमास कमाने वाला लोअर मिडिल क्लास में आता है। वित्तमन्त्री के इस आकलन से यह सवाल उठना स्वभाविक है कि आज कितने लोग ऐसे है जो पचास हजार प्रतिमाह कमा पा रहे हैं। इससे यह सवाल उठता है कि समाज को लेकर सरकार का आकलन कतई व्यवहारिक नही है। शायद इन्ही आकलनों के आधार पर बीपीएल और एपीएल के मानक बदले गये हैं और एपीएल परिवारों को सस्ते राशन की पात्रता से बाहर कर दिया गया है।
इन आकलनों के बाद वित्तमन्त्री ने देश के बैंकों से कहा है कि उन्हे सीबीआई, सीबीसी और सीएजी से डरने की आवश्यकता नही। बैंकों को यह अभयदान देते हुए वित्तमन्त्री ने यह निर्देश दिये हैं कि वह बिना किसी डर के लोगों को ऋण उपलब्ध करवायें। यदि यह ऋण एनपीए भी हो जाते हैं तो कोई भी बैंक प्रबन्धन को इसके लिये जिम्मेदार नही ठहरायेगा क्योंकि इसकी गांरटी सरकार देगी। अभी जो राहत पैकेज घोषित किया गया है उसमें सभी वर्गों को ऋण सुविधा ही दी गयी है। बैंको को खुले मन से ऋण देने के निर्देश दिये गये हैं। अब ऐसे में कितना ऋण बंट जायेगा और फिर इसमें से कितना वापिस आ पायेगा वह भी तब जब एनपीए होने पर गांरटी सरकार ले रही है। इससे स्पष्ट है कि अब बड़े स्तर पर बैंकों में अधिकारिक तौर पर एनपीए होने के लिये भूमिका बना दी गयी है। इससे पहले भी प्रधानमन्त्री मुद्रा ऋण योजना के तहत दस लाख करोड़ से अधिक के ऋण बांटे गये हैं जिनमें से 70% से अधिक एनपीए हो चुके हैं। ऐसे में अब जो कुछ वित्तमन्त्री के इन निर्देशों के बाद घटेगा उसकी कल्पना की जा सकती है। इससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी या कुछ लोग ही इससे लाभान्वित हो पायेंगे इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा। लेकिन इससे यह बड़ा सवाल खड़ा होता है कि क्या इन निगरान ऐजैन्सीयों को इस तरह से पंगू बनाना देशहित में होगा या नही। क्योंकि यह स्वभाविक है कि जब निगरान ऐजैन्सीयों का डर न तो ऋण देने वालो पर रहेगा और न ही ऋण लेने वालों पर तब स्वतः ही एक अराजकता का वातावरण तैयार नही हो जायेगा।