देश कोरोना के संकट से गुजर रहा है और यह संकट कितना बड़ा है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि अन्ततः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश से आह्वान करना पड़ा है कि रविवार को पूरा देश सुबह सात बजे से रात 9 बजे तक जनता कर्फ्यू का पालन करे। प्रधानमंत्री के इस आह्वान का पूरी ईमानादारी से पालन किया जाना चाहिये। क्योंकि जो बीमारी संक्रमण से फैलती हैं उसमें संक्रमण को कम करने के लिये एक दूसरे से मिलना ही बन्द करना पड़ता है और यह काम कर्फ्यू से ही किया जा सकता है। कोरोना का अभी तक कोई अधिकारिक ईलाज सामने नही आया है ऐसे में सावधानी ही पहला कदम रह जाता है। प्रधानमंत्री ने जो कर्फ्यू का आह्वान किया है उससे निश्चित रूप से संक्रमण की संभावना काफी कम हो जायेगी क्योंकि ‘‘ जान है तो जहान है’’ को मानते हुए हर आदमी इसका पालन भी करेगा। बल्कि यदि आवश्यकता हो तो कुछ दिनों बाद यह प्रयोग फिर से कर लिया जाना चाहिये।
कोरोना को दस्तक दिये हुए काफी समय हो गया हैं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित किये हुए एडवाईज़री तक जारी की है। भारत में भी केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों ने प्रधानमंत्री के आह्वान से पहले ही कई कदम इस दिशा में उठा रखे हैं। इन्ही कदमों के चलते शैक्षणिक संस्थान और सिनेमा घर आदि पूरे देश में बन्द किये जा चुके है। सामाजिक समारोहों और सांस्कृतिक समारोहों के लिये भी एडवाईज़री जारी हो चुकी है। मन्दिरों के कपाट बन्द कर दिये गये हैं। जिस भी गतिविधि से संक्रमण की संभावना बनती है उसी को बन्द किया जा चुका है। स्वभाविक है कि जिस बीमारी को कोई ईलाज सामने न हो उसमें परहेज़ ही सबसे पहला कदम रह जाता हैं इसलिये प्रधानमंत्री का कर्फ्यू का आह्वान एक स्वागत कदम है जिसका पूरा समर्थन किया जाना चाहिये।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में यह भी कहा है कि सरकार कोविड-19 के नाम से आर्थिक मोर्चे पर वित्तमन्त्री की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का भी गठन करने जा रही है। यह टास्क फोर्स आने वाले दिनों में कुछ आर्थिक फैसले लेगी। प्रधानमंत्री ने इन फैसलों का कोई सीधा संकेत नही दिया है। लेकिन इन संभावित फैसलों पर जनता से सहयोग की अपील भी की है। यह फैसले क्या होंगे इसका अनुमान लगाना संभव नही होगा। लेकिन पिछले कुछ समय में आर्थिक मुहाने पर जो कुछ घट जाता है उस पर नजऱ दौड़ाना आवश्यक हो जाता है। इन घटनाओं में दो प्रमुख घटनाएं पहले पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक और फिर यस बैंक पर आरबीआई के प्रतिबन्ध रहे हैं। पीएनबी का कार्य और प्रभाव क्षेत्र महाराष्ट्र तक ही सीमित था। क्योंकि शायद उसके खाता धारकों की संख्या ही 50,000 के आप पास थी। इसलिये वह मुद्दा ज्यादा नही बढ़ां परन्तु यस बैंक से 21 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। कई राज्य सरकारों का पैसा उसमें जमा था। कई राज्यों के सहकारी बैंक उससे प्रभावित हुए हैं। यस बैंक के इस बड़े प्रभाव क्षेत्र के कारण आरबीआई को इसे बड़ा कर्ज देकर खाताधारकों के हितों रक्षा के लिये समाने आना पड़ा है।
लेकिन आरबीआई के पास भी रिजर्व धन इस देश के आम आदमी का हैं जबकि बैंक एनपीए के कारण फेल हो रहे हैं और यह एनपीए अंबानी जैसे बड़े उद्योग घरानों का है। इस बड़े कर्ज की वसूली के लिये कोई प्रभावी कदम उठाये नही जा रहे हैं। यह एनपीए आज दस लाख करोड़ के ऊपर जा चुका है। इसलिये जब तक कर्ज वसूल नही हो जाता है तब तक बैंको की हालत में सुधार नही हो सकता। अधिकांश बैंको की हालत में सुधार नही हो सकता। अधिकांश बैंकों की हालत हाथ खड़े करने तक पहुंच चुकी है और आरबीआई हर बैंक को कर्ज देकर नही बचा पायेगा। इसी वस्तुस्थिति के कारण रेटिंग ऐजैन्सीयां हर बार विकास दर के अनुमान बदलने पर विवश हो रही हैं। सरकार को विनिवेश का आंकड़ा इस बार दो लाख करोड़ करना पड़ा है। आज कोरोना के कारण आर्थिक स्थिति को और धक्का लगा है। पर्यटन उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है। जो कदम कोरोना को रोकने के लिये उठाये जा रहे हैं उनका सीधा प्रभाव व्यापार और रोज़गार पड़ना शुरू हो गया है इससे प्रभावित हो रहे लोगों ने सरकार से आर्थिक सहायता मांगना शुरू कर दी है। अभी यह स्पष्ट नही हो पा रहा है कि यह स्थिति और कितने दिन तक ऐसे ही चलेगी। ऐसे में आर्थिक स्थिति को स्थिर रखने के लिये सरकार एनपीए की वूसली के लिये कोई बड़ा कदम उठाती है या फिर खाता धारकों से इस घाटे को पूरा करने के लिये कोई अंशदान मांगा जाता है इसका खुलासा तो तभी हो पायेगा जब टास्क फोर्स का कोई फैसला सामने आता है जिस पर जन सहयोग का आह्वान किया जायेगा। लेकिन यह तय है कि आने वाले दिनों मे ऐसा कुछ अवश्य देखने को मिलेगा। महामारी के परिप्रेक्ष में प्रधानमंत्री को हर तरह का जनसहयोग दिया जाना चाहिये। लेकिन इसमें आम आदमी के हितों की रक्षा करना भी प्रधानमंत्री की ही जिम्मेदारी हो जाती है।