शिमला/शैल। क्या देश अराजकता की ओर बढ़ रहा है? यह सवाल अभी कुछ दिन पहले झारखण्ड के पाकुड में लिट्टीपाड़ा में सामाजिक कार्यकर्ता स्वार्थी अग्निवेश पर भीड़ द्वारा किये गये हमले के बाद फिर से चर्चा में आ गया है। क्योंकि हमला करने वाली भीड़ साथ में जय श्री राम के नारे भी लगा रही थी। इन नारों से सीधा यह संदेश गया है कि हमला करने वाले लोग संघ-भाजपा से ताल्लुक रखते हैं। केन्द्र में भी भाजपा की सरकार है और झारखण्ड में भी। इसीलिये यह लोग अपने को कानून से ऊपर मानकर क्या कानून हाथ मे लेकर जांच, फैसला और सज़ा सबकुछ एक साथ मौके पर ही कर दे रहे हैं। पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलो मे लाचारगी की भूमिका से बाहर नही आ पाया है। पिछले डेढ़ वर्ष में देश के विभिन्न भागों में भीड़ ने तैतीस लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। यह घटनाएं कम होने की बजाये लगातार बढ़ती जा रही है। स्वामी अग्निवेश पर हुए हमले की निन्दा संघ- भाजपा की ओर से कोई प्रभावी ढंग से सामने नही आयी है और यह खामोशी पूरे मामले को कुछ और ही अर्थ दे जाती है
भीड़ के हिंसक होने को लेकर महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी और कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की थी। इस याचिका पर ठीक उसी दिन फैसला आया है जिस दिन स्वामी अग्निवेश पर भीड़ ने जानलेवा हमला किया। स्वामी अग्निवेश पर यह आरोप था कि उन्होंने हिन्दुओं के खिलाफ बोला है। स्वामी अग्निवेश एक समारोह में भाग लेने गये थे। समारोह में भाग लेकर जब वह सभागार से बाहर निकले अपनी गाड़ी में बैठकर जाने के लिये तभी भीड़ ने उनपर हमला कर दिया। सभागार में स्वामी अग्निवेश ने क्या बोला और वह हिन्दुओं के खिलाफ था तथा इसके लिये उन्हे यहीं मौके पर ही बिना उनका पक्ष जाने सजा देनी है यह फैसला कुछ ही क्षणों मे उस भीड़ ने ले लिया जो शायद स्वयं सभागार में उपस्थित भी नही थी। जब भीड़ इस तरह से कानून अपने हाथ में लेकर सड़कों पर फैसले करने लगेगी तो फिर देश में कानून, पुलिस, प्रशासन और अदालत के लिये कहां जगह रह जाती है। यह सबसे बड़ा और गम्भीर सवाल उभरकर सामने आता है। पिछले डेढ़ वर्षे में बल्कि यह कहना ज्यादा संगत होगा कि नोटबंदी के बाद देश में इस तरह की घटनाओं में अचानक बाढ़ आ गयी है। गो रक्षा, गो काशी, बच्चा चोरी और अमुक समुदाय के लोगों ने अमुक समुदाय के व्यक्ति को मार दिया जैसी फर्जी घटनाओं की अफवाह फैलते ही इनके नाम पर अचानक भीड़ इकट्ठा हो जाती है और हिंसक होकर किसी की भी जान ले लेती है लेकिन आज तक भीड़ के हिंसक होने के लिये फैली किसी भी अफवाह की पुष्टि नही हो पायी है कि वास्तव में रोष का कारण बनी सूचना अफवाह नही सच्ची घटना थी। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ऐसी झूठी खबरें एक मकसद के साथ फैलायी जाती हैं ताकि दो समुदायों/वर्गों के बीच ऐसी नफरत फैल जाये कि वह उस खबर के स्त्रोत और सत्यता को जांच के बिना ही हिंसक होकर किसी की जान ले ले।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस भीड़ हिंसा का कड़ा संज्ञान लेकर इसको रोकने के उपाय करने के लिये सरकारों को कड़े निर्देश दिये हैं। इन निर्देशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट भी तलब की है। सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी अफवाहों के लिये सोशल मीडिया को सबसे बड़ा जिम्मेदार माना है। घृणा, नफरत फैलाने वाले पोस्टों पर कड़ी निगरानी रखते हुए ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कारवाई करने के भी निर्देश दिये हैं। उम्मीद की जानी चाहिये कि सरकार और उसका तन्त्र तुरन्त इस दिशा मे प्रभावी कदम उठायेगा। यहां पर एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि जो लोग सोशल मीडिया में यह सब फैला रहे हैं उनका संरक्षक कौन है? जब इस पर विचार करते हैं तो तुरन्त सत्तारूढ़ और विपक्ष की ओर से ध्यान जाता है क्योंकि यह स्वतः सिद्ध सत्य है कि जब हमारी असफलताएं इतनी हो जाती है कि उनके सार्वजनिक हो जाने से हमे सत्ता से बेदखल होने का डर लग जाता है जब आम जनता का ध्यान बंटाने और उसे विभाजित रखने के लिये इस तरह के हथकण्डे अपनाये जाते हैं। आज केन्द्र में भाजपा की सरकार है और अगला लोकसभा चुनाव कभी भी घोषित हो सकता है कि स्थिति बनी हुई है। ऐसे मे जनता के अन्दर अगर किसी की पहली जवाबदेही बनेगी तो वह निश्चित रूप से भाजपा की ही बनेगी। जब 2014 में लोकसभा के चुनाव हुए थे तब जनता से जो वायदे किये गये थे उनमें साथ ही यह भी कहा गया था कि जहां कांग्रेस को 60 वर्ष दिये है वहां हमें 60 महीने दें। हम इसी में सारे वायदे पूरे करेंगे। लेकिन सत्ता में आकर 60 महीने भूलकर 60 वर्ष की योजना परोसी जाने लगी है। निश्चित तौर पर सरकार अपना कोई भी बड़ा वायदा पूरा नही कर पायी है। आज रूपये की कीमत डॉलर के मुकाबले मे बहुत गिर गयी है। जिसके कारण हजा़रों करो़ड़ का ऋण बिना लिये ही बढ़ गया है। विकासदर सबसे निचले स्तर पर आ गयी है और मंहगाई पिछले दस वर्षों का रिकार्ड तोड़ गयी है। नोटबंदी से जो लाभ गिनाये गये थे वह सब हानि में सामने आ रहे हैं। इस परिदृश्य में आज यदि किसी को कुछ खोने का डर है तो वह सबसे अधिक सत्तारूढ़ भाजपा को ही है। क्यांकि जब हिंसक भीड़ किसी को मारते हुए ‘‘जयश्रीराम’’ का नारा लगाती है तो उसी नारे से सबकुछ स्पष्ट हो जाता है। हिंसक भीड़ के नारे और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से इस वस्तुस्थिति को नियंत्रित करने की सबसे बड़ी और पहली जिम्मेदारी भाजपा पर ही आ जाती है क्योंकि जिन राज्यों मे यह सब घटा है वहां पर या तो भाजपा की सरकारें है या फिर इनमें शामिल लोग अधिकांश में भाजपा के रहे हैं। इसलिये यह हिंसक भीड़ तंत्र भाजपा के लिये ही घातक सिद्ध होगा यह तय है।