शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ने पांच वरिष्ठ आई ए एस अधिकारियों को नजर अन्दाज करके वीसी फारखा की मुख्य सचिव के पद पर ताजपोशी की है। इस ताजपोशी से वीरभद्र सिंह और उनकी सरकार कितनी मजबूत हुई है यह सवाल सचिवालय के गलियारों से लेकर सड़क तक हर कहीं चर्चा का विषय बना हुआ देखा जा सकता है। क्यांेकि इस ताजपोशी के बाद यंहा तैनात वरिष्ठ अधिकारी प्रोटैस्ट लीव पर चले गये हंै और नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल ने भी इस ताजपोशी को ऐसे उच्च पदों की गरिमा को कमजोर करना करार दिया है। जो अधिकारी प्रोटैस्ट लीव पर गये हंै वह आगे क्या करते हंै और कब तक छुट्टी पर रहते इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा लेकिन इन लोगों का सक्रिय सहयोग सरकार को नही मिलेगा इतना तो तय है। इस ताजपोशी का सीधा प्रभाव मुख्यमन्त्री कार्यालय पर पड़ा है क्यांेकि फारखा पहले मुख्यमन्त्राी के प्रधान सचिव थे और कई महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी संभाले हुए थे। अब फारखा के स्थान पर सेवानिवृत पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव टीजी नेगी को लगाया गया है। उनकी नियुक्ति बतौर सलाहकार है जिसमें वह प्रधान सविच की जिम्मेदारी संभालेगे। मुख्य मन्त्री के आदेशों के लिये जाने वाली हर फाईल उनके माध्यम से ही जायेगी सीधे नही यह व्यवस्था फारखा के समय में ही कर दी गयी थी और अभी तब बरकार है। लेकिन सेवा निवृत होने के कारण टी जी नेगी किसी भी विभाग की प्रशासनिक जिम्मेदारी सीधे नही उठा सकते। इसलिये हर काम के लिये दूसरे अधिकारियों के सहयोग की आवश्यकता रहेगी। संयोगवश मुख्यमन्त्राी के सचिवालय में प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया प्रधान सचिव टी जी नेगी, टी सी जनारथा, राकेश शर्मा ढिड़ोरा सभी सेवा निवृत अधिकारी है। ओ एस डी अमितपाल की नियुक्ति तो वैसे ही राजनीतिक है। ऐसे में मुख्य सविच वी सी फारखा पर प्रशासनिक और राजनीतिक दोनांे ही तरह की जिम्मेदारी बढ़ जायेगी। आगे विधान सभा के चुनाव होने हैं जिनकी यह संभावना बराबर बनी हुई है कि यह चुनाव इस वर्ष भी करवाये जा सकते हैं। मुख्यमन्त्री जिस तरह से प्रदेश भर का दौरा कर रहे है उसे एक तरह से सरकारी खर्च पर चुनाव प्रचार की संज्ञा दी जाने लग पड़ी है। आने वाले दिनांे में इन दौरों पर सवाल भी उठ सकते हंै। चुनावी वर्ष को देखते हुए सरकारों को बहुत सारे फैसले राजनीतिक उद्देश्यो को ध्यान में रखकर लेने पड़ते है। यदि पिछले तीन चुनावों पर नजर दौडाई जाये तो हर चुनाव से पहले के दो वर्षाे में सरकारें सामान्य से दो गुणा कर्ज उठाती रही है। इस बार तो वित्तिय स्थिति और भी गंभीर है ऐसे में इन दौरो में की जा रही घोषनाओं को अमली जामा पहनाने के लिये अधिक कर्ज उठाना सरकार की स्वाभाविक आवयश्कता होगी। लेकिन यह कर्ज उठाने के लिये वित्त विभाग के साथ अन्य विभागों का भी सहयोग लेना पड़ेगा। इस सहयोग के लिये प्रशासनिक रूतवे से अधिक आपसी सौहार्द ज्यादा आवयश्क रहता है। क्योेंकि यदि चुनावी वर्ष में हर अधिकारी नियम कानून के मुताबिक ही काम करने की बात करने लग जाये तो सरकार के लिये कठिनाई पैदा हो जाती है। चुनावी वर्ष के कारण ही सरकार पर विपक्ष के हमले तेज हो जाते है। माना जा रहा है कि विपक्ष आने वाले दिनों में आरोप पत्रा दागेगा। क्योंकि अब तक के तीन वर्ष के कार्यकाल में वीरभद्र सरकार धूमल की पूर्व सरकार के खिलाफ एक भी मामला प्रमाणित करने में सफल नही हो पायी है। धूमल शासन के खिलाफ हिमाचल आॅन सेल का जो राग अलाप कर वीरभद्र सरकार सत्ता में आयी थी उस दिशा में एक भी मामले पर कोई कारवाई सामने नही आयी है बल्कि जिन अधिकारियों ने बेनामी सौदों को पकड़ने में महत्वपूर्ण कारवाई करके हजारों बीघे जमीन चिन्हित करने का दावा किया है उन्हंे ईनाम के तौर पर वहां से हटा दिया गया है और इन मामलों में हर बार यही जवाब आता रहा कि जिलाधीशों को शीघ्र कारवाई के निर्देश जारी कर दिये गये हैं। विजिलैन्स में कई गंभीर मामलों की शिकायतें कई वर्षो से लंबित पड़ी हुई हंै। जिन पर निहित कारणों से कोई कारवाई नही की जा रही है। आने वाले दिनों में सरकार को घेरने के लिये कई गंभीर मामले सामने आ सकते हैं ऐेसे में वीरभद्र सिंह ने जो टीम अब खड़ी की है उसमें कितना आपसी सहायोग रह पाता है और फारखा कैसे सबको अपने साथ लेकर चल पाते हैं इस पर अभी से सबकी नजरे लग गयी हैं। क्योंकि अभी तक वीरभद्र सिंह जितने भी मामलों पर जो जो दावे करते रहे हंै वह सब केवल ब्यानोें तक ही रहे हंै और हकीकत नही बन पाये हंै।