Thursday, 18 December 2025
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क्या मुख्यमंत्री की बहस में उलझकर भाजपा सरकार की मदद कर रही है?

शिमला/शैल। क्या प्रदेश भाजपा भी खेमेबाजी का शिकार होती जा रही है? क्या भाजपा की प्राथमिकता जनहित से ज्यादा राजनीतिक हित होता जा रहा है? यह सवाल प्रदेश की वर्तमान राजनीतिक और वित्तीय स्थिति जिस मोड़ पर पहुंच चुकी है उसके परिदृश्य में उठने लगे हैं। क्योंकि प्रदेश में संयोगवश एक लम्बे अरसे से कांग्रेस और भाजपा में सत्ता बंटी हुई चली आ रही है। बल्कि यह स्थिति बन गई है कि कांग्रेस के बाद भाजपा और भाजपा के बाद कांग्रेस ने ही सत्ता में आना है। क्योंकि स्व. वीरभद्र सिंह से लेकर जयराम तक कोई भी पार्टी अपने को सत्ता में पुनः वापसी नहीं दिला पायी है। जब राजनेताओं की ऐसी मानसिकता बन जाती है तो उसमें सबसे ज्यादा नुकसान प्रदेश की जनता का होता है। आज प्रदेश एक लाख करोड़ के कर्ज तले आ चुका है। लेकिन किसी भी पार्टी ने सत्ता से यह नहीं पूछा कि आखिर इस कर्ज का निवेश कहां हुआ है? बढ़ते हुये कर्ज का असर महंगाई और स्थाई रोजगार पर पड़ता है यह एक स्थापित सच है। हिमाचल आज जिस तरह की वित्तीय स्थिति में पहुंच चुका है उसमें आने वाले समय में सरकारें चलाना और संभालना कठिन हो जायेगा। प्रदेश सरकार वित्तीय संकट के लिये पूर्व की भाजपा सरकार को दोषी करार देती आ रही है। लेकिन भाजपा ने एक दिन भी यह सवाल नहीं पूछा कि इस कर्ज का निवेश कहां हुआ और उससे प्रदेश को क्या लाभ हुआ। क्योंकि आज बेरोजगारी में प्रदेश देश के पहले छः राज्यों की सूची में शामिल हो चुका है। जब सरकार से सवाल नहीं पूछा जाता है तो उससे स्वभाविक रूप से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपा और कांग्रेस दोनों सरकारों का आचरण एक जैसा ही सामने आ रहा है। पूर्व की जय राम सरकार में भी भाजपा द्वारा बतौर विपक्ष दागे गये आरोप पत्र बिना जांच के रहे और आज सुक्खू सरकार में भी अपने ही आरोप पत्रों को ठंडा बस्ते में डाल दिया गया है। कांग्रेस ने तो विधानसभा चुनावों के दौरान पूर्व सरकार के खिलाफ सार्वजनिक रूप से आरोप पत्र जारी किया था। व्यवस्था परिवर्तन के सूत्र वाली सरकार में यह सामने आ गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को ही सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया जा रहा है। प्रदेश में पत्रकारों के खिलाफ दर्ज हुई चौबीस एफ.आई.आर. इसका प्रमाण है।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि प्रदेश की वर्तमान स्थिति में भाजपा की भूमिका क्या होती जा रही है। मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र नादौन में राजा नादौन की एक लाख कनाल से ज्यादा जमीन जिसमें राजस्व रिकॉर्ड में ताबे हकूक बर्तन बर्तनदारान का अन्दराज दर्ज है और इस कारण वह सरकार की जमीन थी वह कैसे बिक गई। 2017 में भाजपा ने हमीरपुर में कुछ पत्रकार वार्ताओं में इस मुद्दे का अपरोक्ष में जिक्र किया था। लेकिन उसके बाद आज तक इस पर खामोश है। यहां तक की देहरा विधानसभा उपचुनावों के दौरान चुनाव आचार संहिता के बीच कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक द्वारा लाखों रुपए महिला मण्डलों को बांटे गये। यह मामला प्रदेश विधानसभा में भी उछला और पूर्व विधायक होशियार सिंह ने विधिवत इसकी शिकायत राज्यपाल के पास दर्ज करवाई। लेकिन इस शिकायत पर न तो राज्यपाल की ओर से कोई कारवाई सामने आयी और न ही भाजपा ने इस पर मुंह खोला। आज प्रदेश भाजपा अगले मुख्यमंत्री की चर्चाओं में लग पड़ी है। मण्डी में अनुराग ठाकुर को लेकर लगे नारों और उस पर जयराम ठाकुर की प्रतिक्रियाओं से यह पूरी तरह नंगा होकर सामने आ गया है। जनता में यह सवाल उठना शुरू हो गया है कि क्या यह आज का आवश्यकता मुद्दा है? क्योंकि प्रदेश घोर वित्तीय संकट से घिरा हुआ है। अगले दो-तीन माह का समय भयंकर होने वाला है। ऐसे में प्रदेश भाजपा अभी से मुख्यमंत्री की चर्चाओं को उछाल कर क्या प्रदेश का ध्यान बंटाने की रणनीति पर नहीं आ गई है? क्या यह आचरण प्रदेश की वर्तमान स्थिति में आवश्यक है क्या इससे सरकार की मदद नहीं की जा रही है

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