Thursday, 18 December 2025
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क्या प्रशासनिक प्रमुखों को अतिरिक्त कार्यभार सौंपना सुक्खू सरकार का प्रयोग है या गलत राय

शिमला/शैल। 30 सितम्बर को छः माह का सेवा विस्तार भोगने के बाद प्रबोध सक्सेना 1990 बैच के आई.ए.एस. अधिकारी प्रदेश के मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत हो गये हैं। उनके स्थान पर 1988 बैच के आई.ए.एस. संजय गुप्ता को प्रदेश का अगला मुख्य सचिव बनाया गया है। लेकिन संजय गुप्ता को मुख्य सचिव का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है। जबकि प्रबोध सक्सेना के साथ ऐसा नहीं था। मुख्य सचिव का अतिरिक्त कार्यभार सौंपे जाने पर जो प्रतिक्रियाएं सरकार के फैसले पर जनता और पूर्व नौकरशाहों तथा विपक्ष की ओर से सामने आयी है उससे मुख्यमंत्री की कार्यशैली को लेकर एक अलग सी बहस चल पड़ी है। क्योंकि शायद ऐसा पहली बार हुआ है जब प्रदेश के मुख्य सचिव की जिम्मेदारी किसी को अतिरिक्त कार्यभार के रूप में सौंपी गयी हो। जबकि मुख्य सचिव के कार्यों के निष्पादन में अतिरिक्त कार्यभार के कारण कोई अड़चन नहीं आती है। ऐसे फैसले से फैसला लेने वाले के अपने ऊपर ही सवाल उठने लग जाते हैं। अब मुख्यमंत्री की प्रशासनिक समझ पर सवाल उठने लग पड़े हैं। क्योंकि इसी फैसले के साथ पुलिस और वन विभाग के प्रमुखों की नियुक्तियां भी चर्चा में आ गयी हैं। पुलिस प्रमुख और वन विभाग के प्रमुख को भी इन पदों की जिम्मेदारियां अतिरिक्त पदभार के रूप में ही सौंपी गयी हैं। नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने तो मुख्यमंत्री को अपना पद त्यागने तक की राय दे दी है। यह मुख्यमंत्री का अधिकार क्षेत्र है कि वह किसी भी अधिकारी को जब चाहे तब अपने पद से हटा सकता है। उसके लिये नियमित या अतिरिक्त कार्यभार से कोई अन्तर नहीं पड़ता है। जो अधिकारी इन प्रमुख पदों पर तैनात हैं उन्हें भी अपने कार्य निष्पादन में अतिरिक्त कार्यभार के तमगे से कोई फर्क नहीं पड़ता है।
इस फैसले से अनचाहे ही प्रबोध सक्सेना का मामला फिर से चर्चा का विषय बन गया है। क्योंकि सरकार ने उन्हें 30 सितम्बर को ही बिजली बोर्ड का तीन वर्ष के लिए अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। सक्सेना 30 सितम्बर को अपना छः माह का सेवा विस्तार भोगने के बाद सेवानिवृत हो गये हैं और इस सेवानिवृत्ति के बाद अध्यक्ष नियुक्त हुये हैं। लेकिन उनकी नियुक्ति को लेकर जो अधिसूचना जारी की गयी है उसमें सेवानिवृत्ति का कोई जिक्र नहीं है। इससे यही लगता है कि उन्हें मुख्य सचिव के पद से हटाकर बिजली बोर्ड के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। स्मरणीय है कि सक्सेना को मिले छः माह के सेवा विस्तार को प्रदेश उच्च न्यायालय में एक अतुल शर्मा ने चुनौती दे रखी है। इस चुनौती का आधार भारत सरकार के कार्मिक विभाग की अक्तूबर 2024 की अधिसूचना को बनाया गया है। क्योंकि सक्सेना पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम के खिलाफ सीबीआई अदालत में चल रहे आपराधिक मामले में सहअभियुक्त हैं कार्मिक विभाग की अधिसूचना सक्सेना की बतौर बिजली बोर्ड अध्यक्ष नियुक्ति में भी प्रासंगिक हो जाती है और इस नियुक्ति से अनचाहे ही सरकार की कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े हो जाएंगे।
यह नियुक्ति की अधिसूचना

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