Friday, 19 September 2025
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भ्रष्टाचार के आरोपों पर धारा 505(2) का दुरुपयोग महंगा पड़ सकता है।

  • मीणा की एफ आई आर से उभरी चर्चा
  • क्या 505(2) के प्रयोग से भ्रष्टाचार के खिलाफ उठती आवाजों को दबाने का प्रयास हो रहा है
  • प्रवीण गुप्ता की एफ आई आर की जांच रिपोर्ट कहां है

शिमला/शैल। प्रदेश पावर कॉरपोरेशन की कार्यप्रणाली को लेकर जारी हुआ दूसरा पत्र बम्ब वायरल होकर चर्चा में आने के बाद कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक हरिकेश मीणा ने इस पर पुलिस में शिकायत दर्ज करवाते हुए इसमें मामला दर्ज किये जाने की मांग की है। मीणा ने पत्र में दर्ज आरोपों को झुठ करार देते हुये इसे उनकी छवि खराब करने का प्रयास कहा है। पुलिस ने मीणा के आग्रह पर अज्ञात लोगों के खिलाफ आई.पी.सी. की धारा 500 और 505(2) के तहत मानहानि का मामला दर्ज कर लिया है। इसमें लगायी गयी धारा 505(2) से यह मामला अपने में ही रोचक बन गया है। क्योंकि यह धारा तब लगती है जब विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनायें पैदा करने के आशय से पूजा के स्थान आदि में झूठे ब्यान या भाषण देना आदि हो। ये गैर जमानती और संज्ञेय अपराध है। यदि धारा 505(2) न लगायी जाये तो धारा 500 में यह पुलिस का एफ आई आर दर्ज करने का योग्य मामला बनता ही नहीं है। धारा 505(2) को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय का 65-2022 को याचिका संख्या 2954 व्थ् 2018 में आया फैसला विस्तार से इसे स्पष्ट कर देता है। यह याचिका भी एक पुलिस अधिकारी द्वारा एक पत्रकार के खिलाफ ही दायर किया गया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान सर्वाेच्च न्यायालय के भी कई फैसले प्रसंग में आये हैं। इस फैसले में मुंबई उच्च न्यायालय ने धारा 505(2) की विस्तृत व्याख्या करते हुये कड़ी टिप्पणी के साथ एफ आई आर को रद्द किया है।

वर्तमान संदर्भ में यह चर्चा इसलिये उठाई जा रही है कि भ्रष्टाचार के मामलों पर प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष उठती आवाजों को दबाने के प्रयास में हिमाचल पुलिस धारा 505(2) के तहत अंसज्ञेय मामलों को संज्ञेय बनाने की नीति पर चल रही है। कानून के जानकारों के मुताबिक पावर कारपोरेशन को लेकर जो पत्र वायरल हुये हैं उनमें किसी भी गणित से धारा 505(2) पिक्चर में आयी ही नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है की क्या हिमाचल पुलिस का थाने तक का स्टाफ इस धारा को लेकर अपने में स्पष्ट नहीं है या ऊपर के निर्देशों पर मामलों को दबाने के प्रयासों में ऐसा किया जा रहा है। क्योंकि जयराम सरकार कार्यकाल में भी प्रवीण गुप्ता द्वारा थाना सदर शिमला में इसी धारा के तहत मामला दर्ज किया गया था जिसका जांच परिणाम आज तक सामने नहीं आया है।
वैसे तो पुलिस में किसी भी मामले की जांच करने के लिये सोर्स रिपोर्ट का भी प्रावधान है। क्योंकि कई बार शिकायतकर्ता नामतः सामने आने का साहस नहीं कर पाता है। अभी जो मामला पावर कारपोरेशन का वायरल पत्रों के माध्यम से चर्चा में आया है अब उसमें यह एफ आई आर दर्ज होने के बाद पत्रों में संदर्भित अधिकारियों/कर्मचारियों और राजनेताओं के ब्यान दर्ज करना और संबंधित रिकार्ड की जांच करना आवश्यक हो जायेगा। क्योंकि दर्ज हुई एफ आई आर का निपटारा तो अदालत में ही होना है चाहे उसमें चालान दायर हो या कैंसलेशन रिपोर्ट। अब यह मामले जन संज्ञान में आ चुके हैं। फिर पावर कारपोरेशन में जो पटेल इंजीनियरिंग कंपनी के संदर्भ में है वह पहले से ही सीबीआई के रॉडार पर चल रही है। ऐसा माना जा रहा है कि जिस एफ आई आर के माध्यम से आवाज दबाने का प्रयास किया गया है वह अब कई लोगों के गले की फांस बन जायेगी क्योंकि पत्रों में दर्ज आरोपों की जांच किया जाना आवश्यक हो जायेगा। धारा 505 (2) का दुरुपयोग महंगा पड़ सकता है।

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