Friday, 19 September 2025
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मुख्यमन्त्री की चुनौती पर पत्र बम्ब पहुंचा ई.डी. में

  • जयराम और बिंदल ने की थी जांच की मांग
  • सुक्खू ने कहा था ई.डी. से करवा ले जांच
  • प्रबोद्ध सक्सेना है पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष और मीणा हैं एम.डी.
  • शांग-टांग का काम कर रही पटेल इंजीनियरिंग पहले से ही चल रही है ई.डी के निशाने पर

शिमला/शैल।  जिस बेनामी पत्र बम्ब ने प्रदेश की राजनीति को पिछले दिनों हिला कर रख दिया था उसकी जांच करवाये जाने की मांग नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राजीव बिंदल ने अलग-अलग ब्यानों में की थी। इस मांग की प्रतिक्रिया में मुख्यमन्त्री सुक्खू ने भी खुली चुनौती देते हुये कहा था कि भाजपा चाहे तो इसकी जांच ई.डी. या सी.बी.आई. से करवा ले। यह बेनामी पत्र प्रधानमन्त्री को संबोधित था। इसमें अन्य आरोपों के साथ किन्नौर में निर्माणाधीन चल रही 450 मेगावाट की शांग टांग परियोजना में भ्रष्टाचार होने की भी आरोप है। वर्ष 2012 से इस परियोजना का निर्माण कार्य पटेल इंजीनियरिंग कम्पनी के पास है। यह काम जयराम सरकार के कार्यकाल में ही पूरा हो जाना चाहिये था लेकिन हो नहीं पाया। क्योंकि शायद कम्पनी परियोजना में कुछ डेविएशन चाहती थी। इस डेविएशन के कारण निर्माण लागत में बढ़ौतरी होनी थी इसलिए यह मामला तब कानूनी राय के लिये शायद अधिवक्ता भोगल के पास भेजा गया था। इस पर शायद कानूनी राय यह आयी थी कि इसकी शर्तों में बदलाव नहीं किया जा सकता और यह मामला उसी स्टेज पर रूक गया था।
अब सरकार बदलने के बाद यह मामला फिर उठा। डेविएशन और उसके कारण लागत बढ़ने तथा परियोजना पूरी होने का समय बढ़ाने का प्रकरण फिर चर्चा में आया। कहा जा रहा है कि कानूनी राय को नजरअन्दाज करते हुये कम्पनी के आग्रह पर डेविएशन और लागत बढ़ने की स्वीकृति प्रदान कर दी गयी है। यह होने के बाद कम्पनी को दो सौ करोड़ की राशि भी जारी कर दिये जाने की चर्चा है। यह डेविएशन किस स्तर पर हुई और इससे निर्माण लागत में कितनी बढ़ौतरी होगी तथा परियोजना पूरी होने में और कितना समय लगेगा यह सब जांच के विषय हैं। स्मरणीय है कि पटेल इंजीनियरिंग कम्पनी पर जम्मू कश्मीर में चल रही कीरु परियोजना को लेकर उठी कुछ शिकायतों पर ई.डी. पहले ही छापेमारी कर चुकी है। शायद इस परियोजना पर सत्यपाल मलिक ने बतौर राज्यपाल अपने कार्यकाल में कुछ सवाल उठाये थे और मामला ई.डी. तक जा पहुंचा था। इसी पृष्ठभूमि में अब-जब शांग-टांग परियोजना को लेकर यह सवाल उठे हैं कि कानूनी राय को नजरअन्दाज करके डेविएशन अनुमोदित कर दी गयी है तो मामला स्वतः ही गंभीर हो जाता है।
फिर इस मामले में तो स्वयं मुख्यमंत्री ने जयराम को चुनौती दी है कि वह चाहे तो ई.डी. से जांच करवा ले। मुख्यमंत्री की इस ललकार के बाद प्रधानमन्त्री से यह मामला ई.डी. तक जा पहुंचा है। इस पर किसी राजनीतिक ज्यादती का भी आरोप नहीं लगाया जा सकता। इस जांच में पावर कारपोरेशन की पूरी कार्यप्रणाली पहले दिन से लेकर आज तक जांच के दायरे में आ जायेगी। यही नहीं पत्र बम्ब में लगे अन्य आरोपों की जांच से पूरी सरकार की कार्यप्रणाली केन्द्र में आ जायेगी और विपक्ष को फिर एक मुद्दा मिल जायेगा। क्योंकि पत्र में लगाये गये आरोपों के घेरे में मुख्यमंत्री के अपने कार्यालय और विभाग आ जाते हैं। ई.डी. के शिमला कार्यालय तक पहुंच चुके इस मामले से प्रशासन में कई लोगों के हाथ पांव फूलना शुरू हो गये हैं।

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