पहले ही विस्तार में गड़बड़ाया क्षेत्रीय और जातीय सन्तुलन
तीन पद रखे गये खाली
मन्त्रीमण्डल विस्तार के साथ ही डीजल के दाम बढ़ाना महंगा पड़ सकता है
शिमला/शैल। सुक्खू मन्त्रीमण्डल का पहला विस्तार हो गया है। इस विस्तार में सात विधायकों को मन्त्री बनाया गया है। जिनमें कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से चौधरी प्रो.चन्द्र कुमार मण्डी संसदीय क्षेत्र से जगत सिंह नेगी और शिमला संसदीय क्षेत्र से पांच सर्व श्री धनीराम शांडिल, हर्षवर्धन चौहान, रोहित ठाकुर, अनिरुद्ध सिंह और विक्रमादित्य सिंह मंत्री बने हैं। अभी मन्त्री परिषद में तीन स्थान खाली रखे गये हैं। मन्त्रीमण्डल के इस गठन में क्षेत्रीय और जातीय दोनों संतुलित संतुलन यहीं गड़बड़ा गये हैं क्योंकि पन्द्रह विधायकों वाले प्रदेश के सबसे बड़े जिले से केवल एक ही मन्त्री लिया गया है। जबकि शिमला संसदीय क्षेत्र से पांच और आठ विधायकों वाले शिमला जिला से तीन मन्त्री लिये गये हैं। अभी बिलासपुर जिला को प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है और मण्डी भी खाली रह गया है। यह स्थिति जनता और विधायकों में रोष पैदा करेगी यह स्वभाविक है। इसका असर निश्चित तौर पर अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा यह भी तय है। ऐसे में विश्लेषकों के सामने यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि एक माह के भीतर ही सुक्खू सरकार के लिये इस तरह के हालात क्यों बनने लगे हैं। इस स्थिति को समझने के लिये चुनाव से पूर्व की स्थितियों पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। यह एक कड़वा सच है कि स्व. वीरभद्र सिंह अपने अन्तिम सांस तक प्रदेश कांग्रेस के एक छत्र नेता थे और उस वटवृक्ष के तले उनकी इच्छा के विरुद्ध कोई भी नेता पनप नहीं पाया है। स्व. पंडित सुखराम ने उनसे टकराने का प्रयास किया और कांग्रेस से बाहर तक होना पड़ा। पंडित सुखराम ने अपने समय में कुछ युवा चेहरों को उभारने का प्रयास किया था। सुखविंदर सिंह सुक्खू भी उनमें से एक रहे हैं और यही एक होना स्व. वीरभद्र सिंह को यदा-कदा खटखटा रहा। इसी मानसिकता में सुक्खू को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाने के लिये वह आनन्द शर्मा के प्रस्ताव पर सहमत हुये और कुलदीप राठौर पार्टी के अध्यक्ष बनाये गये। सुक्खू का वीरभद्र सिंह के साथ टकराव ही सुक्खू की ताकत बन गया। वीरभद्र सिंह की मृत्यु के बाद हाईकमान की नजरों में सुक्खू एक बड़ा नाम बन गये। क्योंकि आनन्द शर्मा और कौल सिंह जी-23 का हिस्सा बन गये। उधर वीरभद्र सिंह की मृत्यु के बाद उनके राजनीतिक वारिसों में किसी एक नाम पर सहमति हो नहीं पायी। बल्कि वीरभद्र सिंह की मृत्यु के बाद कांग्रेस से भाजपा में जाने वाले संभावितों की संख्या में वीरभद्र समर्थकों के ज्यादा नाम चर्चित होते रहे हैं। बल्कि चुनाव परिणामों के बाद भी जिस तरह की जितनी खबरें प्रतिभा सिंह को लेकर छपी है वह सब भी इसी आयने से देखी गयी है। इस परिदृश्य में चुनाव परिणामों के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू, प्रतिभा सिंह और मुकेश अग्निहोत्री मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदारों में एक बराबर बने रहे हैं। शायद सुक्खू अपने में बहुत ज्यादा आश्वस्त नहीं थे इसलिए वह प्रशासनिक अधिकारियों में से अपनी टीम का पहले चयन नहीं कर पाये और उन्हें पिछली सरकार के विश्वस्तों पर ही निर्भर करना पड़ा। इस निर्भरता में यह तक आकलन नहीं हो पाया कि जो फैसले लिये जा रहे हैं उनका कानूनी आधार कितना पुख्ता है। प्रशासनिक फैसले के साथ ही जब डीजल के दाम वैट के माध्यम से बढ़ा दिये गये तो यह धारणा और भी पुख्ता हो जाती है कि प्रशासन की निष्ठा स्पष्ट नहीं है। क्योंकि जनता महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त थी इसलिये उसने कांग्रेस को चुना। लेकिन वैट के माध्यम से डीजल के रेट बढा़ने और नये मन्त्रीयों तथा मुख्य संसदीय सचिवों के लिये महंगी गाड़ियां खरीदने की खबरें एक साथ हो तो उसका आम आदमी पर क्या असर पड़ेगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। क्योंकि जब प्रशासन ने ओ.पी.एस. के लिये एन.पी.एस. में दिये गये आठ हजार करोड़ केन्द्र से वापस मांगे तब उसे पता था कि इस एक्ट में पैसे वापस दिये जाने का प्रावधान नहीं है। इसलिये कर्ज लेने के प्लान बी पर सरकार को चला दिया जिसके परिणाम दूरगामी होंगे।
जब सरकार वित्तीय संकट से जूझ रही हो तो उसी समय यदि उसके राजनीतिक समीकरण भी गड़बड़ाने लग जायें तो ऐसी स्थिति से बाहर निकलना आसान नहीं होगा।