मुख्यमंत्री द्वारा राहुल को पप्पू प्रचारित करने से उठी चर्चा।
क्या मोदी के ड्रोन ज्ञान पर चर्चा का माहौल तैयार कर रहे हैं मुख्यमंत्री
शिमला/शैल। सत्ता में वापसी का दावा करना और उस दावे पर जन विश्वसनीयता बनाने के लिए अपनी कथित उपलब्धियों का करोड़ों के विज्ञापन जारी करके जनता में बखान करने का सरकार और सत्तारूढ़ दल को पूरा-पूरा अधिकार है। क्योंकि उन दावों की जमीनी सच्चाई प्रचार के लिये जारी हुए विज्ञापनों में नहीं बल्कि जनता के सामने यथास्थिति खड़ी होती है। आज चुनाव की पूर्व संध्या पर जिस सरकार के विशेषज्ञ डाक्टर अपनी मांगों के लिये हड़ताल पर जाने को विवश हो जायें जहां राजधानी के साथ सटे स्कूल में ही कोई भी अध्यापक न होने का आरोप लगे जहां लंपी रोग से त्रस्त जनता के सामने पशु औषधालय में एक-एक डॉक्टर के हवाले चार-चार अस्पताल हों जहां अस्पताल को जमीन देने के लिये गौशाला से गाय औणे पौणेे दामों में अपने को बेचने के आरोप लगने लग जायें तो ऐसी सच्चाई को विज्ञापनों के आवरण में ढकने के सारे प्रयास बहुत बौने पड़ जाते हैं। ऐसी कड़वी सच्चाई के सामने पर जब कोई मुख्यमंत्री विपक्ष के लिये ऐसी भाषा का इस्तेमाल करने पर आ जाये कि ‘‘कांग्रेस तो तब आयेगी जब हम उसे आने लायक रखेंगे’’ तब न चाहते हुए भी यह सोचना पड़ जाता है कि यह भाषा किसी अहंकार के कारण है या सच्चाई के बेनकाब हो जाने की हताशा से उपजी पीड़ा का प्रमाण है। क्योंकि मुख्यमंत्री ने इस भाषा का प्रयोग प्रधानमंत्री की बिलासपुर रैली के बाद करना शुरू किया है। बिलासपुर में जब शीर्ष भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश में हुए सारे विकास का श्रेय एक स्वर में नरेन्द्र मोदी के नाम कर दिया और प्रधानमंत्री ने आगे वह श्रेय जनता के नाम कर दिया तब ऐसी भक्ति से अभिभूत हुए प्रधानमंत्री ने जनता से अपना ड्रोन ज्ञान सांझा करते हुए यहां तक सपना दिखा दिया कि किन्नौर का आलू भी इससे बड़ी मंडियों में पहुंचाया जा सकता है। प्रधानमंत्री के इस ज्ञान पर विवश विपक्ष ने कोई बड़ी प्रतिक्रियाएं नहीं दी। क्योंकि इस तरह के ज्ञान के कई उदाहरण देश के सामने आ चुके हैं। परन्तु इस ज्ञान के बोझ से मुख्यमंत्री इतने दब गये हैं कि उन्हें लगा कि कहीं जनता सच में ही ड्रोन की मांग न करने लग जाये। इस मांग से जनता में कोई मुद्दा न खड़ा हो जाये इसलिये मुख्यमंत्री ने इस संभावित चर्चा का रुख कांग्रेस की ओर मोडते हुये तंज कस दिया कि कांग्रेस में उथल-पुथल पप्पू के कारण है और इसे प्रमाणित करने के लिए राहुल गांधी के नाम लगे आटा लिटरों में तोलने के बयान का हवाला भी दे दिया। राहुल गांधी को पप्पू प्रचारित करने में भाजपा ने आई टी सैल के माध्यम से मीडिया में लाखों रुपया निवेशित किया है। यह कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन में सामने आ चुका है। आटा लिटरों में तोलने का बयान कैसे कांट-छांट करके तैयार किया गया था यह भी सामने आ चुका है। बल्कि इस बयान के बाद जब ‘‘बेटी बचाओ-बेटी पटाओ’’ का ब्यान पलटवार के रूप में सामने आया तब यह सारा प्रचार स्वतः ही बन्द हो गया। इस तरह से ब्यानों को तोड़मरोड़ कर पेश करने की संस्कृति आई टी सैल के कार्यकर्ताओं तक तो कुछ देर के लिए चल जाती है और उसे कोई ज्यादा अहमियत भी नहीं दी जाती है। लेकिन जब ऐसे बयानों का सहारा मुख्यमंत्री को अपने विरोधियों पर हमला करने के लिये लेना पड़ जाये तब सारे संदर्भ और अर्थ बदल जाते हैं। विश्लेषकों के लिये भी यह आकलन का मुद्दा बन जाता है। क्योंकि आज जयराम सरकार अपनों के ही पत्र बम्बों से इतनी घिरी हुई है कि इनमें लगाये गये आरोपों की जांच कर इन्हें स्थाई रूप से विराम देने की बजाय सरकार के सलाहकारों ने इन पत्रों के लेखकों की तलाश की ओर रुख कर लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि न तो इन पत्रों के लेखकों को सरकार आज तक चिन्हित कर पायी और न ही इनमें लगे आरोपों से मुक्त हो पायी। जबकि सरकार की समझ के परिणाम स्वरुप यह पत्र अधिकारिक रूप से रिकॉर्ड पर आ चुके हैं। कुछ पत्रों पर तो मुख्यमंत्री के बयान की बाध्यता तक बन जाती है। इस वस्तु स्थिति में यह पत्र बम यदि अब चुनाव में एक मुद्दा बनकर सामने आ जाते हैं तो किसी को भी हैरत नहीं होगी। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या सरकार इन पत्र बम्बों की आंच से कांग्रेस को तोड़फोड़ का डर दिखाकर या राहुल गांधी को पप्पू प्रचारित कर बच पायेगी।