धर्मशाला पर्यटन निगम में वेतन देने का संकट हुआ खड़ा
शिमला/शैल। जयराम सरकार के कार्यकाल का अंतिम वर्ष चल रहा है। इसलिए यह वर्ष चुनावी वर्ष भी है। इस नाते सरकार की सारी घोषणाओं जो चुनाव घोषणा पत्र में की गयी थी और उसके बाद हर वर्ष पेश किये गये बजट प्रपत्रों में हुई उन सबका आकलन इस वर्ष में होना स्वभाविक है। इन सारी घोषणाओं को यदि एक साथ जोड़ा जाये तो इनकी संख्या कई दर्जन हो जाती है। इस चुनावी वर्ष में यह देखा जायेगा कि इन घोषणाओं की जमीनी हकीकत क्या है। सरकार के सभी विभागों के बड़े कार्यों का निष्पादन ठेकेदारों के माध्यम से करवाया जाता है। इसके लिये ठेकेदारों को ठेके दिये जाते हैं। ठेकेदारों द्वारा किये जा रहे कार्यों की जानकारी रखने के लिए सरकार ने 2018-19 के बजट भाषण में ही लोक निर्माण विभाग एवं सिंचाई तथा जन स्वास्थ्य विभागों में ूवतो डंदंहमउदमज प्दवितउंजपवद ैलेजमउ लागू करने की घोषणा की थी। इस योजना का अर्थ है कि ठेकेदारों और उसके द्वारा किये जा रहे काम के हर पक्ष की सूचना सरकार के पास उपलब्ध रहेगी।
अब जब शिमला और अन्य क्षेत्रों में भारी बर्फबारी के चलते सारे रास्ते रुक गये तो बर्फ हटाने रास्ते खोलने आदि के कार्यों के लिये इन ठेकेदारों की सेवाएं सरकार और नगर निगम को लेने की आवश्यकता पड़ी। तब यह सामने आया कि ठेकेदार तो हड़ताल पर हैं। और जब तक उनकी समस्याएं हल नहीं होंगी वह काम नहीं करेंगे। ठेकेदारों की समस्याओं में सबसे पहले यही आया कि उनकी 300 करोड़ से अधिक की पेमेंट का वर्षों से भुगतान नहीं हो रहा है। इसलिए वह काम नहीं करेंगे। ठेकेदारों की कुछ पेमेंट रूके होने का मुद्दा विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी एक प्रश्न के माध्यम से उठा था। इससे यह सवाल उठता है कि जब सरकार ने ठेकेदार और उनके कार्यों को लेकर एक सूचना तंत्र खड़ा करने की बात पहले ही बजट में कर दी थी तो फिर उसे ठेकेदारों की समस्याओं की जानकारी क्यों नहीं मिल पायी। लोक निर्माण विभाग का प्रभार स्वयं मुख्यमंत्री और सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग का प्रभार मुख्यमंत्री के बाद दूसरे सबसे ताकतवर मंत्री ठाकुर महेंद्र सिंह के पास है। सरकार कर्ज लेने के मामले में यह आरोप सह रही है कि प्रदेश को कर्ज के चक्रव्यू में फंसा दिया गया है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के समय-समय पर आये ब्यानों को सही माना जाये तो केंद्र सरकार प्रदेश को 2 लाख करोड से अधिक सहायता दे चुकी है। यह होने के बावजूद भी यदि सरकार ठेकेदारों का भुगतान न कर पाये और उन्हें हड़ताल करने की नौबत आ जाये तो सरकार के वित्तीय प्रबंधन और उसकी प्राथमिकताओं का अंदाजा लगाया जा सकता है। स्मरणीय है कि एक समय सबसे प्रभावशाली माने जाने वाले मंत्री ठाकुर महेंद्र सिंह की बेटी भी उसके पति का यही भुगतान न होने के लिए मण्डी में धरना दे चुकी हैं। इस धरने पर मुख्यमंत्री ने यह कहा था कि वह विभाग से यह पता करेंगे कि भुगतान क्यों रुका है।
यही नहीं धर्मशाला में पर्यटन निगम के करीब सौ कर्मचारियों को पिछले दो-तीन माह से वेतन नहीं मिल पाने की चर्चा है। निगम के पास पैसा न होने के कारण वेतन नहीं दिया जा सका है। पर्यटन निगम को सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 66.07 लाख का भुगतान नहीं किया गया है। धर्मशाला में शीत सत्र के दौरान माननीयों और अधिकारियों के आवभगत की जिम्मेदारी पर्यटन निगम को दी गयी थी। उसके एवज में यह भुगतान नहीं हो पाया है। यहां तक कि विधानसभा सचिवालय भी 3.80 लाख नहीं दे पाया है। स्मार्ट सिटी और केंद्रीय विश्वविद्यालय भी 5 लाख का भुगतान नहीं कर पाये हैं। पर्यटन निगम का अपना प्रशासन नियमों कानूनों का इतना जानकार है कि 40 करोड़ के टेंडरे की अरनैस्ट मनी बीस हजार ले रहा है। जो कि सरकार के वित्तीय नियमों का सीधा उल्लंघन है। 16 हाटेलों को लीज पर देने के मामले की सूचना पहले ही कैसे लीक हो गयी थी यह आज तक रहस्य बना हुआ है। संयोगवश पर्यटन का प्रभार भी मुख्यमंत्री के पास है। गृह विभाग में पुलिसकर्मियों के परिजनों को आंदोलन पर आना पड़ा है। एनएचएम और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी सड़कों पर आने के लिये विवश हो रहे हैं। ऐसे में चुनावी वर्ष में इन सारे मुद्दों का एक साथ उठ खड़े होना सरकार के लिए घातक माना जा रहा है। राजनीतिक दृष्टि से जहां कांगड़ा के विभाजन और वहां से कार्यालयों को मण्डी ले जाने का सिलसिला शुरू कर दिया गया है। उसे भी राजनीतिक हलकों में गंभीरता से ले लिया जा रहा है।