जयराम भी लगे मुफ्त बिजली देने
कृषि मंत्री ने शुरू की पदयात्रा लेकिन किसानों की आय कैसे होगी दोगुनी इस पर रहे खामोश
शिमला/शैल। जयराम मंत्रिमंडल में फेरबदल होगा और चार-पांच चेहरे इसकी चपेट में आयेंगे। यह चर्चा मीडिया के एक हिस्से में पूरी प्रमुखता से चल रही है। कहा जा रहा है कि यह सब पांच राज्यों के चुनाव के बाद होगा। यह चुनाव परिणाम दस मार्च को आयेंगे और विधानसभा का बजट सत्र इसी माह के अंतिम सप्ताह में शुरू हो जायेगा। इसका अर्थ होगा कि बजट सत्रा के दौरान कोई फेरबदल होना संभव नहीं होगा। इसी दौरान कांगड़ा जिला को तोड़कर यहां दो नये जिले बनाने की चर्चा भी चली । जिले तो अभी तक नहीं बने लेकिन कांगड़ा से कुछ विभागों के कार्यालयों को यहां से मंडी ले जाने का क्रम शुरू हो गया है। इसमें क्या-क्या घटता है यह देखना दिलचस्प होगा। हमीरपुर के कुछ चुनाव क्षेत्रों में भाजपा बनाम भाजपा शुरू हो गया है। कांगड़ा के नूरपुर से निक्का राम ने तो स्पष्ट कर दिया है कि वह टिकट न मिलने पर आजाद होकर चुनाव लड़ेंगे। कुछ लोग जिस तर्ज पर चेतन बरागटा का टिकट परिवारवाद के नाम पर कटा उसी तर्ज पर और टिकट काटे जाने की भूमिका तैयार करने लग गये हैं। इनके निशाने पर महेंद्र सिंह ठाकुर चल रहे हैं। वैसे सारे क्षेत्रों में विधायकों के अतिरिक्त दूसरे समांतर सत्ता केंद्र प्रभावी रूप से टिकट की दावेदारी के लिए तैयार हो गये हैं। पिछली बार उम्मीदवार रहे बहुत सारे लोगों के टिकट इस बार काटे जायेंगे। यह संकेत धर्मशाला में कार्यकारिणी की हुई विस्तारित बैठक के बाद से आने शुरू हो गये थे। इस तरह अगर प्रदेश भाजपा सरकार में अब तक घटे सब कुछ को इकटठे रख कर आंकलित किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि एक बड़ा वर्ग मुख्यमंत्री को पार्टी का एकछत्र नेता स्थापित करने के प्रयासों में लगातार लगा हुआ है। इसी वर्ग ने उपचुनाव में चार शुन्य होने को धूमल खेेमें के सिर लगाने का प्रयास किया था जिस पर किसी ने कोई प्रतिक्रिया तक नहीं दी है।
मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चाओं के साथ ही जयराम के कुछ मंत्रियों ने अपने चुनाव क्षेत्रों में जनसंपर्क अभियान भी शुरू कर दिया है। संपर्क से समर्थन की कड़ी में कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने कई पंचायतों में पदयात्रा कर ली है और इस यात्रा के दौरान अपनी उपलब्धियों का ब्योरा लिखित में लोगों के बीच रखा है। यह दूसरी बात है कि प्रदेश का कृषि मंत्री होने के नाते अपने लोगों को यह जानकारी नहीं दे पाये हैं कि उनकी सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए व्यवहारिक रूप से क्या कदम उठाये हैं।
शायद वह कुछ किसानों को सम्मान निधि दिये जाने को ही आय दोगुनी होना मान रहे हैं। वैसे तो मुख्यमंत्री ने भी विद्युत उपभोक्ताओं को बिजली बिलों में बड़ी राहत देने की घोषणा की है। उपभोक्ताओं को दी जाने वाली राहतओं की भरपाई 92 करोड़ बिजली बोर्ड को देकर करेगी। लेकिन यह ऐलान करते हुए यह स्पष्ट नहीं किया गया कि कर्ज के चक्रव्यू में उलझी सरकार बिजली बोर्ड को यह 92 करोड कहां से देगी। क्या इसके लिए कर्ज लिया जायेगा या दूसरे उपभोक्ताओं की जेब पर डाका डालकर यह खैरात बांटी जायेगी।
इस परिदृश्य में यहां बड़ा स्वाल होगा जब पार्टी में अधिकांश स्थानों पर भाजपा बनाम भाजपा का वातावरण तैयार किया जा रहा है और सबसे बड़े जिले कांगड़ा के विभाजन और वहां से कार्यालयों को बदलकर मंडी लाने की नीति पर काम हो रहा है तो क्या इसे मंडी बनाम शेष हिमाचल करने की कवायद की जा रही है। या एक ऐसा वातावरण खड़ा किया जा रहा है जिसमें ‘‘मैं हूं और रहूंगा’’ को प्रैक्टिकल शक्ल देने की योजना बनाई जा रही है। क्या कांगड़ा से कार्यालयों को मंडी ले जाने पर वहां का नेतृत्व और जनता इसे खामोश रहकर स्वीकार कर लेगी। यदि कांगड़ा में इसका खुला विरोध होना शुरू हो जाता है तो क्या वहां से भाजपा कुछ भी हासिल करने में सफल हो पायेगी। फिर अभी तक केंद्रीय विश्वविद्यालय के मुद्दे पर भी व्यवहारिक रूप से कुछ नहीं हो पाया है। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के साथ ही हिमाचल के नेतृत्व का प्रश्न एक बार फिर चर्चा का विषय बनेगा। शायद इसीलिए मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल की अटकलों को अब तक अमली शक्ल नहीं दे पाये हैं। उपचुनाव में चार शुन्य होने के बाद विधानसभा परिणामों को लेकर कोई भी आश्वस्त नहीं है। विधानसभा परिणामों का असर लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा यह तय है। इसलिए यह माना जा रहा है कि इन व्यवहारिक स्थितियों का संज्ञान लेकर प्रदेश नेतृत्व पर कोई फैसला लिया जायेगा। क्योंकि उपचुनाव की हार के लिए धूमल ग्रुप को जिम्मेदार ठहराने से प्रदेश भाजपा के अंदर उठा हुआ तूफान बहुत गंभीर हो चुका है।