Friday, 19 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

वेब पोर्टल मीडिया कर्मियों ने भी सरकार की पॉलिसी पर उठाये सवाल

चार साल से लगातार कोरे आश्वासन दिये जाने का लगाया आरोप
विधानसभा तक में नहीं दिया जा रहा जवाब
सरकारी संसाधनों को व्यक्तिगत संपत्ति मानकर किया जा रहा बंटवारा

शिमला/शैल। प्रदेश के वेब पोर्टल मीडिया कर्मियों ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को चौथी बार मीडिया पॉलिसी बनाने के लिये ज्ञापन सौंपा है। मण्डी में मीडिया सलाहकार पुरुषोत्तम गुलेरिया से मिलकर एनयूजे ने भी मीडिया कर्मियों से भेदभाव किये जाने के आरोप लगाये हैं। यह आरोप लगाया है कि पिछले 4 वर्षों में हर बार यह ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं। हर बार पॉलिसी बनाने के लिये आश्वासन दिये गये। अधिकारियों को निर्देश भी दिये गये। लेकिन हर बार परिणाम शुन्य ही रहा। इस आरोप के साथ ही एक कड़वा सच यह भी है की विधानसभा में भी हर बार यह सवाल पूछा जाता रहा है की सरकार ने किन अखबारों और अन्य प्रचार माध्यमों को कितने-कितने विज्ञापन दिये हैं। इन सवालों का हर बार एक ही जवाब आया है की सूचना एकत्रित की जा रही है। व्यवहार में यह रहा है कि जिस भी समाचार पत्र में सरकार की नीतियों पर उससे सवाल पूछने का साहस किया है उसके न केवल विज्ञापनों पर ही रोक लगाई गई है बल्कि उसके खिलाफ झूठे मामले तक खड़े किये गये हैं। जब भी इस बारे में निदेशक और सचिव लोक संपर्क से इसका कारण पूछा गया तो यह जवाब मिला कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है। लोक संपर्क विभाग की यह वस्तुस्थिति है और इसके प्रभारी मंत्री ही मुख्यमंत्री हैं।
इस व्यवहारिकता से यह सवाल उठता है कि जो सरकार चार वर्षों में मीडिया को भी कोरे आश्वासनों से टरकाती आ रही है उसकी आम आदमी के लिए घोषित योजनाओं की जमीनी हकीकत क्या होगी। यह भी सबके सामने है कि कुछ गिने-चुने अखबारों को उनके गिने-चुने रिपोर्टरों के माध्यम से करोड़ों के विज्ञापन भी इसी सरकार ने दिये हैं और इन रिपोर्टरों को इससे करोड़ों का कमीशन भी मिला है। यह भी स्वाभाविक है कि यह सब संबद्ध अधिकारियों और राजनीतिक सत्ता के इशारे के बिना संभव नहीं हुआ है। इससे यही प्रमाणित होता है कि सरकार में मत भिन्नता के लिये कोई स्थान नहीं है और उसको दबाने के लिये सरकारी साधनों का खुलकर दुरुपयोग किया गया है। शायद इसीलिए विधानसभा में जानकारी आज तक नहीं रखी गयी है। चर्चा है कि इसमें बड़े स्तर पर बड़ा घपला हुआ है शायद इसी सब को दबाने के लिए विभाग को आउटसोर्स करने का भी प्रयास किया जाता रहा है। यह तय है कि देर सबेर यह एक बड़ी जांच का विषय बनेगा।
इस सब से हटकर एक बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है की चुनावी लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक मुख्यमंत्री यह सब करने का साहस कैसे कर सकता है । सरकारी संसाधनों का एक तरफा बंटवारा कैसे कर सकता है। जबकि मीडिया के बड़े वर्ग पर गोदी मीडिया का टैग लगने से उसकी विश्वसनीयता शुन्य हो चुकी है। इसी का परिणाम है कि डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद उपचुनाव में चार शुन्य की शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। आने वाले विधानसभा चुनाव में भी इसका परिणाम सामने आयेगा यह तय है। क्योंकि जनता उन रिपोर्टों पर ज्यादा विश्वास करती है जिनमें प्रमाणिक दस्तावेजों के साथ सरकार से तीखे सवाल पूछे जाते हैं। यह निश्चित है कि आने वाले दिनों में हर रोज ऐसे सवाल पूछे जाएंगे। इन सवालों का असर विधानसभा चुनाव से आगे निकलकर लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा यह भी स्पष्ट है।
ऐसे में यह सवाल भी पूछा जाने लगा है कि क्या यह सब भाजपा संघ की नीति पर अमल करते हुए जयराम कर रहे हैं? या उन पर कुछ लोगों ने इतना कब्जा कर रखा है की विधानसभा में भी मीडिया को लेकर आये सवाल का जवाब रखने को अहमियत नहीं दे रहे हैं। पार्टी भी सरकार के इस आचरण पर पूरी तरह ख़ामोशी बनाये हुये है। उससे और भी स्पष्ट हो जाता है की इनके लिए लोकतांत्रिक मर्यादाओं की अनुपालन से ‘ऋण कृत्वा घृतं पीबेत’ ज्यादा अहमियत रखता है।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search