
शिमला/शैल। क्या प्रदेश सरकार कोरोना के संकट से निपटने में असमर्थ होती जा रही है। क्या कोरोना में आम आदमी के लिये नियम अलग हैं और विशिष्ठ व्यक्तियों के लिये अलग हैं। यह सवाल रोहडू में आयोजित किये गये एक टूर्नामैन्ट से उठे हैं आरोप है कि इस टूर्नामैन्ट में आयोजकों ने कोरोना को लेकर जारी किये गये निर्देशों की जमकर उल्लंघना की है। इसमें करीब एक हज़ार लोगों की भीड़ होने के साथ ही मास्क न पहनने और न ही सोशल डिस्टैन्सिंग की कोई परवाह की गयी है। स्वाभिमान पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डा.के.एल शर्मा के मुताबिक इस टूर्नामैन्ट में शामिल क्रासा टीम के कोच सुभाष तेगटा कोरोना संक्रमित पाये गये हैं। बालीवाल का यह टूर्नामैन्ट उस समय हुआ है जब मास्क न पहनने के लिये 5000 रूपये जुर्माना और जेल जाने तक के निर्देश जारी हो चुके हैं। इस आयोजन के मुख्य अतिथि भी शिक्षा मन्त्री सुरेश भारद्वाज के बेटे रहे हैं। इस आयोजन को लेकर प्रशासन पर यह सवाल आता है कि जब शादी ब्याह और अन्तेष्ठी तक में लोगों के शामिल होने की संख्या पर सीमा लगा दी गयी है तो फिर इस आयोजन की अनुमति कैसे दे दी गयी? इसके आयोजकों के खिलाफ कोई कारवाई क्यों नही की गयी। वहां पर बैठा प्रशासन क्या कर रहा था। कोरोना से निपटने के लिये सरकार के नियमों/निर्देशों और उसकी नियत का आकलन इससे किया जा सकता है।
कोरोना से प्रदेश में अब तक एक दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है और संक्रमितों की संख्या भी दो हजार से पार हो गयी है। इसके मामले लगातर बढ़ते जा रहे है। इसका शिखर आना अभी बाकी है। नाहन के गोबिन्दगढ़ में इसके सामुदायिक फैलाव की स्थिति आ गयी है। राजधानी शिमला में सचिवालय तक पहुंच गया है। मुख्यमन्त्री कार्यालय बन्द करना पड़ा है। प्रदेश का हर जिला इससे प्रभावित है। इस स्थिति में प्रदेश के कुछ हिस्सों में फिर लाकडाऊन आदेशित करना पड़ा है। नये सिरे से दिशा निर्देश जारी किये गये हैं और इनका पालन न करने पर जुर्माना और जेल तक प्रावधान कर दिया गया है। प्रदेश की स्थिति तब से बिगड़नी शुरू हुई है जब से नियमों में ढील दी जाने लगी है। आज औद्यौगिक और बागवानी क्षेत्र इससे ज्यादा प्रभावित हो गये हैं। लेकिन इस स्थिति में भी कम उपस्थिति के साथ उद्योगों को आपरेट करने की अनुमति दी गयी है। बसों में 100% यात्रियों के आने जाने की अनुमति दी गई है। इससे यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यदि बस में 52 सवारियों के आने जाने से संक्रमण का खतरा नही है तो फिर आन्तयेष्ठी और शादी में सीमा क्यों? इस तरह जो भी निर्देश आज तक दिये जाते रहे हैं उनमें अन्तः विरोध रहा है और यह विरोध इसलिये रहा है क्योंकि कोरोना को लेकर आकलन बदलते रहे हैं। एक समय कहा गया कि यह हवा से नही फैलता और अब कहा है कि हवा से भी फैलता है। इन बदलते आकलनों ने आम आदमी को डर परोसने का काम किया है और सरकार ने भी केन्द्र से लेकर राज्यों तक इस डर को कम करने की बजाये इसे और पुख्ता करने का ही काम किया है।
जहां एक ओर डर परोसा जा रहा था वहीं पर दूसरी ओर वीआईपी लोग कोरोना के दिशा निर्देशों की खुलेआम धज्जीयां उड़ा रहे थे। हिमाचल में ही भाजपा ने गायत्री महायज्ञ का आयोजन किया। कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह के घर जन्मदिन के उपलक्ष्य में भोज का आयोजन हुआ। कांग्रेस ने सचिवालय के बाहर प्रदर्शन किया। धर्मशाला में विधायक ने अपने जन्म दिन पर पार्टी की और मन्दिर में पूजा की। स्थानीय एसडीएम भी विधायक के साथ थे यह आरोप कांग्रेस नेता सुधीर शर्मा ने लगाया है। अब रोहडू में बाॅलीबाल टूर्नामैन्ट का आयोजन हो गया। स्वाभिमान पार्टी के अध्यक्ष डा.के.एल शर्मा ने इस पर कारवाई की मांग की है। इन सारे आयोजनों में निर्देशों का खुला उल्लघंन हुआ है। कांग्रेस ने भाजपा पर और भाजपा ने कांग्रेस पर खुलकर आरोप लगाये हैं लेकिन प्रशासन ने कारवाई किसी के खिलाफ नही की है। इस तरह पक्ष, विपक्ष और प्रशासन तीनों मिलकर आम आदमी को डराने का काम कर रहे हैं। जबकि यदि आंकड़ों के परिप्रेक्ष में देखे तो हिमाचल में 2015 में 41462, 2016 में 35819 और 2017 में 39114 मौतें हुई हैं यह आंकड़े भारत सरकार के गृह मन्त्रालय के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी रिपोर्ट में दर्ज है। इस दौरान स्वाईन फलू भी था जो प्रदेश में फरवरी 2020 तक रहा है लेकिन तब कोई लाॅकडाऊन नही रहा। इन आंकड़ों के मुकाबले आज कोरोना के आंकड़े कहां ठहरते हैं इसका अनुमान लगाया जा सकता है। सरकार का कोरोना को लेकर न तो आकलन सही रहा है और न ही नीति। इस समय परोसे गये डर के कारण स्थिति इस मुकाम पर पहुंच गयी है कि यदि कोरोना है तो फिर से पूर्ण लाकडाऊन की आवश्यकता है और यदि नही है तो किसी भी पाबन्दी की जरूरत नही है। लेकिन बीच की स्थिति नही चलेगी की एक जगह तो लाकडाऊन है और दूसरी जगह छूट है। निर्देश हैं तो सबको उनका कड़ाई से पालन करना होगा अन्यथा निर्देश जारी करने का कोई औचित्य नही है। आवश्यकता है आम आदमी को भयमुक्त करने की और सरकार वही काम नही कर रही है। आज प्रदेश सरकार ने आम आदमी से पूछा है कि लाकडाऊन किया जाना चाहिये या नही जबकि 24 मार्च को आम आदमी से पूछना दूर उसे संभलने के लिये पर्याप्त समय तक नही दिया गया जो कि महामारी अधिनियम के तहत आवश्यक था। इसलिये आज जो असमंजस की स्थिति बन गई है उसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार की है। क्योंकि लाकडाऊन घोषित करने से पहले पूराने रिकार्ड को देखा तक नही गया है। यदि पुराने उपलब्ध आंकड़ो को सामने रखकर फैसला लिया जाता तो शायद लाॅकडाऊन करने की शीघ्रता न की जाती।