शिमला/शैल। देश में 1975 में जब आपातकाल लगा था तब गांवों के भूमिहीन लोगों को दस दस कनाल ज़मीने दी गयी थी ताकि कोई भी भूमिहीन न रहे। प्रदेश में इस योजना को पूरी ईमानदारी के साथ लागू किया गया था। जिन लोगों को इस योजना के तहत ज़मीने मिली थी उन्हे बाद में यहां पर उगे पेड़ों का अधिकार भी दे दिया गया था और इसी के साथ यह भी कर दिया गया था कि यह लोग इन जमीनों को आगे बेच नही सकेगें। बल्कि आज जब कोई भू-सुधार अधिानियम धारा 118 के तहत अनुमति लेकर जमीन खरीदता है तो बेचने वाले को यह घोषणा करनी पड़ती है कि वह इस जमीन को बेचने के बाद भूमिहीन नही हो रहा है। आपातकाल के दौरान लायी गयी इस योजना से पूर्व 1953 और फिर 1971 में दो बार भू- सुधार अधिनियम आ चुके हैं। 1953 में बड़ी जिमींदारी प्रथा के उन्मूलन के लिये Ablolition of Big Landed Estate Act. लाया गया था। इस अधिनियम के तहत सौ रूपये और उससे अधिक लगान देने वाले जिमींदारों की फालतू जमीने सरकार में शामिल कर ली गयी थी। इसके बाद 1971 में लैण्डसीलिंग एक्ट के तहत 161 बीघे से अधिक जमीन नही रखी जा सकती है। यह कानून लागू हो गया था।
सरकार के इन दोनों कानूनो के लागू होने के बाद सरकार के पास तीन लाख एकड़ जमीन आ गयी थी यह सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में इन्द्रसिंह ठाकुर की याचिका में स्वीकार किया हुआ है। सरकार को मिली यह जमीन भूमिहीनों को दी जानी थी यह भी इन दोनों अधिनियमों मे कहा गया है लेकिन आज भी सरकारी आंकड़ो के मुताबिक प्रदेश में 2,27000 परिवार भूमिहीन हैं। जिनमें से 80% दलित हैं। सरकार के इन आंकड़ों से यह सवाल उठता है कि प्रदेश में दो बार 1953 और 1971 में भू- सुधार अधिनियम लागू हुए हैं और फिर आपातकाल में हर भूमिहीन को 10 कनाल जमीन देने के बाद भी भूमिहीनों का यह आंकडा क्यों? क्या प्रदेश में इन अधिनियमों की अनुपालना केवल सरकारी फाईलों में ही हुई है। पिछले 24 सितम्बर को राज कुमार, राजेन्द्र सिंह बनाम एसजेवीएनएल में आये फैसले के बाद प्रदेश सरकार यह खोजने का प्रयास कर रही है कि उसके पास कितनी जमीनेे आयी हैं। विजिलैन्स प्रदेश के राजस्व विभाग से यह जानकरी मांगी है लेकिन अभी तक यह जानकारी मिल नही पायी है। सर्वोच्च न्यायालय ने राजेन्द्र सिंह के मामले में स्पष्ट आदेश किये हैं कि जब इन अधिनियमों के बाद इनकी फालतू जमीने सरकार में चली गयी थी तो फिर इनसे विकास कार्याें के नाम पर मुआवजा देकर ज़मीने कैसे ली गयी।
सर्वोच्च न्यायालय ने पूरे परिवार के ऐसे चलने को फ्राॅड की संज्ञा देते हुए इन्हें दिये गये मुआवजे को ब्याज सहित वापिस लेने के आदेश दिये हैं। लेकिन जयराम सरकार अभी तक इस आदेश की अनुपालना नहीं कर पायी है। बल्कि सरकार के पास ऐसा रिकार्ड ही अभी उपलब्ध नहीं है। बल्कि एफ सी अपील ने इस परिवार को जो 98 बीघे जमीन सरपल्स घोषित की थी उस जमीन को भी सरकार अभी तक शायद अपने कब्जे में नहीं ले पायी है। इसी तरह तीन लाख एकड़ जमीन की हकीकत है।