Friday, 19 September 2025
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पेयजल संकट पर सरकार की गंभीरता सवालों में

शिमला/शैल। इन दिनों पूरे प्रदेश में पेय जल संकट चला हुआ है। इस संकट से कितनी चुभन होती है इसे अभी 25 मई को प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री और वरिष्ठ भाजपा नेता प्रेम कुमार धूमल ने भी भोगा है जब उनके शिमला स्थित सरकारी आवास पर पानी खत्म हो गया और रात 11ः30 बजे नगर निगम के उप महापौर ने टैंकर भेजकर पानी का प्रबन्ध करवाया। धूूमल ने इस आपबीति को जनता के साथ सांझा नही किया है क्योंकि इससे सरकार और निगम के प्रबन्धन की पोल खुल जाती। शिमला के कई भागों में छः छः दिन तक पानी नही मिल रहा है। कनलोग क्षेत्रा में सीवरेज का पानी सप्लाई कर दिया गया। उच्च न्यायालय ने इसका संज्ञान लेते हुए संवद्ध अधिकारियों केखिलाफ कारवाई करने के निर्देश दिये। लेकिन इन निर्देशों पर कसौली कांड में पुलिस कर्मियों के निलम्बन की तर्ज पर कारवाई न करके केवल इन्हें संवदेनशील पदों से ही हटाया गया है। इससे सरकार की चिन्ता और गंभीरता का अनुमान लगाया जा सकता है क्योंकि इससे पूर्व सरकार ने पीलिया के लिये दोषी रहे अधिकारियों के खिलाफ मुकद्दमा चलाने की भी अनुमति नही दी है।
लेकिन इससे भी बड़ी संवदेनशीलता तो नगर निगम की महापौर की सामने आयी है जो कि इतने बड़े जल संकट को नज़रअन्दाज करके चीन यात्रा पर चली गयी है। अपने साथ अपने पीए को भी ले गयी है। इस यात्रा की अनुमति सरकार द्वारा ही दी गयी है। लेकिन इसमें सरकार ने उनके पीए को भी साथ जाने की अनुमति कैसे और क्यों दे दी है इसका जवाब निगम में किसी के पास नही है। इस संकट में मेयर की यात्रा इसलिये प्रसांगिक हो जाती है क्योंकि इस समय निगम का आधा प्रशासन तो लोगों के फोन तक नही सुन रहा है। ऐसा इसलिये हो रहा है कि जब शीर्ष प्रशासन को ही शहर की जनता की चिन्ता नही है तो नीचे वालों को क्या होगी।
पानी संकट प्रदेश के दस जिलों में बहुत गंभीर हो चुका है। यह संकट पिछले एक दशक से लगातार बढ़ता जा रहा है। गर्मीयों में पानी के स्त्रोत बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा असर सिरमौर, बिलासपुर और शिमला में पड़ता है। सिरमौर में 29% बिलासपुर में 27% और शिमला में करीब 16% स्त्रोत सूख जाते हैं इसका प्रभाव कांगड़ा में 17% मण्डी में 14% कुल्लु 10% ऊना 8% और हमीरपुर में 5% स्त्रोतों पर पड़ता है। इसके कारण करीब 10% शहरी और 75% ग्रामीण आबादी प्रभावित होती है। यह स्टडी आईपीएच विभाग में उपलब्ध है। इसमें यह चेतावनी भी दी गयी है कि यह संकट हर वर्ष बढ़ता जायेगा और 2009 के बाद यह गंभीर होता जा रहा है। प्रदेश में इस समय करीब नौ हज़ार पेयजल योजनाएं चल रही हैं। करीब दस हज़ार प्राकृतिक स्त्रोत प्रदेश में उपलब्ध है लेकिन इन सारे स़्त्रोतों का रख-रखाव नही हो रहा है। जिन स्त्रोतों से पाईपों के माध्यम से पानी सप्लाई किया जा रहा है सरकार का रख -रखाव उन्ही तक सीमित हो कर रह गया है। ऊपर से आईपीएच और लोक निर्माण विभागों में जेई से ऊपर तो स्टाॅफ की भर्ती हो जाती है लेकिन निचले स्तर पर जिन कर्मियों ने फील्ड में काम करना होता है उनकी भर्ती नही हो रही है क्योंकि सारा काम ठेकेदारों और आऊट सोर्स के माध्यम से करवाने का चलन हो गया है।
अभी 26 जनवरी को सिंचाई एवम् जन स्वास्थ्य मन्त्री ने घोषणा की थी कि सरकार 3267 करोड़ की एक बड़ी पेयजल योजना पर काम कर रही है। मुख्यमन्त्री ने भी हरीपुरधार में घोषणा की है कि सरकार 2572 करोड़ पेयजल पर खर्च कर रही है। यदि पिछला 15 वर्षों का रिकार्ड खंगाला जाए तो आईपीएच में हजारों करोड़ की पाईपें खरीदी गयी हैं जो शायद अगले दस वर्षों के लिये पर्याप्त होंगी। हर वर्ष भारी मात्रा में पाईपे खरीदी जा रही हैं। विभाग के सूत्रों के मुताबिक जितनी पाईपें खरीदी जा चुकी हैं उनसे प्रत्येक गांव के प्राकृतिक स्त्रोत से पानी लिफ्ट करके उस गांव को दिया जा सकता था। लेकिन एक गांव के बड़़े स्त्रोत से पानी लिफ्ट करके दस बीस गांवो को पानी दे दिया जाता है और इसके कारण शेष गांव के स्त्रोत नज़रअन्दाज हो जाते हैं और बिना देखभाल के वह पानी लोप हो जाता है। इसी के साथ प्रकृति के साथ बड़ी योजनाओं के नाम पर जो छेड़छाड़ की जा रही है उसका असर पूरे पर्यावरण पर पड़ रहा है।
अभी सरकार 3267 करोड़ की जिस बड़ी पेयजल योजना पर काम कर रही है उसमें भी समान की खरीद और योजना को कार्यरूप देने में भी सारा पैसा खर्च किये जाने का प्रारूप तैयार किया गया है। योजना बन जाने के बाद उसके संचालन के फील्ड स्टाॅफ का प्रबन्धन शायद आऊट सोर्स करने पर छोड़ा जा रहा है। शिमला के लिये कोल डैम से पानी लाने की 400 करोड़ की येाजना पिछले पांच वर्षों से सरकारी तन्त्र की लालफीताशाही के कारण व्यवहारिक शक्ल नही ले पायी है। सूत्रों की माने तो कई ठेकेदारो ने इसमें रूचि दिखाई थी जो कि ऊपर के कमीशन की मांग अधिक होने के कारण सफल नही हो पायी है। इस योजना पर अभी भी गंभीरता नही दिखायी जा रही है। यदि सरकार सही में गंभीर होती तो इसमें बाधा बने तन्त्र के खिलाफ कारवाई करके इस योजना पर काम शुरू करवा सकती थी। सरकार ने शिमला के लिये एक जल निगम गठित करने की भी घोषणा की थी लेकिन यह भी अभी तक शक्ल नही ले पायी है।
यही नही शिमला केे जल संकट को लेकर तो पहली बार उच्च न्यायालय की बार कौंसिल ने कोर्ट से गैर हाजिर रह कर अपना आक्रोश प्रकट किया। वरिष्ठ नागरिकों के प्रतिनिधि मण्डल ने पानी को लेकर डीसी को ज्ञापन दिया और चेतावनी दी कि यदि यह व्यवस्था न सुधरी तो यह लोग रिज पर गांधी प्रतिमा के नीचे अनशन पर बैठेंगे। शिमला के जल संकट के लिये केवल इसके प्रबन्धन को ही दोषी माना जा रहा है। क्योंकि जो टैंकरों से पानी सप्लाई किया जा रहा है उन टैंकरों में पानी रिज के ही जन भण्डारण से भरा जा रहा है। इससे भण्डारण में नियमित सप्लाई के लिये स्तर नही बन पा रहा है। इससे आम आदमी को पानी मिल नही रहा है और टैंकरों से केवल मन्त्रीयों और शीर्ष नौकरशाही की टंकियां ही भरी जा रही है। शिमला के प्राकृतिक जल स्त्रोतों की ओर प्रशासन का कितना ध्यान है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि बैमलोई के पास एक बड़ा प्राकृतिक स्त्रोत था जिसे एक संस्था टैप करके अपने उपयोग के लिये ले गयी और संवद्ध प्रशासन आॅंखे बन्द करके बैठा रहा। इसी तरह की स्थिति कई अन्य स्त्रोंतो के साथ भी हुई जिन्हें कुछ प्रभावशाली लोगों ने अपने स्वार्थ के लिये बन्द करवा दिया है। ऐसा शहर के लिफ्ट एरिया और राम बाज़ार में घट चुका है।

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