शिमला/शैल। वीरभद्र के खिलाफ सीबीआई में आय से अधिक संपत्ति और ईडी में दर्ज मनीलाॅंड्रिंग मामलें में सहअभियुक्त बने एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चौहान को ईडी ने 8.7.2016 को गिरफ्तार किया था। इस मामलें में 6.9.2016 को चालान दायर हुआ और 7.9.2016 को अदालत ने इसका संज्ञान लिया था। इस प्रकरण में आरोप तय करने के लिये जब 7.7.2017 को यह मामला सुनवाई के लिये आया तब ईडी के विशेष अधिवक्ता ने आरोपों पर बहस करने के लिये यह कहकर समय लिया की इसमें अन्य अभियुक्तों के खिलाफ अनुपूरक चालान सात सप्ताह के भीतर दायर किया
स्मरणीय है कि सीबीआई में आय से अधिक संपत्ति प्रकरण में भी यही लोग अभियुक्त है। सीबीआई भी इस मामलें में ट्रायल कोर्ट में चालान दायर कर चुकी है और इसमें आनन्द चौहान सहित अभियुक्तों को ज़मानत भी मिल चुकी है। सीबीआई में यह मामला 27-10-15 को दर्ज हुआ था इसमें आनन्द चौहान के खिलाफ यह आरोप था कि उसके माध्यम से वीरभद्र, प्रतिभा सिंह एवंम अन्य परिजनों के नाम पर जो एलआईसी पाॅलिसियां ली गयी हैं उनमें निवेष हुआ पैसा वीरभद्र का काला धन था। इस काले धन को एलआईसी पाॅलिसियों में निवेष करने के लिये आनन्द चौहान को वीरभद्र के सेब बागीचेे का प्रबन्धक बनाया गया तथा इसके लियेे 15-6-2008 को वीरभद्र सिंह के साथ एक एमओयू साईन किया गया। सीबीआई की जांच में यह एमओयू जाली पाया गया है और इसकी मूल प्रति आनन्द चैहान से गुम हो गयी है। वीरभद्र के खिलाफ यह मामला संशोधित आयकर रिटर्नज़ दायर करने के बाद सामने आया था। क्योंकि मूल आयकर रिटर्नज़ और संशोधित रिटर्नज़ आय में करीब 6 करोड़ की आय का अन्तर आया है। इस बढ़ी हुई आय को बागीचे की आय बताया गया जबकि सीबीआई की नज़र में यह आय से अधिक संपत्ति है और ईडी की नज़र में अपने ही कालेधन को सफेद बनाने के लिये इस तरह के निवेश का सहारा लिया गया है।
संशोधित आयकर रिटर्नज़ में जो आय दिखायी गयी है उसे वीरभद्र ने कभी अस्वीकार नही किया है। इसमें विवाद केवल इतना है कि क्या वीरभद्र के बागीचे से इतनी आय हो सकती थीे या नही। दिल्ली उच्च न्यायालय में भी सीबीआई ने इस संशोधित आकर रिटर्न और 2012 के विधान सभा चुनाव में वीरभद्र सिंह द्वारा दायर शपथ पत्रा में दिखायीे आय में आयी भिन्नता का अदालत ने कड़ा संज्ञान लिया है। 31-3-2017 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में चुनाव के शपथ पत्र को झूठा करार देते हुए इस प्रकरण को चुनाव आयेाग को भेजने और चुनाव नियमों के तहत कारवाई करनेे के निर्देश दिये थे। लेकिन शायद यह मामला चुनाव आयोग तक पहुंच ही नही पाया है। इस तरह इस मामलें में ईडी द्वारा अदालत से अनुपूरक चालान दायर करने के लिये बार -बार समय लेने के बाद चालान का दायर न होना और उच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद शपथ पत्र के मामले का चुनाव आयोग न पहुंचाया जाना ऐसे सवाल है जिनसे केन्द्र की इन दोनो जांच ऐजैन्सीयों की नीयत और नीति पर गंभीर सवाल खडेे होते हैं।
इस मामले को भाजपा ने लोकसभा चुनावों और अब विधानसभा चुनावों में खूब भुनाया है। नरेन्द्र मोदी तक ने यह आरोप लगाये थे कि वीरभद्र के तो पेड़ो परे सेब की जगह नोट उगते हैं लेकिन अब जब ईडी ने आन्नद चौहान को तो डेढ़ वर्ष हिरासत में रखा और उसे ज़मानत तब मिली जब सर्वोच्च न्यायालय ने निकेश ताराचन्द शाह बनाम युनियन आॅफ इण्डिया मामलें में 23.11.17 को दिये फैसले में ईडी अधिनियम की धारा 45 को असंवैधानिक करार दे दिया। सर्वोच्च न्यायलय के इस फैसले के बाद 15.12.17 को भी ईडी ने अनुपूरक चालान दायर करने के लिये समय लिया। लेकिन जब यह चालान दायर ही नही हो सका और 2.1.18 को ट्रायल कोर्ट ने अन्ततः चौहान को ज़मानत दे दी है। चौहान को ज़मानत मिलने के बाद यह परा मामला स्वतः ही कमज़ोर हो जाता है बल्कि इस ज़मानत के बाद वीरभद्र के इस आरोप को बल मिल जाता है कि राजनीतिक दुर्भावना के तहत उसके खिलाफ यह मामले बनाये गये थे।