Thursday, 18 September 2025
Blue Red Green
Home दुनिया यात्रा के बावजूद परिवर्तन के लिये ठोस जमीन तैयार नहीं कर पायी भाजपा

ShareThis for Joomla!

यात्रा के बावजूद परिवर्तन के लिये ठोस जमीन तैयार नहीं कर पायी भाजपा

शिमला/शैल। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के लिये पहली बार इस स्तर पर रथ यात्राओं का आयोजन किया जो हर विधानसभा क्षेत्र में पहुंची और उसे किसी-न-किसी बड़े नेता ने संबोधित किया। इन नेताओं में प्रदेश और प्रदेश से बाहर के भी बड़े नेता शामिल रहे हैं। यात्रा में जनता को वीरभद्र सरकार के भ्रष्टाचार और मोदी सरकार की सफलताओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी। वीरभद्र सरकार के खिलाफ सबसे बड़े आरोप रहे कि प्रदेश में हर स्तर पर माफियाओं का राज है और मुख्यमन्त्री अपने खिलाफ चल रहे मामलों में इस कदर उलझे हुए हैं कि उनका अधिकतर समय अदालतों के चक्कर काटने में ही व्यतीत हो रहा है। अदालत में जमानत पर चल रहे मुख्यमन्त्री के पास प्रदेश के विकास के लिये समय ही नहीं है। इस वास्तुस्थिति को जनता को परोसते हुए आह्वान किया गया कि वह आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सत्ता से बाहर करके भाजपा को शासन की जिम्मेदारी सौंपे।
भाजपा के इस सन्देश का प्रदेश की जनता पर कितना असर हुआ है इसका आकलन करने से पहले यह जानना और समझना बहुत आवश्यक है कि भाजपा के प्रदेश नेतृत्व की अपनी स्थिति क्या है। क्योंकि सत्ता परिवर्तन के बाद मोदी ने तो स्वयं प्रदेश के मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर तो नहीं बैठना है उस पर यहीं का कोई नेता बैठेगा। अभी यू-पी में मोदी के नाम पर सत्ता परिवर्तन हुआ और योगी मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर बैठे हैं। लेकिन वहां पहले 100 दिनों में जिस तरह का शासन सामने आ रहा है वह कोई बहुत ज्यादा सुखद एवं और सन्तोषजनक नही हैं। हरियाणा में खट्टर सरकार भी बड़ी सफल सरकार नहीं कही जा सकती है। इस परिदृश्य में प्रदेश की जनता मोदी और शाह से नेतृत्व की स्पष्टता चाहेगी। इस समय भाजपा धूमल-नड्डा और शान्ता तीनों को एक बराबर रखकर चल रही है जिसका यह भी अर्थ लिया जा रहा है कि इन तीनों में से कोई भी नहीं। इन तीनों के बाद प्रदेश में रहे पार्टी के राज्य अध्यक्ष आते हैं। इनमें सुरेश भारद्वाज, जयराम ठाकुर और सत्तपाल सत्ती प्रमुख हैं पर इन्हें इस यात्रा में प्रदेश के बड़े नेताओं की पंक्ति में रखकर प्रचारित-प्रसारित नहीं किया और इस नाते इन्हे भी मुख्यमन्त्री पद के संभावितों में नहीं माना जा रहा है। प्रदेश की वर्तमान परिस्थितियों में नेतृत्व की अस्पष्टता पार्टी पर भारी पड़ सकती है क्योंकि मोदी फैक्टर से जहां लाभ की उम्मीद की जा रही है वहीं पर इसके कारण एक जटिलता भी सामने खड़ी है। क्योंकि इस समय पार्टी का हर पुराना कार्यकर्ता यह उम्मीद लगाये बैठा है कि विधानसभा चुनाव में वरिष्ठता के नाते उसे टिकट दिया जाना चाहिये। ऐाी स्थिति करीब दो दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में खुल कर सामने आ सकती है। अभी हुये शिमला नगर-निगम के चुनावों में यही स्थिति उभरी थी और नाराज होकर कार्यकर्ताओं ने निर्दलीय होकर चुनाव लड़ लिये। इसी कारण भाजपा को निगम में सीधे बहुमत नहीं मिल पाया और फिर अपने ही विद्रोहीयों का सहारा लेकर सत्ता का जुगाड़ करना पड़ा।
पार्टी की इस भीतरी स्थिति के साथ जहां भाजपा ने वीरभद्र सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये वहीं पर उन आरोपों की विस्तृत व्याख्या जनता के सामने नहीं रख पायी। राज्यपाल को समय -समय पर सौंपे भ्रष्टाचार के आरोप पत्रों पर अब जनता को कोई विश्वास नहीं रहा है। क्योंकि कांग्रेस और भाजपा ने सत्ता में आने के बाद कभी भी अपने ही आरोप पत्रों पर कोई कारवाई नहीं की है। आज जनता भ्रष्टाचार के आरोपों की प्रमाणिकता के दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ उस पर ठोस कारवाई भी चाहती है जो आज तक नहीं हो पायी है। इस समय वीरभद्र के अपने खिलाफ चल रहे मामलों पर केन्द्र सरकार की सी बी आई और ईडी कोई ठोस परिणाम नहीं दे पायी है। वीरभद्र के मामले में उसी के सहअभियुक्त एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चैहान की गिरफ्तारी ने ऐजैन्सी की विश्वसनीयता पर ही गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं क्योंकि एक ही मामले में सहअभियुक्त तो एक वर्ष से जेल में है और मुख्यअभियुक्त बाहर हो ऐजैन्सी के राजनीतिक इस्तेमाल का इससे बड़ा और क्या प्रमाण हो सकता है। आज यह आम चर्चा है कि संघ के एक सर्वे में यह कहा गया है कि यदि वीरभद्र पर बड़ा हाथ डाला जाता है तो उससे चुनावों में राजनीतिक नुकसान हो सकता है। यह चर्चा है कि इस बारे में भाजपा के ही एक बड़े नेता ने अरूण जेटली को ऐसी बड़ी कारवाई करने से रोका है। संभवतः इसी कारण से भाजपा वीरभद्र के कथित भ्रष्टाचार पर अपने भाषणों में कोई ज्यादा बड़ा खुलासा कर नहीं कर पा रही है। बल्कि अधिकांश लोगों को तो इस मामले की सही तरीके से पूरी जानकारी ही नहीं है। यहां तक कि भाजपा के प्रवक्ताओं को ही इसकी विस्तृत जानकारी नहीं और भाजपा का प्रदेश मुख्यालय पर इस बार कोई प्रवक्ता है ही नहीं, जो ऐसे मामलों की सही जानकारी जुटा कर जनता के सामने रखें।
इस सारी स्थिति का यदि निष्पक्ष राजनीतिक आकलन किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सत्ता परिवर्तन के लिये अभी कोई ठोस ज़मीन तैयार नहीं हो पायी है। इसमें नेतृत्व की अस्पष्टता सबसे बड़ा कारण मानी जा रही है और इसी के चलते भ्रष्टाचार के आरोपों पर केवल रस्म अदायगी ही हो रही है। इसी रस्म अदायगी को अब प्रदेश की जनता समझने भी लग पड़ी है।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook