शिमला/शैल। बीते चार जुलाई को शिमला कोटखाई में हुए गुड़िया गैंगरेप एवम हत्या और फिर इसी प्रकरण में पकड़े गये कथित अभियुक्तों में से एक सूरज की पुलिस कस्टडी में हुई हत्या के मामले में अब सीबीआई ने उस समय रहे शिमला के एसपी डी डब्ल्यू नेगी को गिरफ्तार कर लिया है। नेगी की गिरफ्तारी के बाद मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ने सीबीआई पर आरोप लगाया है कि वह इस मामले को सुलझाने में बुरी तरह असफल रही है और पूरी जांच को भटका दिया गया है। दूसरी ओर इसी गिरफ्तारी पर प्रतिपक्ष नेता प्रेम कुमार धूमल ने अपनी प्रतिक्रिया में दावा किया है कि इस गिरफ्तारी से भाजपा की सारी आशंकाएं सही साबित हुई है। स्मरणीय है कि इस प्रकरण ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया था। लोगों का आक्रोश जनान्दोलन के रूप में सड़को पर आ गया था उग्र भीड़ ने
सीबीआई को मामला हाथ में लिये करीब चार महीने हो गये है। सीबीआई जांच पर प्रदेश उच्च न्यायालय लगातार अपनी निगरानी बनाए हुए है। लेकिन अब तक इस पूरे मामले में जांच के नाम पर हुआ क्या कुछ तो यह तथ्य सामने आते हैं। चार जुलाई को यह पन्द्रह वर्षीय गुड़िया स्कूल से घर नहीं पहुंचती है। परिजन तलाश करते हैं उन्हे चार को कोई पता नही चलता है पांच को भी कोई पता नही चलता है और शाम को नौ बजे वह लड़की के मामा को इसकी सूचना देते हैं जो छः को तलाश पर निकलता है उसे लड़की की लाश मिल जाती है और वह परिजनों और पुलिस को सूचित करता है। उसकी सूचना पर एफआईआर दर्ज होती है। आठ नौ को इस हत्या की खबरें छपती है इस पर उच्च न्यायालय दस को स्वतः संज्ञान लेकर पुलिस और सरकार से रिपोर्ट तलब करता है। खबरे छपने पर इसकी जांच के लिये नौ को पुलिस की एसआईटी गठित हो जाती है। 12 जुलाई को छः लोगों से पूछताछ करती और 13 जुलाई को इन्हे गिरफ्रतार कर लेती है। लेकिन इस पूछताछ और गिरफ्तारी से पहले ही चार लोगों के फोटो मुख्यमन्त्री की अधिकारिक फेसबुक पेज पर वायरल हो जाते हैं और कुछ ही समय बाद हटा भी लिये जाते हैं परन्तु जो लोग गिरफ्तार किये जाते हैं उनमें इन लोगों में से कोई नही होता है जिनके फोटो वायरल हो चुके थे। इस पर पुलिस जांच पर पक्षपात के आरोप लग जाते हैं। लोगों का गुस्सा फूट पड़ता है सरकार जन दबाव में मामला सीबीआई को सौंपने का फैसला कर लेती है इसी के साथ जब उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिये मामला आया तब तक कोटखाई पुलिस थाने को आग लगा दिये जाने की वारदात घट चुकी थी और डीजीपी ने अपने शपथ पत्र में अदालत के सामने यह सारी स्थिति रख दी। इस पर अदालत ने भी सीबीआई को निर्देश दिये कि वह इस मामले की जांच तुरन्त अपने हाथ मंे ले। उच्च न्यायालय ने मुख्य सचिव को भी निर्देश दिये थे कि 'The chief Secretary to the govt. of Himachal Pradesh shall ensure that appropriate action in taken against officials /officers/functionaries of the state, in accordance with law. Within a period of two weeks from today, we shall independently examine the matter and take approriate action.
मुख्य सचिव ने यह कारवाई कोटखाई थाना प्रकरण सहित पूरे मामले में करनी थी लेकिन इस कारवाई के संद्धर्भ में भी आज तक कोई जानकारी बाहर नही आई है। गुड़िया के पोस्टमार्टम की जो रिपोर्ट चर्चा में आयी है उसके मुताबिक गुड़िया की हत्या चार जुलाई को ही पांच से छः बजे के बीच हो गयी थी। इसके मुताबिक गैंगरेप से लेकर हत्या तक पूरे अपराध को दो घन्टे में ही अंजाम दे दिया। क्या यह संभव हो सकता है इस पर अभी तक कुछ भी स्पष्ट नही हो पाया है।
अब सीबी आई के सामने दो मामले हैं एक गुड़िया के गैंगरेप और हत्या का, दूसरा है इसी प्रकरण में पकड़े गये एक संदिग्ध की पुलिस कस्टडी में हुई मौत। गुड़िया प्रकरण में जो संदिग्ध पकड़े थे उनके खिलाफ 90 दिन के भीतर पुलिस/सीबीआई अदालत में चालान दायर नही कर पायी और उनको ज़मानत मिल गयी है। यह ज़मानत तकनीकी आधार पर है गुण -दोष के आधार पर नहीं। इसलिये इसे क्लीन चिट नही कहा जा सकता। सीबीआई इन संदिग्धों का नार्को भी करवा चुकी है। लेकिन इस नार्को में क्या हुआ है इसका भी कोई खुलासा बाहर नही आया है। एक संदिग्ध की पुलिस कस्टडी में हुई मौत के लिये सीबीआई पूरी एसआईटी को हिरासत में ले चुकी है। उच्च न्यायालय ने 30 नवम्बर तक इनके खिलाफ चालान दायर करने के निर्देश दे रखे हैं यदि तब तक चालान दायर नही होता है फिर इनको भी तकनीकी आधार पर ज़मानत मिल जायेगी। अब सीबीआई ने इसी कस्टोडियल डैथ के लिये डी डब्ल्यू नेगी को हिरासत में लिया है। नेगी पर आरोप है कि उन्होने इस प्रकरण में गलत मामला दर्ज किया। तथ्यों को छुपाया गया। नेगी पर इन आरोपों को आधार उनकी कुछ अधिकारियों और अन्य लोगों से हुई बातचीत का रिकार्ड सामने कहा जा रहा है। उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक कस्टोडियल डैथ को लेकर हिरासत में चल रहे एसआईटी के सदस्यों से कोई बड़ी जानकारी नही मिल पायी हैं सीबीआई ने एसआईटी के सदस्यों के आवाज के सैंपल लेने के लियेे अदालत में याचिका दायर कर रखी है। लेकिन इस पर कोई फैसला नही हो पाया क्योंकि अभियुक्तों की ओर सेे अदालत में कोई वकील पेश नही हुआ।
पुलिस कस्टडी में हुई मौत के लियेे पुलिस ने मृतक सूरज और दूसरे अभियुक्त राजूू के बीच झगड़ा होना कहा है। लेकिन सीबीआई ने पुलिस थ्योरी को न मानतेे हुए एसआईटी को हिरासत में ले लिया, लेकिन इसके बावजूद सीबीआई असली हत्यारे को चिन्हित नही कर पायी है। अब सवाल उठता है कि क्या सूरज की मौत पुलिस की पूछताछ में कोई ज्यादती होने से हो गयी या फिर उसे नीयतन किसी कोे बचाने के लिये मारा गया? यदि किसी को बचाने के लिये मारा गया तो क्या इसके लिये पुलिस पर किसी बडे का दवाब था या फिर मोटे पैसे का खेल था? यदि दवाब था तोे किसका और क्यों? यदि मोटे पैसेे का खेल था तो यह पैसा कौन दे रहा था। एसआईटी के सदस्यों को इन्ही सवालों के लिये हिरासत में लिया गया है, लेकिन अभी तक सफलता के नाम पर सीबीआई खाली हाथ है। इन्ही सवालों के लिये अब डी डब्ल्यू नेगी को पकड़ा गया है। यहीं पर एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि सीबीआई ने गुड़िया प्रकरण में जिन अभियुक्तों का नार्को करवाया था क्या उस नार्को में भी कोई ठोस लीड हाथ नही लगी है? क्योंकि इन्ही अभियुक्तों में से एक की गाड़ी गुड़िया को स्कूल से लाने से
लेकर उसके शव को ले जाने तक में प्रयुक्त हुई कही गयी है, जिसका सीधा अर्थ है कि उसको तो यह अवश्य पता है कि किसके कहने पर उसने गाड़ी प्रयोग की? क्योंकि जो लोग पुलिस ने पकड़े थे उनसे ही गुड़िया के मुजरिम की जानकारी मिलने की सबसे बड़ी संभावना थी। उनके नार्को में तो यह जानकारी होना आवश्यक है लेकिन इन लोगों के नार्को के बाद भी यदि सीबीआई गुड़िया के किसी भी दोषी को नही पकड़ पायी है। तो इसका सीधा अर्थ है कि इन लोगों का इस गुडिया मामले से कोई वास्ता ही नही रहा है। तब फिर हटकर सन्देह की सूई कोटखाई पुलिस की ओर घूमती है कि उसने असली गुनाहगारों को बचाने का खेल पहले ही दिन रच दिया था और इस कड़ी में जिन लोगों के फोटो वायरल हुए और फिर पोस्ट से हटा लिये गयेे यह इस प्रकरण को सुलझानेे की एक महत्वपूर्ण कड़ी हो सकती है, लेकिने इस संदर्भ में अभी तक सीबीआई के कोई कदम सामने नही आये है। अब डी डब्लू नेगी पर यदि यह आरोप है कि उन्होने जानबूझकर तथ्यों को छुपाकर गलत मामला दर्ज करवाया तो फिर सवाल उठता है कि नेगी ने किसकेे ईशारेे पर यह सब किया जो पुलिस अधिकारी अब तक हिरासत में है। उनका भविष्य तो खत्म होे जायेगा यदि वह किसी को बचानेे के प्रयास में अबतक खामोश बैठे है। क्योंकि कस्टोडियल डैथ नीयतन है या स्वभाविक परिस्थितियों का परिणाम है यह तो यही लोग जानते हैं। नेगी की हिरासत के बाद यदि सीबीआई कुछ और गिरफ्तारियों को 30 नवम्बर से पहलेे अंजाम नही देती है तो तय है कि पहले से हिरासत में चल रहे एसआईटी के सदस्यों को भी ज़मानत मिल जायेगी और यह ज़मानत मिलने का अर्थ होगा कि गुड़िया से लेकर सूूरज की हत्या तक सीबीआई पूरी तरह खाली हाथ है तथा अन्धेरे में तीर चला रही है या फिर वह भी शिमला पुलिस की तरह बचाने के प्रयास में लग गयी है। क्योंकि यदि सीबीआई भी कस्टोडियल डैथ जैसे स्पाट मामले को नही सुलझा पाती है तो फिर उसकी काबीलियत से ज्यादा उसकी नीयत पर ही सवाल उठने शुरू हो जायेंगे।