Friday, 19 September 2025
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क्या सरकार लोकसेवा आयोग को सामाजिक संस्था मानती है विधानसभा में आये प्रश्न से उठी यह चर्चा

शिमला/शैल। विधानसभा के बजट सत्र में 5 फरवरी को भाजपा विधायक रमेश धवाला का एक प्रश्न सदन में आया था। धवाला ने सरकार से यह जानकारी मांगी थी कि (क) प्रदेश लोक सेवा आयोग में वर्तमान में श्रेणीवार कौन-कौन सदस्य हैं। उनकी शैक्षणिक योग्यता एंव प्रशासनिक क्षमता क्या है और (ख) सरकार क्या सदस्यों के चयन के लिये समाज के विभिन्न वर्गो के प्रतिनिधित्व का ध्यान रखती है और चयन हेतु क्या मापदण्ड निर्धारित किये गये हैं ‘‘ यह प्रश्न सदन में चर्चा में नही आ पाया था। लेकिन इसके सदन में रखे लिखित जवाब में बताया गया कि इस समय अध्यक्ष समेत पांच सदस्य कार्यरत है। इनकी शैक्षणिक योग्यताएं और अनुभव का भी पूरा विवरण दिया गया है। लेकिन यह नही बताया गया है कि इस समय सदस्य का एक पद खाली है। क्योंकि जब जयराम सरकार ने सत्ता संभाली थी तब सदस्यों के दो नये पद सृजित किये गये थे जिनमें से एक पर तो डा. रचना गुप्ता की नियुक्ति हो गयी थी और दूसरा अभी तक खाली चला आ रहा है।
इस समय प्रदेश की शीर्ष प्रशासनिक सेवा, न्यायिक सेवा आदि से लेकर क्लर्क की भर्ती तक के लिये दो संस्थान एक प्रदेश लोक सेवा आयोग और दूसरा अधिनस्थ सेवा चयन बोर्ड कार्यरत हैं। इन दोनों संस्थानों ने पिछले तीन वर्षों में 15 जनवरी 2019 तक लोक सेवा आयेाग ने 2198 और अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड ने 7849 उम्मीदवारों का चयन किया है। इस चयन से यह आकंलन किया जा सकता है कि प्रदेश में कितने लोगों को पिछले तीन वर्षों में नियमियत रोजगार मिल पाया होगा। इसी के साथ यह भी सवाल उठता है कि जब दोनों संस्थानों ने पिछले तीन वर्षों में केवल दस हजार लोगों का ही चयन किया है तो क्या ऐसे में इन दोनो संस्थानों को चलाये रखने का औचित्य क्या है। फिर इनमें सदस्यों के नये पद सृजित करना उचित है।
लोकसेवा आयोग प्रदेश की शीर्ष राजपत्रित सेवाओं के लिये उम्मीदवारों का चयन करता है। इस चयन के लिये आयोग के सदस्य भी अपने में उच्च शैक्षणिक और प्रशासनिक योग्यता एवम् अनुभव वाले लोग होने चाहिये। इन सदस्यों के चयन के लिये एक स्थापित और तय प्रक्रिया होनी चाहिये। इस संबंध में पंजाब लोक सेवा आयोग में फैसला देते हुए शीर्ष अदालत ने राज्यों को निर्देश दिये हैं कि वह इस चयन के लिये सुनिश्चित चयन प्रक्रिया और मानदण्डों की स्थापना करें। सर्वोच्च न्यायालय में यह भी उल्लेख आया है कि इन सदस्यों की योग्यता का मानदण्ड ऐसा रहना चाहिये जो प्रशासन में दस वर्ष तक वित्तायुक्त का अनुभव होना चाहिये और वित्तायुक्त होने की पात्रता रखता हो। लेकिन क्या सर्वोच्च न्यायालय के इन निर्देशों की अनुपालना हो पा रही है जबकि यह फैसला 2014 में आ चुका था। लेकिन अब जो विधानसभा में आये प्रश्न के उत्तर में सरकार ने कहा है उसके अनुसार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के चयन के लिए समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधित्व का ध्यान रखा जाता है। इनकी नियुक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद-316 के अनुसार की जाती है, जिसमे उद्धृत प्रावधान अग्रलिखित हैंः-
लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति, यदि वह संघ आयोग या संयुक्त आयोग है तो राष्ट्रपति द्वारा और, यदि राज्य आयोग के लिए, के राज्यपाल द्वारा की जाएगी।
परन्तु प्रत्येक लोक सेवा आयोग के सदस्यों में से यथाशक्य निकटतम आधे ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपनी-अपनी नियुक्ति की तारीख पर भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन कम से कम कम दस वर्ष तक पद धारण कर चुके हैं और उक्त दस वर्ष की अवधि की संगणना (Computing) करने मे संविधान के प्रारम्भ से पहले की ऐसी अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने भारत में क्राउन के अधीन या किसी देशी राज्य की सरकार के अधीन पद धारण किया है।
इसके अतिरिक्त संविधान के अनुच्छेद-316(3) के अनुसार कोई व्यक्ति जो लोक सेवा आयोग के सदस्य का पद धारण करता है, अपनी पदावधि की समाप्ति पर, उस पद पर पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होता और भारत के संविधान के अनुच्छेद 319 के परिच्छेद (घ) के अन्तर्गत राज्य लोक सेवा आयोग का कोई भी सदस्य आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति हेतु पात्र है।
सरकार के इस जवाब से यह सवाल उठता है कि क्या सरकार लोक सेवा आयोग को कोई राजनीतिक या सामाजिक संस्था बनना चाहती है जिसमें समाज के सारे वर्गों का प्रतिनिधित्व हो। सरकार के इस जवाब से आयोग की बुनियादी अवधारणा पर ही गंभीर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधित्व से आयोग के सदस्यों की अपनी निष्पक्षता पर ही सवाल खड़ा हो जाता है। हिमाचल लोक सेवा आयोग को लेकर भी एक प्रकरण प्रदेश उच्च न्यायालय मे गया हुआ है लेकिन उच्च न्यायालय पिछले दो वर्षों में इस प्रकरण की सुनवाई के लिये समय नही निकाल पाया है। इससे यह संदेह उभरना स्वभाविक ही है कि कहीं उच्च न्यायालय की नजर में भी सरकार की तरह यह एक सामाजिक संस्था ही है।

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