शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने एक साक्षात्कार में यह कहा है कि प्रदेश को कर्ज से मुक्ति मिलना संभव नही है। जयराम की सरकार को बने हुए अभी छः माह का समय हुआ है। इन छः महिनों में सरकार ने जनवरी से 31 मार्च तक ही एक हजा़र करोड़ से अधिक का ऋण लिया है। 29 मार्च को जायका के साथ 700 करोड़ का ऋण अनुबन्ध साईन किया है। इसके बाद मई में राज्य विद्युत बोर्ड की ऋण सीमा मे दो हज़ार करोड़ की वृद्धि की है। जून में एशियन विकास बैंक से 437 करोड़ का ऋण भारत सरकार के माध्यम से स्वीकृत करवाया है। ऋण के इन आंकड़ों का जिक्र इसलिये किया जा रहा है ताकि यह समझ आ सके कि सरकार का पूरा ध्यान इस दौरान ऋण जुटाने की ओर ही ज्यादा केन्द्रित रहा है। सरकार अपनी आय के साधन कैसे बढ़ाये और अपने अनुपयोगी खर्चों में कैसे कमी करे इस ओर शायद ज्यादा ध्यान नही दिया गया है। इसमें सबसे चिन्ताजनक यह है कि युवा मुख्यमन्त्री ने बिना कोई प्रयास किये ही यह मान लिया है कि कर्ज से मुक्ति मिल ही नही सकती है।
मुख्यमन्त्री ने अपने साक्षात्कार में कर्ज का आंकड़ा 46000 करोड़ का दिया है। राज्य के वित्त की वास्तविक स्थिति क्या है। सरकार के खर्चे कितने उत्पादक और अनुत्पादिक है। राज्य के कर्ज की स्थिति क्या इसका पूरा आकलन करने के लिये नियन्त्रक महालेखा परीक्षक की संवैधानिक जिम्मेदारी है और कैग की रिपोर्ट वाकायदा सदन के पटल पर रखी जाती है। इसलिये कैग की रिपोर्ट को प्रमाणिक माना जाता है। इस बार के बजट सत्र वर्ष 2016-2017 के लेखे सदन में रखे गये हैं। इन लेखों के मुताबिक 31 मार्च 2016 को प्रदेश सरकार का कुल कर्जभार 47,244 करोड़ है। इसमें वित्तिय वर्ष 2017-2018 और 2018-2019 का कर्ज जब जुड़ेगा तब यह कर्जभार 60,000 करोड़ से अधिक हो जायेगा यह तय है। सरकार जब भी कर्ज लेती है तब कर्ज का उद्देश्य विकास कार्यो मे निवेश दिखाया जाता है लेकिन कैग की रिपोर्ट के मुताबिक यह कर्ज विकास की बजाये कर्ज की किश्त देने और दूसरे खर्चों के लिये उठाये जा रहे हैं। 2012-13 से 2016-17 तक हर वर्ष, कर्ज की किश्त और अन्य खर्चों के लिये ऋण उठाया जा रहा है। 2012-13 में 2359, 2013-14 में 2367, 2014-15 में 2345, 2015-16 में 2450 और 2016-17 में 3400 करोड़ का ऋण इन खर्चों के लिये उठाया गया है जबकि एफआरबीएम 2005 की सीधी अवहेलना है। इसमें एक चिन्ताजनक गंभीरता यह है कि कर्ज तय समय पर लौटाया नही जा रहा है। 31 मार्च 2016 को Outstading ऋण का आंकड़ा 32570 करोड़ हो गया है। हर वर्ष यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है यह स्थिति यदि ऐसे ही चलती रही तो यह तय है कि अगले पांच- सात वर्षो में कर्ज उठाने लायक भी स्थिति नही रहेगी।
इसलिये सबसे पहला सवाल यह खड़ा होता है कि कर्ज के सिर पर विकास कब तक किया जाये। इस समय जितना कर्ज प्रदेश पर खड़ा है वह आखिर निवेश कहां हुआ है? क्योंकि आज भी प्रदेश में दस हज़ार अध्यापकों की कमी है, अस्पतालों में डाक्टरों की कमी है। रोजगार कार्यालयों में बेरोजगारों का आंकड़ा आठ लाख से ऊपर पहुंच चुका है। लोगों को पीने का पानी नही है यह अभी सामने आया है। पानी की गुणवत्ता कितनी और कैसी है यह पीलिया से हुई मौतों मे सामने आ चुका है। हां प्रदेश में सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों का अांकड़ा 1,67000 का 2002 में उस समय सामने आया था तब अवैध कब्जों को नियमित करने की योजना बनाई गयी थी। इसी तरह का विकास अवैध निर्माणों में हुआ है क्योंकि सरकारें बार-बार रिटैन्शन पॉलिसियां लाती रही। इस समय प्रदेश के सार्वजनिक उपक्रमों के क्षेत्रा में बारह हज़ार करोड़ से कुछ अधिक का कुल निवेश है। इसमें अकेले ऊर्जा के क्षेत्र में ही ग्यारह हजार करोड़ से अधिक का निवेश है लेकिन प्रदेश की चारो ऊर्जा कंपनीयों की स्थिति लगातार घाटे की है। एक भी परियोजना कभी समय पर पूरी नही हुई है। कैग की हर रिपोर्ट में इस ओर ध्यान खिंचता आ रहा है। अभी कशांग परियोजना पर कैग ने साफ कहा है कि आज ही इसकी स्थिति यह हो गयी है कि प्रति यूनिट उत्पादक लागत 4.50 रूपये पहुंच चुकी है जबकि बिजली 2.50 रूपये यूनिट बिक रही है। बिजली बोर्ड की अपनी रिपोर्टों के मुताबिक बोर्ड की सभी परियोजनाओं में हर वर्ष हज़ारों घन्टो का शट डाऊन हो रहा है और इसके कारण प्रतिदिन करोड़ो के राजस्व का नुकसान हो रहा है जबकि निजिक्षेत्र की परियोजनाओं में छः आठ घन्टे से अधिक का साल में शट डाऊन नही है। इस प्रतिदिन हो रहे करोड़ों के राजस्व के नुकसान की ओर संवद्ध प्रशासन से लेकर विजिलैन्स तक का ध्यान नही गया है जबकि इस संद्धर्भ में उसके पास वाकायदा शिकायत रिकॉर्ड पर है। पिछले पांच वर्षों में बिजली की किसी भी बड़ी परियोजना के लिये कोई निवेशक नही आया है। इस तरह की स्थिति प्रदेश में बहुत सारे क्षेत्रों की है। प्रदेश का प्रशासन कितनी सक्षमता और गंभीरता से काम करता रहा है इसका साक्षात प्रमाण राज्य का वित्त निगम है जिसकी अध्यक्षता हर समय प्रदेश के मुख्य सचिव के पास पदेन रही है।
इस वस्तुस्थिति से यही उभरता है कि अब तक हमारी नीयत और नीति कर्ज लेकर घी पीने तक की ही रही है। सारी योजना का मुख्य बिन्दु हर रोज़ कर्ज के नये स्त्रोत तलाशने तक ही रहा है। प्रशासन से लेकर राजनीतिक नेतृत्व तक सभी तदर्थवाद पर ही चलते रहे हैं। किसी ने भी यह चिन्ता करने का प्रयास नही किया कि जिस दिन यह सब कुछ अचानक धराशायी हो जायेगा तो तब क्या होगा। यह कहना कतई गलत है कि प्रदेश के पास संसाधन नही है और यह आत्मनिर्भर नही हो सकता। इसके लिये नीयत और नीति चाहिये। लेकिन शायद तन्त्र की नीयत ‘‘ऋणम् कृत्वा धृतम पीवेत’’ की हो गयी है। नीति के लिये अध्ययन और जानकारी चाहिये। वह थोड़ा कठिन काम है परन्तु असंभव नही। इसलिये युवा मुख्यमन्त्री से यही आग्रह है कि कर्ज की स्थिति से बाहर निकलने के लिये नीयत दिखाओगे तो नीति भी कोई दिखा देगा।