शिमला/शैल। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने एफ. आर. डी. आई. के प्रस्तावित विधेयक पर उठी शंकाओं को निराधार करार देते इन्हें पूरी अफवाह कहा है कि इसी के साथ यह भी आश्वासन दिया है कि लोगों का बैंको में जमा धन सुरक्षित रहेगा। प्रधानमन्त्री के इस आश्वासन से पहले वित्तमन्त्री अरूण जेटली और उनके वित विभाग ने भी ऐसा ही आश्वासन दिया है और यह कहा है कि लोगों का एक लाख का जमा धन सुरक्षित रहेगा। स्मरणीय है कि एक लाख तक की सुरक्षा तो 1961 में संसद में एक बिल लाकर दे दी गयी थी लेकिन एक लाख से अधिक के जमा की सरुक्षा का क्या होगा और यह सुरक्षा कैसे सुनिश्चित रहेगी इस पर कुछ नही कहा गया है। जबकि संसद के माध्यम से 1961 में दी गयी एक लाख की सुरक्षा की सीमा को तो आज तक बढ़ाया नही गया। यह प्रस्तावित विधेयक संसद में लंबित है और सत्र शुरू हो गया है। माना जा रहा है कि इसी सत्र में पारित हो जायेगा क्योंकि प्रधानमन्त्री और वित्त मन्त्री ने अपने आश्वसनों में यह नही कहा है कि इस प्रस्तावित विधेयक को अभी लंबित रखा जायेगा या इसे वापिस ले लिया जायेगा। इस कारण से प्रधानमन्त्री और वित्तमन्त्री के आश्वासनों पर भरोसा करने की कोई ठोस वजह नही रह जाती है। बल्कि बैंकों के जिस बढ़ते एन.पी.ए. के कारण यह विधेयक लाया गया है अब उस एन.पी.ए. को भी प्रधानमन्त्री नेे यूपीए शासन का एक सबसे बडा घोटाला करार दिया है।
बैकों का एन.पी.ए. किसके कारण इसके लिये एक अलग आंकलन की आवश्यकता है क्योंकि जब चुनाव लगातार मंहगा होता जा रहा है बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि जब चुनाव केवल पैसे के दम पर ही लड़ा और जीता जायेगा तब स्वभाविक है कि इस पैसे का प्रबन्ध सिर्फ उद्योगपतियों के पैसे से ही हो पायेगा क्योंकि कोई भी राजनीतिक दल अपने राजनीतिक कार्यकर्ताओं के चन्दे से तो इतने पैसे का जुगाड़ नही कर सकता। कार्यकर्ताओं के चन्दे से चुनाव प्रचार के लिये हैलीकाॅप्टरों का प्रबन्ध नही हो सकता। हैलीकाॅप्टर केवल उद्योगपति ही उपलब्ध करवाता है और इस हैलीकाॅप्टर के बदले में उसे सरकारी बैंक से लाखों करोड़ का कर्ज तथा सरकार से यह आश्वासन है कि वह इस कर्ज की वसूली के लिये उसे राहत का पैकेज देगी न कि एन.पी.ए. होने की सूरत में उसके संसाधनों की नीलामी करके इस कर्ज को वसूला जाये। प्रधानमन्त्री ने यहां इस एनपी.ए. के लिये यू.पी.ए. सरकार को दोषी ठहराया है वहां यह नही बताया है कि इस एन.पी.ए. की वसूली कैसे की जायेगी। क्योंकि 2016 में बैंकरपटसी और इनसाल्बैनसी कोड लाया गया और फिर उसे एक अध्यादेश लाकर विलफुल डिफाॅलटर के प्रति और कड़ा गया था। अब इस प्रस्तावित एफ.आर.र्डी.आइ. विधेयक के माध्यम से उसकी धार को भी कुन्द कर दिया गया है। 2014 में जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली थी उस समय यह एन.पी.ए. करीब तीन लाख करोड़ कहा गया था जो अब बैंक यूनियनों के मुताबिक ग्यारह लाख करोड़ को पंहुच गया है। इसका सीधा सा अर्थ यही है कि मोदी सरकार ने भी इसे वसूलनेे के लिये कड़े कदम उठाने की बजाये इसे बढ़ने दिया।
आज यह बैंको का एन.पी.ए. ही सारे संकट की जड़ है इस समय स्थिति यह हो चुकी है। कि एक अबानी/अदानी जैसे बड़े उद्योग घराने के संकट से पूरे देश कीे व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है कई बड़ी कंपनीयां पब्लिक लि॰ से प्राईवेटे हो चकी हैं और यह एक बड़े संकट का संकेत है। वित्तमन्त्री ने 2016 के बजट भाषण में वित्तिय अनुशासन लाये जाने का संकेत दिया था और उसके बाद ही अतिरिक्त सचिव की अध्यक्षता में कमेटी गठित हुई जिसकी रिर्पोट पर यह एफआर.र्डी.आइ. विधेयक लाया गया है। लेकिन इसी रिपोर्ट के बाद नवम्बर में नोटबंदी लायी गयी तो क्या इस नोटबंदी के संकेत इस रिर्पोट में थे? यदि इसकी चर्चा छोड़ भी दी जाये तब भी यह सवाल तो अपनी जगह खड़ा रहेगा कि नोटबंदी भी इसी एन.पी.ए. के कारण लायी गयी। क्योंकि नोटबंदी के माध्यम से सरकार को भरोसा था कि उसे 86% नयी कंरसी छापने की सुविधा मिल जायेगी। यदि पुराने नोट 99% की जगह 40 या 50% तक ही वापिस आते तो नोटबंदी का प्रयोग सफल हो जाता। क्योंकि जो आधी नयी कंरसी उपलब्ध रहती उसे यह एन.पी.ए. आसानी से राईटआॅफ हो जाता जिससे पूरा उद्योग जगत बिना शर्त सरकार के साथ खड़ा हो जाता बल्कि कुछ दूसरे वर्गों को भी राहत मिल जाती लेकिन नोटबंदी का प्रयोग अफसल रहने के कारण ही आज इन एन.पी.ए. धारको को बचाने के लिये ही एफ.आर.डी.आई. में ‘‘बेलइन’’का प्रावाधान किया गया है।
क्योंकि नोटबंदी का प्रयोग सबसे पहले 1946 में आरबीआई ने अपनाया था और उस समय 1000 और 10,000 के नोट जारी किये गये थे। उसके बाद 1954 में 1000,5000,10,000 के नये नोट जारी किये। फिर 1978 में जनता पार्टी की मोरार जी भाई की सरकार में आरबीआई ने इन नोटों को चलन से बाहर कर दिया। लेकिन हर बार यह फैंसले आरबीआई के स्तर पर घोषित हुए। उस समय बैंकों और उद्योगपतियों को राहत देने के लिये ‘‘बेलइन’’जैसे प्रावधान नही लाये गये थे। आज यदि सरकार इस प्रस्तावित विधेयक को वापिस नही लेती है और उद्योगपतियों को प्रति सख्त नही होती है तो इसके परिणाम बहुत अच्छे नही रहने वाले है यह तय है।