अभद्रता का हथियार कब तक चलेगा

Created on Thursday, 14 December 2017 11:44
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। कांग्रेस के निलंबित नेता मणीशंकर अय्यर के ब्यान के बाद गुजरात के चुनाव प्रचार अभियान की तर्ज बदल गयी है क्योंकि इस ब्यान पर जिस तरह की प्रतिक्रिया प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और अन्य भाजपा नेताओं की आयी है। उससेे यह सोचने पर विवश होना पड़ रहा है कि क्या अब अभद्र भाषा चुनावी राजनीति का एक सबसे बड़ा हथियार बनती जा रही है। अभद्र भाषा का प्रयोग राजनीति में किस कदर आता जा रहा है यदि इसका एक निष्पक्ष आंकलन किया जाये तो स्पष्ट हो जाता है। कि ऐसी भाषा के प्रयोग के बाद वह सारे मुद्दे /प्रश्न चुनाव प्रचार अभियान के बाद गौण हो जाते हैं जो सीधे आम आदमी के साथ जुडे हुए होते हैं। जबकि चुनाव इतना महत्वपूर्ण कार्यक्रम है जिससे संबधित देश /प्रदेश का भविष्य तय होता है। आने वाले समय में सत्ता का सही हकदार कौन है? किसके हाथ में प्रदेश का भविष्य सुरक्षित रहेगा यह सब इस चुनाव की प्रक्रिया से तय होता है। इसके लिये आम आदमी से जुड़े मुद्दों पर जहां सार्वजनिक बहस होनी चाहिये वहीं पर इससे बचने के लिये एक ब्यान में एक बहुअर्थी अभद्रशब्द का प्रयोग पूरे परिदृश्य को बदल कर रख देता है। मतदाता को यह समझने ही नही दिया जाता है कि ऐसे शब्दों के प्रयोग से कैसे बड़ी चालाकी से उसका ध्यान गंभीर मुद्दों की ओर से भटका दिया जाता हैै।
मणीशंकर अय्यर ने प्रधानमन्त्री द्वारा स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू के संद्धर्भ में दी गयी प्रतिक्रिया को लेकर यह कहा कि ऐसी प्रतिक्रिया कोई नीच किस्म का व्यक्ति ही दे सकता है। नीच किस्म का व्यक्ति होना और नीच होने के अर्थो में दिन रात का अन्तर है लेकिन इस अन्तर को नजरअन्दाज़ करके इसका सारा संद्धर्भ ही बदल दिया गया। स्व. जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी को लेकर जिस तरह के पोस्टर सोशल मीडिया में आते रहे हैं और आ रहे हैं वह सब क्या नीचता के दायरे में नही आते हैं? क्या उस पर सरकार की ओर से कोई निन्दा और कारवाई नही कि जानी चाहिये? पूरे नेहरू -गांधी परिवार को लेकर जो कुछ अनर्गल प्रचार चल रहा है क्या उसकी प्रंशसा की जानी चाहिये या उसके खिलाफ कड़ी कारवाई होनी चाहिये? लेकिन केन्द्र सरकार इस संद्धर्भ में एकदम मोन रही है। बल्कि यहां तक सामने आ गया है कि ऐसे अनर्गल प्रचार के लिये सरकार की साईटस का प्रयोग किया जा रहा है। इस परिदृश्य में यह भी स्मरणीय है कि 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद जिस स्तर तक कई भाजपा नेताओं की भाषा मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ गयी थी तब प्रधानमन्त्री को ऐसे नेताओ को यह हिदायत देनी पड़ी थी कि ऐसी ब्यानबाजी न करेें। प्रधानमन्त्री की इस हिदायत का भले ही इन नेताओं पर कोई असर न हुआ हो लेकिन प्रधानमन्त्री ने निंदा की औपचारिकता तो निभाई थी। आज कांग्रेस ने अय्यर को पार्टी से निलंबित कर दिया है लेकिन प्रधानमन्त्री ने अय्यर पर यहां तक आरोप लगाया है कि अय्यर ने उनके लिये पाकिस्तान में सुपारी दी है। प्रधानमन्त्री का यह आरोप बहुत गंभीर है। यदि यह आरोप वास्तव में ही सच है तो इस पर केन्द्र सरकार को कारवाई करनी चाहिये और देश के सामने इसका खुलासा रखना चाहिये। यदि यह आरोप महज़ एक राजनीतिक ब्यान मात्र ही है तो इससे प्रधानमन्त्राी की छवि आम आदमी के सामने क्या रह जायेगी और उसका परिणाम क्या होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। क्योंकि कांग्रेस ने जहां अय्यर को पार्टी से निलंबित कर दिया है वहीं पर भाजपा से भी यह मांग की जाने लगी है कि वह अपने भी उन नेताओं के खिलाफ कड़ी कारवाई करे जो अभद्र भाषा को प्रयोग करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं।
अय्यर के ब्यान पर कांग्रेस की कारवाई के बाद प्रधानमन्त्री ने इस ब्यान को एक बड़ा मुद्दा बनाकर गुजरात के प्रचार अभियान में उछाल दिया है। लेकिन क्या इस उछालने से वहां के मुद्दे गौण हो जायेंगे? गुजरात में भाजपा पिछले बाईस वर्षों से सत्ता में है और आज इस प्रदेश का कर्जभार दो लाख करोड़ से अधिक का हो चुका है। यह दो लाख करोड़ कहां निवेशित हुआ है और इससे प्रदेश के खजाने को कितनी नियमित आय हो रही है आम आदमी को इस कर्ज से क्या लाभ हुआ है? यह सवाल इस चुनाव में उठने शुरू हो गये थे। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गंाधी ने भाजपा सरकार से इन बाईस वर्षों का हिसाब मांगते हुए प्रतिदिन प्रधानमन्त्री से प्रश्न पूछने शुरू किये हैं जिनका कोई जवाब नही आया है। चुनाव के दौरान पूछे जाने वाले सवालों का जवाब नहीं आता है। हिमाचल मे भी भाजपा ने वीरभद्र से हिसाब मांगा था जो नही मिला। लेकिन चुनाव में पूछे गये सवालों का परिणाम गंभीर होता है। बशर्ते कि हिसाब मांगने वाले का अपना दामन साफ हो। ऐसे में यह स्वभाविक हो जाता है कि जब तीखे सवालों का कोई जवाब नही रहता है तब उन सवालों का रूख मोड़ने के लिये ऐसे बहुअर्थी अभद्र शब्दों का सहारा लेकर स्थितियों को पलटने का प्रयास किया जाता है। गुजरात में अय्यर का ब्यान प्रायोजित था या नही यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन इस ब्यान ने एक सुनियोजित भूमिका अदा की है। इसमें कोई दो राय नही है। परन्तु अन्त में फिर यह सवाल अपनी जगह खड़ा रहता है कि यह अभद्रता का हथियार कब तक चलेगा।