चुनाव आयोग की निष्पक्षता सवालों में

Created on Tuesday, 17 October 2017 08:21
Written by Shail Samachar

हिमाचल प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल 7 जनवरी और गुजरात विधानसभा का 22 जनवरी 2018 को समाप्त हो रहा है। पांच वर्ष पूर्व दोनों राज्यों की विधानसभाओं के लिये चुनावों की घोषणा 3 अक्तूबर 2012 को एक साथ कर दी गयी थी। 2012 में हिमाचल में मतदान 4 नवम्बर को और गुजरात में 13 और 17 दिसम्बर को हुआ था। मतगणना दोनो राज्यों में 20 दिसम्बर को हुई थी। लेकिन इस बार चुनाव आयोग ने हिमाचल के लिये तो 12 अक्तूबर को चुनावों की घोषणा का दी परन्तु गुजरात के लिये नही की। आयोग की घोषणा के मुताबिक हिमाचल में 9 नवम्बर को मतदान होगा और 18 दिसम्बर को मतगणना होगी। हिमाचल के लिये चुनाव कार्यक्रम कर घोषणा करते हुए गुजरात के संद्धर्भ में आयोग ने इतना ही कहा कि वहीं पर भी 18 दिसम्बर से पहले चुनाव करवा लिये जायेंगे। परन्तु उसके लिये चुनाव तिथियों की घोषणा बाद में की जायेगी।
हिमाचल और गुजरात के बाद फरवरी, मार्च 2018 में मेघालय नागालैंड और त्रिपुरा विधान सभाओं के चुनाव होने है। स्वभाविक है कि इन राज्यों के लिये चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हिमाचल - गुजरात के परणिामों के करीब एक पखवाडे़ के बाद कर दी जायेगी। अभी कुछ दिन पहले ही चुनाव आयोग ने यह घोषणा की थी कि सितम्बर 2018 तक वह राज्यों की विधान सभाओं और लोक सभा के लिये एक साथ चुनाव करवाने के लिये तैयार होगा। स्मरणीय है कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में यह मंशा जाहिर की थी कि लोक सभा और राज्यों की विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव होने चाहिये और इसके लिये वह प्रयास करेंगे। स्वभाविक है कि प्रधानमन्त्री की इसी मंशा को अमली जामा पहनाने के लिये चुनाव आयोग ने इस दिशा में तैयारी करने के बाद मीडिया से यह विचार सांझा किये होंगे। विधान सभाओ और लोकसभा के चुनाव के एक साथ हो यह एक अच्छा कदम होगा। इससे चुनाव खर्च में कमी आयेगी। 1952 में हुए पहले चुनाव के बाद काफी समय तक एक साथ यह चुनाव होते रहे हैं लेकिन ऐसा करने के पीछे मंशा क्या है यह समझना महत्वपूर्ण और आवश्यक होगा क्योंकि इसमें निष्पक्षता ही सबसे आवश्यक मानदण्ड है।
लेकिन जहां 2018 में चुनाव आयोग इतने बड़े कार्यक्रम के लिये अपने को तैयार कर रहा हैै तो क्या उसके लिये आज इन 5 राज्यों के लिये एक साथ चुनाव करवाने की पहल नही कर लेनी चाहिये थी? परन्तु चुनाव आयोग तो आज हिमाचल और गुजरात के चुनाव एक साथ नही करवा पा रहा है। चुनाव आयोग की घोषणा के साथ ही हिमाचल में तो आचार संहिता लागू हो गयी है। इस घोषणा के साथ ही गुजरात को यह तो स्पष्ट हो गया है कि वहां भी चुनाव 18 दिसम्बर से दो-चार दिन पहले हो जायेंगे क्योंकि परिणाम दोनो ही राज्यों के एक साथ आयेंगे। लेकिन इससे गुजरात सरकार को अभी किसी भी तरह के लोक लुभावन फैसले लेने की सुविधा प्राप्त रहेगी। अभी प्रधानमन्त्री दो दिन के गुजरात दौरे पर जा रहे हैं और वह केन्द्र सरकार की ओर से राज्य को कुछ भी दे आयेंगे। चुनाव आयेाग ने हिमाचल के साथ ही गुजरात के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा न करने का यह तर्क दिया है कि वहां की सरकार ने बरसात में वर्षा, बाढ़ से हुए नुकसान की मुरम्मत आदि के कार्यो को पूरा करने के लिये उसे कुछ समय चाहिए कि आयोग से मांग की है। आयोग ने सरकार के इस आग्रह को स्वीकार करते हुए चुनाव तारीखों की घोषणा कुछ समय के लिये टाल दी है। आयोग का यह तर्क अपने में बहुत कमज़ोर ही नही बल्कि काफी हास्यस्पद भी लगता है। क्योंकि सभी जानते हैं कि आचार संहिता लागू होने के बाद पुराने चले हुए कार्यो को पूरा करने पर कोई बंदिश नही होती है केवल एकदम नयी घोषणाएं नही की जा सकती है। आयोग के इस आचरण से उसकी निष्पक्षता पर स्वभाविक रूप से सन्देह उभरते हैं।
हिमाचल में 9 नवम्बर को मतदान होे जाने के बाद यहां का परिणाम 18 दिसम्बर को निकालने तक करीब चालीस दिन तक यहां की सरकार और पूरा प्रशासन पंगू बना रहेगा। आयोग ने मतदान से परिणाम तक इतना लम्बा समय इसलिये किया है ताकि हिमाचल का परिणाम पहले घोषित कर देने से इसका असर गुजरात पर न पड़े। गुजरात विधानसभा का कार्यकाल 22 जनवरी को पूरा हो रहा है जिसका अर्थ है कि वहां पर जनवरी में भी मतदान करवाया जा सकता है ऐसे में चुनाव आयोग को अपनी निष्पक्षता स्थापित करने के लिये हिमाचल का परिणाम मतदान के दो दिन बाद ही घोषित कर देना चाहिए ताकि यहां सरकार बनकर वह जन कार्यों में लग जाये और गुजरात के लिये चुनाव कार्यक्रम की घोषणा ही 15 दिसम्बर के बाद करनी चाहिये।