भ्रष्टाचार पर चिन्ता नही कारवाई चाहिये

Created on Tuesday, 08 August 2017 14:07
Written by Shail Samachar

शैल/शिमला।  बढते अनियन्त्रित उपभोक्तावाद और गिरते नैकित मूल्यों का परिणाम है कि भ्रष्टाचार समाज में बिमारी की तरह फैल रहा है। इसके खिलाफ लोगों को सामूहिक रूप से लड़ना होगा चाहे भ्रष्टाचार करने वाला व्यक्ति कितना ही बड़ा क्यों न हो भ्रष्टाचार से निपटना सरकार की प्राथमिकता  होनी चाहिये । सर्वोच्च न्यायालय की जस्टिस सकुरियन जोसफ और जस्टिस आर भानुमति की पीठ ने नोएडा प्लाट आंवटन मामले में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव को दोषी करार देते हुए अपने फैसले में यह सब कहा है। सर्वोच्च न्यायालय की यह चिन्ता एक गंभीर चेतावनी है और इस पर तुरन्त प्रभाव से कारवाई किये जाने की आवश्यकता है। लेकिन यह सब होगा कैसे और कौन करेगा। क्योंकि कोई भी भ्रष्टाचारी स्वयं आकर को तो बताता नही है। कि उसने यह भ्रष्टाचार किया है। भ्रष्टाचार को चिहिन्त करके उसे प्रमाणित करने की जिम्मेदारी जांच ऐजैन्सियों की है और फिर उसे सजा देना न्यायालय कर काम है। लेकिन आज आम आदमी का विश्वास इन दोनों पर से उठता जा रहा है। केन्द्र से लेकर राज्यों तक जांच ऐजैन्सियों पर सत्तारूढ़ सरकार के दवाब में काम करने का आरोप उहर बार लगता रहा है। आज सीबीआई जैसी देश की सबसे बड़ी ऐजैन्सीय के पूर्व प्रमुख के खिलाफ गठित की गयी एसआईटी इसी आरोप का प्रमाण है। विजय माल्या का देश से बाहर चला जाना भी इसी का प्रमाण हैं यही नही वीरभद्र सिंह के मामलें उें सह अभियुक्त आनन्द चैहान का बिना किसी फैसले के एक साल से भी अधिक सय से न्यायिक हिरासत में होना और मुख्य आरोपी का बाहर होना जांच ऐजैन्सी और न्यायिक व्यवस्था दोनो पर एक साथ जो सवाल खड़े करता है उसको सामने रखते हुए आम आदमी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का साहस कहां से जुटा पायेगा।
अभी पिछले दिनों अरूणाचल के पूर्व मुख्यमन्त्री काली खो पूल का आत्म हत्या से पिछले दिन लिखा गया चालीस पन्नों का हस्ताक्षिरित पत्र जब सामने आया तो उससे राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री और सर्वोच्च न्यायालय पर अति गंभीर आरोप सामने आयें है। इस पत्र से पूरी व्यवस्था कठघरे में खड़ी हो जाती है। इस पत्र पर कोई जांच न करवाया और वहां के राज्यपाल तक को हटा दिया जाना प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के भ्रष्टाचार के खिलाफ किये जाने वाले सारे दावों की हवा निकाल देता है। काली खो पुल के पत्र के बाद जस्टिस सी एस कर्णनन के आरोपों से फिर पूरा देश दहला जाता है। न्यायधिशों पर कर्णनन ने गंभीर आरोप लगाये है लेकिन इन आरोपों पर कोई जांच नही होती है। जस्टिस कर्णनन को तो अवमानना का दोषी पाकर जेल भेज दिया जाता है। लेकिन उसके जेल जाने के वाबजूद वह आरोप तो अपनी जगह खड़े ही है। इन आरोपों की जांच करवा कर यदि कर्णनन को झूठे आरोप लगाने की सजा दी जाती तो जनता के विश्वास को एक आधार मिलता । लेकिन इन दोनों मामलों पर सरकार से लेकर शीर्ष अदालत का खामोश रहना गोस्वामी तुलसी दास जी की रामायण की इसी उक्ति को प्रमाणित करता है कि ’’ समर्थक को नही देाष गुसाई और सर्वोच्च न्यायालय की चिन्ता केवल पर उपदेश कुशल बहुतेरे से अधिक नही जाती है।
इस परिदृश्य में आम आदमी अन्त में यही मानने को विवश हो जाता है कि पैसे के सामने कानून और न्याय दोनों बहुत छोटे पड़ जाते है क्योंकि श्रेष्टता क एक ही मानदण्ड रह गया है और वह है पैसा। अनियन्त्रित उपभोक्तावाद का आधार केवल पैसा है और इसे पाने के लिये समाज का हर वर्ग अपने सार्मथ्य और सुविधा के अनुसार किसी भी सीमा तक जाने के लिये तैयार बैठा है। क्योंकि आज बाजार में इतना कुछ उपलब्ध है। जिसके उपभोगा की ईच्छा होना स्वभाविक हो गया है और जब यह जायज साधनों से संभव नही हो पाता है तब इसे पाने के लिये व्यक्ति भ्रष्टता का सहारा ले लेता है। भ्रष्टाचार और अपराध इसी बढ़ती उपभोक्ता संस्कृति के परिणाम है इसे रोकने के लिये शीर्ष अदालतों और सरकारों को प्रमाणित कदम उठाने होंगे जो आज दुर्भाग्य से कहीं नजर नही आ रहे है। लेकिन यह तय है कि यदि समय रहते इस दिशा में गंभीर कदम न उठाये गये तो देश में अराजकता फैलते कोई देर नही लगेगी। क्योंकि आज अच्छी शिक्षा और अच्छे स्वास्थ्य सेवाएं जोे हर वर्ग की एक समान आवश्यकताएं है वह अधिकांश  पहुंच  से बाहर होती जा रही है। फिर सरकार ने आर्थिक स्थिति सुधारने के नाम पर विमुद्रीकरण और एक देश एक कर जैसे जो कदम उठाये है उससे दैनिक उपभोग की वस्तुओं के दामों में कोई कमी नही आयी है अब रसोई गैस पर सब्सिडी खत्म करने के प्रस्तावित फैसले से मंहगाई और बढ़ेगी यह तय है इन सारे फैसलों का अनित परिणाम केल भ्रष्टाचार होगा। क्योंकि जब सक्ष्म साधनो का अभाव होता है तो उपभोगय वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने का सबसे आसान तरीका केवल भ्रष्ट होना ही शेष रह जाता है ऐसे में आम आदमी की आज की बुनियादी आवश्यकताओं शिक्षा, स्वास्थ्य औ आवास की सुनिश्चितता के लिये इन क्षेत्रों में बढ़ते निजिकरण पर नीतिगत स्तर पर नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता है इसी के साथ व्यवस्था पर आ आदमी के विश्वास को बनाये रखने के व्यवहारिक उपाय अपनाने होंगे क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में आम आदमी का विश्वास आहत होता जा रहा है जो कालान्तर में घातक सिद्ध होगा।