शिमला/शैल। 2014 के लोकसभा चुनावों में मिली अप्रत्याशित प्रचण्ड जीत से उत्साहित भाजपा ने केन्द्र में सरकार बनाने के साथ ही देश को कांग्रेस मुक्त बनाने का संकल्प ले लिया था। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने के बाद जो विधानसभा चुनाव हुए उनमें सबसे पहले भाजपा को दिल्ली में उसी अनुपात में धक्का लगा जिस अनुपात में लोकसभा में मिली थी। दिल्ली के बाद महाराष्ट्र, बिहार और जम्मू- कश्मीर में चुनाव हुए। यहां बिहार में लालू - नीतिश गठबन्धन ने सरकार बनाई और जे एण्ड के तथा महाराष्ट्र में भाजपा को परिणाम आने के बाद पीडीपी और शिव सेना के साथ गठबन्धन करके सरकार बनानी पड़ी है। अकेले अपने दम पर बहुमत नही मिला। इन चुनावों के बाद यूपी पंजाब, उतराखण्ड, गोवा और मणीपुर में हुए। यहां पंजाब में अकाली भाजपा गठबन्धन को हराकर कांग्रेस सत्ता में आयी। यूपी और उतराखण्ड में भाजपा ने शाहनदार जीत हालिस करके सरकारें बनाई लेकिन गोवा और मणीपुर में जिस ढंग से सरकारें बनाई उससे भाजपा की सरकार को कोई बड़ा बल नही मिला। लेकिन अब बिहार में जिस तरह से फिर नीतिश के साथ मिलकर सरकार बनाई है उससे भाजपा की सिन्द्धात प्रियता की छवि को फिर से धक्का ही लगा।
बिहार में जो कुछ घटा उससे यह सवाल उठता है कि क्या भाजपा देश को सही में ही कांग्रेस की विचार धारा का विकल्प देकर ’ कांग्रेस मुक्त भारत’ का लक्ष्य हालिस करना चाहती है या केवल ‘येन केन प्रकारेण’ कांग्रेस से सत्ता छीनना चाहती है। क्योंकि जो कुछ बिहार ,मणीपुर और गोवा में हुआ है उसे केवल लाभ हालिस करने वाले कुछ राजनेता कुछ बड़े उद्योगपति और कुछ अधिकारी/कर्मचारी तो इसे सही मान सकते है लेकिन राजनीतिक विचारक नही। अभी नीतिश कुमार ने देश के उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिये विपक्ष के उम्मीवार गोपाल गांधी को समर्थन देने का ऐलान किया था लेकिन क्या अब बदले समीकरणों में भी वह ऐसा कर पायेंगे इसका खुलासा आने वाले समय में ही होगा। लेकिन इसमें गांधी या नायडू जिसके भी पक्ष़्ा में वह जायेंगे उससे यही प्रमाणित होगा कि नीतिश और भाजपा को केवल सत्ता चाहिये थी। विचारधारा तो केवल जनता को परोसने के लिये होती है। पंजाब में भी राजोआना की फांसी के मामले में भी भाजपा ने सत्ता को प्राथमिकता देकर इस विषय पर एक दिन भी अपना मुुुंह नही खोला। इसी सत्ता के कारण आज पीडीपी के साथ सरकार में बनी हुई है। सत्ता के कारण ही सर्वोच्च न्यायालय मे जम्मू- कश्मीर के संविधान की धारा 35 A के मामले में केन्द्र सरकार अपना स्पष्ट मत नही रख रही है। जबकि विपक्ष में रहते हुए हर मंच पर हर भाषण में धारा 370 हटाने की मांग की जाती थी। इसी सत्ता के कारण अप्रवासी भारतीयों को मताधिकार दिये जाने के प्रस्ताव को देश में सार्वजनिक बहस के लिये नही रखा जा रहा है। कांग्रेस के जिस भ्रष्टाचार को चुुनावों से पहले हर मंच से प्रचारित किया जा रहा था उसके खिलाफ कहीं कोई ठोस कारवाई अब तक सामने नही आयी है। ऐसे और भी बहुत सारे बिन्दु है जिन पर भाजपा/संघ की कथनी -करनी पर सवाल उठाये जा सकते है।
इस परिदृश्य में यह सवाल उठाया जा सकता है कि यदि भाजपा केवल हर राज्य में सत्ता पर काविज होकर ही देश को कांग्रेस मुक्त करने का लक्ष्य रखे हुए है और उसके लिये बिहार- गोवा जैसे हथकण्डे इस्तेमाल करके उसे पाना चाहती है तो यह कालान्तर में देशहित में नही होगा। आज जिस तरह से देश की स्वतन्त्रता के इतिहास को दीनानाथ बत्रा जैसे विद्वान नये सिरे से लिखने का प्रयास कर रहे हैं। उससे कोई बड़ा लाभ नही मिल पायेगा क्योंकि जो पहले लिखा गया है वह यथास्थिति मौजूद है इस नये लेखन से जो बहस उठेगी उसके परिणाम कोई बहुत सुखद नही होंगे। इसलिये कांग्रेस मुक्त भारत के संकल्प को पूरा करने के लिये राजनीतिक आचरण से शुरूआत करने की आवश्यकता है। आज जब केन्द्र में भाजपा के पास पूरी सत्ता है तो उसे राज्यों में ऐसी तोड़फोड़ करके सरकार बनाने का प्रयास नही करना चाहिये। यदि बिहार में सरकार गिर जाती और नये चुनाव करवा दिये जाते तो वह भाजपा और देश के हित में ज्यादा अच्छा होता। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नीतिश का क्या स्टैण्ड है वह इस प्रकरण में खुलकर सामने नही आ पाया है। उल्टे नीतिश के अपने खिलाफ लंबित हत्या और हत्या के प्रयास के लिये धारा 147,148,149,302,307 के तहत दर्ज मामला चर्चा में आ गया है। इस मामलें पर 8.9.2009 से उच्च न्यायालय का स्टे चल रहा है लेकिन स्टे से मामला खत्म नही हो जाता। बल्कि सवाल उठता है कि इस मामले पर इतने लम्बे समय से स्टे क्यों चल रहा है इसे परिणाम तक पहुंचाने का प्रयास क्यों नहीं किया गया? नीतिश ने अब छटी बार मुख्यमन्त्री पद की शपथ ली है ऐसे में स्वभाविक रूप से यह सवाल उठेगा कि क्या इस मामले को आज तक राजनीतिक दवाब के चलते अंजाम तक नहीं पहुंचने दिया जा रहा है। आज इस सवाल पर तो अब भाजपा और मोदी को भी जवाब देना होगा? इस परिदृश्य में भाजपा को वैचारिक स्तर पर कांग्रेस को मात देने के लिये ऐसे राजनीतिक आचरणों से परहेज करना होगा अन्यथा भाजपा की भी कांग्रेस जैसी हालत होते देर नही लगेगी।