शिमला/शैल। देश के अगले राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद होेंगे- उनका चुना जाना तय था क्योंकि संख्या बल भाजपा के पक्ष में था। कोविंद की तरह वैंकया नायडू का उपराष्ट्रपति चुना जाना भी पूर्व निश्चित है। राष्ट्रपति चुनाव में कितनी क्रास वोटिंग हुई और उप राष्ट्रपति के लिये कितनी होगी यह सत्ता पक्ष और विपक्ष के राजनीतिक गणित के लिये तो महत्वपूर्ण हो सकता है लेकिन आम आदमी के लिये नहीं। भाजपा के पास प्रचण्ड बहुमत है इसलिये दोनों पदों पर उसी के उम्मीदवारों का चुना जाना कोई अस्वभाविक नही है क्योंकि इन सर्वोच्च पदों के लिये भी हम अभी तक आम राय की प्रथा नही बना पाये हैं। ऐसे में इस पर कोई भी चर्चा ज्यादा महत्व नही रखती। भाजपा के अपने राजनीतिक गणित में इन पदों के लिये जिस तरह के चेहरे सही बैठते थे वह उसने देश को दे दिये हैं। लेकिन इनका चयन करने में जो तर्क देश के सामने रखा गया है उस पर चर्चा किया जाना आवश्यक है। क्योंकि राम नाथ कोविंद को दलित और नायडू को किसान चेहरे के रूप में प्रस्तुत किया गया है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि इन सर्वोेच्च पदों के चयन में दलित और किसान के तर्क की आवश्यकता क्यों आ खडी हुई।
देश में दलित राजनीतिक चर्चा का विषय 1930-32 में हुए विचार-विमर्श के बाद आये पूना पैकेट में स्वीकार लिया गया था और 1935 में आये भारत सरकार अधिनियम के तहत प्रांतीय सरकारों में इनके लिये सीटों का आरक्षण किया गया था। 1947 में देश के आजादी के बाद दलितों की स्थिति पर हुए लम्बे विचार-विमर्श के इनके लिये संसद से लेकर राज्यों के विधान मण्डलों तक स्थान आरक्षित रखे गये। यही नही सरकारी नौकरियों में भी आरक्षण का प्रावधान किया गया। क्योंकि देश के अन्दर गरीबी की जो परिभाषा 1870 में दादा भाई नारोजी ने उस समय सामने रखी थी उसमें कालेलकर कमेटी की रिपोर्ट में भी ज्यादा अन्तर देखने को नही मिला। बल्कि जनवरी 1981 में इस संद्धर्भ में हुए प्रथम राष्ट्रीय सम्मेलन के बाद 1983-84 में आये विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 40% जनता गरीबी रेखा से नीचे थी। गरीबी रेखा से नीचे का आंकड़ा क्या है इसमें संभवतः आज भी ज्यादा अन्तर नही मिलेगा। केवल कुछ मानकों में थोड़ा सुधार हुआ है। इस गरीबी रेखा से नीचे के आंकड़े में आज भी देश के दलित वर्ग की संख्या अधिक है। इस वर्ग को मुख्य धारा में लाने के लिये आरक्षण को एक कारगर साधन माना गया था। दलित के साथ अन्य पिछड़ा वर्ग भी आज 27% आरक्षण का लाभ ले रहा है। आरक्षण की इस व्यवस्था पर वी.पी. सिंह सरकार के काल में इन आरक्षित वर्गों में से क्रिमी लेयर को आरक्षण से बाहर रखने का प्रावधान किया गया था। इस प्रावधान पर सर्वोच्च न्यायालय की भी मोहर लगी हुई है लेकिन आरक्षण को पूरी तहर से समाप्त करने को लेकर वी.पी. सिंह सरकार के समय में जो मांग उठी थी वह आज भी बरकरार है। उस समय आरक्षण विरोध का आन्दोलन कितना हिंसक हो गया था यह पूरा देश जानता है। उस आन्दोलन में कैसे स्कूलों के छोटे-छोटे बच्चे सड़कों पर बाहर आये थे कितने आत्मदाह हुए थे यह सबने देखा है। उस आन्दोलन का अपरोक्ष नेतृत्व संघ के हाथों में था यह भी सब जानते हैं।
आरक्षण विरोध आज भी जारी है। कई रूपों में देखने को मिल रहा है। अब गो-रक्षा के नाम पर कई जगह दलित उत्पीड़न के मामलें भी सामने आने लगे हैं। गो-रक्षा के नाम पर हो रही हिंसा की निंदा प्रधानमन्त्री भी कर चुके हैं उन्होने ऐसी हिंसा को रोकने के लिये राज्य सरकारों को सख्ती से पेश आने को कहा है। लेकिन इस संद्धर्भ में अलग से कानून बनाने की विपक्ष की मांग को अस्वीकार कर दिया गया है। दलित अत्याचार के विरोध में ही मायावती ने राज्यसभा से त्यागपत्र दे दिया है। सहारनपुर में हुई हिंसा को सब जानते हैं आरक्षण विरोध को संघ का समर्थन हासिल है और आज केन्द्र में संघ की ही अपरोक्ष में सरकार है। आरक्षण विरोध फिर उभरेगा ऐसे संकेत सामने आ चुके हैं । राष्ट्रपति इन वर्गों के लिये एक विशेष अधिकारी भी है। आज सत्तारूढ़ दल द्वारा दलित को देश के सर्वोच्च पद पर तो पहुंचा दिया गया है। अब यह देखना होगा कि क्या दलित के राष्ट्रपति होने से ही दलितों की सारी समस्याएं हल हो जायेंगी? क्योंकि इस समय संसद में ही 120 सांसद दलित वर्गों से हैं लेकिन वह ही जब दलित समस्या को हल नही कर पाये हैं तो क्या यह लोग अब दलित राष्ट्रपति पाकर यह कर पायेंगे?
इसी तरह आज देश का किसान आत्म हत्या कर रहा है। वह कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है। राज्य सरकारों द्वारा लायी जा रही किसान ऋण माफी योजनाओं के लिये धन उपलब्ध करवाने से देश के वित्त मन्त्री ने साफ इन्कार कर दिया है। वित्तमन्त्री ने साफ कहा है कि इसके लिये राज्य सरकारों को अपने साधनों से धन जुटाना होगा। इस परिदृश्य में क्या आज एक किसान के उपराष्ट्रपति बनने से ही देश के किसानों की समस्याएं हल हो जायेंगी। आने वाले दिनों में इन बडे़ सवालों पर देश की जनता की निगाहें रहेंगी।