भाजपा की रथ यात्रा- कुछ सवाल

Created on Wednesday, 12 July 2017 08:06
Written by Shail Samachar

भाजपा ने सत्ता परिवर्तन के लिये प्रदेश में रथ यात्रा आयोजित की है। इस यात्रा के माध्यम से प्रदेश की जनता को जागृत किया गया है। जनता के बीच मुख्यमन्त्री से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार फैलने के आरोप लगाये गये हैं। भ्रष्टाचार के प्रकरण में मुख्यमन्त्री स्वयं जमानत पर हैं बल्कि उनकी पत्नी तक जमानत पर हैं यह जनता के सामने रखा गया है। प्रदेश में माफिया राज होने की बात की है। भाजपा के इन आरोपों के जनता तक पहुंचने से भले ही प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो जाये लेकिन भाजपा इन आरोपों पर क्या करेगी और आज केन्द्र में उनकी सरकार इस बारे में प्रचार से अधिक कुछ नहीं कर रही है, और इस बारे में जनता के सामने कुछ नही रखा गया है। प्रदेश की ओर से समस्याएं क्या है और उनके बारे में भाजपा का क्या आकलन है? उनका समाधान क्या है इस बारे में भी इस यात्रा के दौरान कुछ नही कहा गया है। जबकि यात्रा के दौरान भाजपा के केन्द्रिय नेताओं से लेकर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमन्त्रीयों तक ने प्रदेश की जनता को संबोधित किया है। प्रदेश के युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी का हल क्या है और यह क्यों बढ़ रही है इस बारे में भी जनता से कुछ नही कहा गया है।
आज प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या बढ़ता कर्जभार हो रहा है। यह कर्जभार इस कदर बढ़ चुका है कि कर्ज का ब्याज चुकाने के लिये भी कर्ज लेना पड़ रहा है। इसी कर्ज की विभिषिका को देखकर योजना आयोग ने 1998-99 में सरकार में दो वर्ष से खाली चले आ रहे कर्मचारियो के पदों को समाप्त करने के निर्देश दे दिये थे। इन निर्देशों की अनुपालना में सरकार को उस समय योजना आयोग से एक एमओयू तक साईन करना पड़ा था। इस एमओयू के साईन होने के बाद प्रदेश में कर्मचारियों में सैंकड़ो नही हजारों पद समाप्त किये गये थे बल्कि इसके बाद ही अनुबन्ध और आऊटसोर्स जैसे रास्ते निकाले गये थे। लेकिन आज इस तरह की सारी नियुक्तियों का प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक ने कड़ा संज्ञान लिया है ‘‘समान काम के लिये समान वेतन का फैसला’’ सर्वोच्च न्यायालय से आ चुका है। नियुक्ति एवम् पदोन्नत्ति नियमों से हटकर की गयी सारी नियुक्तियों को अदालत ने चोर दरवाजा से की गयी भर्तियां करार दिया है। अदालत के इन फैसलों का आने वाले समय में प्रदेश की वित्तिय स्थिति पर गंभीर असर पेड़गा।
इस समय प्रदेश कर्ज के ऐसे चक्रव्यूह मे फंस गया है कि इसके लिये एफआरवीएम एक्ट से लेकर संविधान की धारा 205 तक का उल्लघंन किया जा रहा है। केन्द्र सरकार के वित्त विभाग की ओर से 29 मार्च 2016 को पत्र आया था जिसमें प्रदेश सरकार को अपनी वित्तिय स्थिति पर नियन्त्रण रखने की हिदायत दी गयी थी। इस पत्र के अनुसार वित्तिय वर्ष 2016-2017 के लिये कर्ज की अधिकतम सीमा 3540 करोड़ आंकी गयी थी। एफआरबीएम के मुताबिक जीडीपी के 3.1 से अधिक कर्ज नही लिया जा सकता। लेकिन 2016-17 में ही करीब 7000 करोड़ का कर्ज सरकार ले चुकी है। 2017-18 के चुनावी वर्ष में यह कर्ज और बढे़गा। यही नही सरकार एक लम्बे अरसे से राज्य की समेकित निधि से हर वर्ष ज्यादा खर्च करती आ रही है। ऐसा खर्च संविधान की धारा 205 की सीधी अवमानना है। कैग की हर वर्ष की रिपोर्ट में इसका जिक्र आ रहा है। कैग की रिपोर्ट हर बार सदन में पटल पर रखी जाती है लेकिन आज तक किसी भी माननीय ने सदन में इस पर चर्चा तक नही उठाई है। यदि यही स्थिति कुछ और समय तक चलती रही तो प्रदेश में वित्तिय आपात स्थिति की नौबत आ जायेगी।
प्रदेश की इस कड़वी सच्चाई का आम जनता को पता नही है जबकि इसके दुश्प्रभावों का असर केवल उसी पर पडे़गा। इस स्थिति के लिये प्रदेश की हर सरकार बराबर की जिम्मेदार रही है। आज आवश्यकता प्रदेश की जनता को इस सच्चाई से वाकिफ करवाने की है। कल भाजपा यदि सरकार में आती है तो वह इस स्थिति का कैसे सामना करेगी? वह प्रदेश को बढ़ते कर्जभार से कैसे मुक्ति दिलायेगी और जनता पर बिना कोई नया कर भार डाले विकास कैसे सुनिश्चित करेगी? आज भाजपा की रथ यात्रा के दौरान प्रदेश की जनता के सामने यह स्थिति रखी जानी चाहिए थी जो कि नही रखी गयी है। जबकि यह यात्रा ही एक सही मंच और माध्यम था जिससे जनता को इसी कड़वी सच्चाई से अवगत करवा कर इसके प्रति तैयार करवाया जाता। कल जब भाजपा भी जनता की अपेक्षाओं पर पूरा नही उत्तर पायेगी तो उसके विश्वास को बड़ा आघात पहुंचेगा जो कल को अराजकता का कारण बन सकता है।