कर राजस्व सरकार की आय का सबसे बड़ा साधन होता है और इसी कर की चोरी से काला धन पैदा होता है जिसके एक बड़े हिस्से का निवेश आतंक और नशीले पदार्थो की तस्करी में होता है। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत जमीनी सच्चाई है। अन्तर्राष्ट्रीय संसद, संयुुक्त राष्ट्र संघ, इससे उत्पन्न समस्याओें और इसके समाधान पर लम्बे समय से चर्चा करता रहा है और इसी चर्चा के परिणामस्वरूप मनीलाॅंड्रिंग नियम जैसे कदम भी सामने आये हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में उठी चर्चाओं के परिदृश्य में ही हमारी संसद में मनीलाॅंड्रिंग 2001-02 में मनीलाॅंड्रिंग अधिनियम को एक स्वरूप दिया गया जिसमें जनवरी 2013 में कुछ संशोधन करके उसे और भी कड़ा किया गया। जब मनीलाॅंड्रिंग पर संसद में चर्चा आयी थी उसी दौरान पूरे देश में एक ही सरल कर प्रणाली की आवश्यकता अनुभव करते हुए पहली बार जीएसटी का विचार सामने आया था। क्योंकि जब कर प्रणाली जटिल हो जाती है तो उससे ही यह शेष समस्याएं पैदा होती है। हमारे देश में पंचायत से लेकर राज्यों की विधान सभाओं और केन्द्र में संसद तक को कर लगाने के स्वतन्त्र अधिकार हासिल थे। इन्ही अधिकारों के चलते करों पर कर लगाने और उगाहने की स्थिति पैदा हो चुकी थी। इस कर प्रणाली को सरल बनाने और इसमें एकरूपता लाने के जब भी प्रयास हुए तो न केवल व्यापारी वर्ग ही बल्कि राजनीतिक दलों और नेताओं ने भी इसका विरोध किया। इसी विरोध और स्वीकार के कारण ही इस ‘‘एक कर एक राष्ट्र और एक बाजार’’ की अवधारणा को जमीनी हकीकत बनने में डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय लग गया। आज भी कुछ व्यापारी वर्ग और कुछ राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया है। लेकिन विरोध के बावजूद वित्तमन्त्री अरूण जेटली और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी इसे आकार देने में सफल हुए हैं इसके लिये वह प्रंशसा के हकदार हैं। इनके साथ ही वह राज्य विधान सभाएं भी प्रशंसा की पात्र हैं जिन्होने इसे रैक्टीफाई करने में देरी नहीं लगाई।
राज्य सरकारों को केन्द्रीय करों में से अपना हिस्सा पहले भी मिलता था और अब भी यह हिस्सा कुल के आधे भाग के रूप में मिलता रहेगा। इसलिये राज्यों को अपने कर राजस्व में कोई हानि नही होगी यह तय है। जीएसटी के दायरे में 1207 वस्तुओं को लाया गया है। इन पर लगने वाले कर के पांच स्लैव हैं। पहला स्लैव 5% का है जिसमें 263 वस्तुएं रखी गयी हैं, 12% के स्लैब में 242, 18% के स्लैब में 458 और 28% कर दायरे में 228 आईटमें रखी गयी हैं। इसके अतिरिक्त सोना, चांदी कीमती पत्थर आदि 18 चीजों पर 3% कर लगेगा। पहले इन पर कुल 2% टैक्स लगता था। इसी तरह बिना तराशे हीरे आदि की तीन चीजों पर 0.125% टैक्स लगेगा। इसी के साथ बिना पैकिंग के खुली बिना ब्रांड की बिकने वाली खाद्य सामाग्री को कर मुक्त रखा गया है। इसमें जिस वस्तु पर 5% टैक्स लगना है उस पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक टैक्स की दर में कोई बदलाव नही आयेगा। कोई भी उपभोक्ता अपने उपयोग की चीजों की एक बार सूची बनाकर यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसकी कितनी चीजें कर के किस-किस स्लैव में आती हैं। इसमें कालान्तर में उसे कोई कठिनाई सामने नहीं आयेगी। लेकिन बिना पैकिंग के खुले में बिकने वाली बिना कर की चीजों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि आज सरकार द्वारा संचालित सस्ते राशन की दुकानों में से सामान लेने वाले बीपीएल और एपीएल उपभोक्ताओं को राशन कार्ड पर मिलने वाली खाद्य सामाग्री पर यह सवाल रहेगा कि यदि उसे पैकिंग में दिया जाता है तो उस पर जीएसटी लागू होगा और खुले में बिना टैक्स के उसकी गुणवत्ता कौन सुनिश्चित करेगा यह बड़ा सवाल रहेगा। आज 18% से 28% के टैक्स स्लैव में 1207 में से 681 वस्तुएं रखी गयी है। यह वस्तुएं संभवतः पहले से मंहगी मिलेंगी। इसका आम आदमी पर नाकारात्मक प्रभाव पेड़गा। फिर सबसे बड़ा सवाल है कि पैट्रोल और डीजल को जीएसटी के बाहर रखा गया है। उत्पादक से उपभोक्ता तक वस्तु ट्रांसपोर्ट के माध्यम से ही पहुंचेगी। इसका कीमतों के अन्तिम निर्धारण पर असर पडे़गा। इस समय पैट्रोल-डीजल पर एक्साईज और वैट मिलाकर 57% टैक्स लिया जा रहा है। यदि इन्हे भी जीएसटी के दायरे में ला दिया जाता तो यह टैक्स केवल 28% ही लगता और इससे उपभोक्ता को भी लाभ मिलता और मूल्य की गणना में भी सरलता रहती। सेवा कर के दायरे में आने वाले अधिवक्ता वर्ग को जीएसटी के दायरे से बाहर रखना भी आने वाले दिनों में विवाद और चर्चा का केन्द्र बनेगा क्योंकि इसको लेकर अभी से कानाफूसी शुरू हो गयी है।
अब जब जीएसटी लागू हो गया है तो इसके लिये हर छोटे बड़े दुकानदार उद्यमी को कम्पयूटर की आवश्कता रहेगी। कम्पयूटर आप्रेशन के लिये नैटवर्क सिंगलन और विद्युत आपूर्ति की निर्वाध उपलब्धता सुनिश्चित करना आवश्यक होगा। जबकि इस समय देश की राजधानी दिल्ली में बिजली की 24x7 उपलब्धता सुनिश्चित नही है। ऐसे मे ‘‘एक कर, एक देश और एक बाजार’’ की अवधारणा को सफल बनाने के लिये इन व्यवहारिक पक्षों पर ध्यान देना आवश्यक होगा।