मोदी सरकार के तीन वर्ष

Created on Monday, 22 May 2017 10:04
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल।  केन्द्र में मोदी सरकार को सत्ता में तीन वर्ष हो गये हैं यह तीन वर्ष का समय आकलन के लिये एक पर्याप्त आधार माना जा सकता है। इन तीन वर्षों में राजनीतिक पटल पर यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार को इस मोर्चे पर महत्वपूर्ण सफलता मिली है क्योंकि दिल्ली, बिहार और पंजाब को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में उसकी सरकारें बनी है जहां- जहां चुनाव हुए। इस राजनीतिक सफलता से यह माना जा रहा है कि निकट भविष्य में होने वाले विधानसभाओं के चुनावों में भी उसे सफलता मिलेगी। लेकिन क्या इस सफलता के सहारे वह 2019 के लोकसभा चुनावों में भी 2014 जैसी ही सफलता हासिल कर पायेगी यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले भ्रष्टाचार और कालेधन को लेकर पहले स्वामी रामदेव और फिर अन्ना हजारे के आन्दोलनों ने जो वातावरण खड़ा कर दिया था और उसके परिणामस्वरूप जो जन अपेक्षाएं सरकार को लेकर बन गयी थी वह अभी पूरी नहीं हो पायी हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा संगत होगा कि उन अपेक्षाओं के संद्धर्भ अभी ठोस कुछ भी नहीं हुआ है। कालेधन के जो आंकडे़ उछाले गये थे तथा हर व्यक्ति के खाते जोे पैसा आने के स्वप्न दिखाये गये थे वह अभी ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर है। अलबत्ता जो मंहगाई बेरोजगारी और भ्रष्टाचार इस सरकार के बनने से हपले जिस पायदान पर खड़ा था आज भी वहीं खड़ा है। इस दिशा में भाषणों में तो बड़ी उपलब्धियां परोसी जा रही  हैं लेकिन वह हकीकत से बहुत दूर हैं।
इस दौरान सरकार ने जो कदम उठाये हैं उनमें जनधन योजना का नाम सबसे पहले आता है। इस योजना के माध्यम से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की पहुंच बैंक खातों तक तो बन गयी है। जीरो बैलेनस से यह खाते खुल गये हैं लेकिन क्या इन खातो में लगातार ट्रांजैक्शन हो रही है? क्या इन गरीब लोगों की नियमित रूप से इन खातों में कुछ जमा करवाने की हैसियत बन पायी है? या यह खाते केवल सरकार से मिलने वाली सबसिडि का लेखाजोखा होकर ही रह गये हैं। इनमें से कितने खाते एनपीए हो गये हैं यदि बैंको की गणित से इन खातों को देखा जाये तो एक खाता खोलने के लिये कम से कम बीस रूपये का खर्च आया है और खाता जीरो बैलेन्स पर बरकरार है फिर नोटबंदी के दौरान इन्ही खातों का दुरूपयोग भी हुआ है इस तरह जनधन योजना को कोई उपलब्धि करार देना ज्यादा सही नहीं होगा। इस योजना के बाद सामाजिक सुरक्षा दायरे का विस्तार किया जाना दूसरी उपलब्धि कही जा रही है। इसके तहत प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना अटल पैन्शन योजना और प्रधानमंत्री जीवन ज्योती योजना की गिनती हो रही है। लेकिन ऐसी ही योजनाएं पहले यूपीए सरकार के कार्यकाल में चल रही थी अब इनका दायरा कुछ बढ़ा दिया गया है लेकिन इन योजनाओं के माध्यम से क्या लाभान्वित व्यक्ति की आय के स्त्रोत में कोई नियमित बढ़ौत्तरी सुनिश्चित हो पायी है क्या उसके लिये कोई रोजगार का स्थायी अवसर सृजित हो पाया है? दुर्भाग्य से ऐसा नही हो पाया है बल्कि वह सरकार पर ज्यादा आश्रित हो गया है। सामाजिक सुरक्षा के बाद अनुसूचित जाति, अनुसुचित जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के गौण उद्यमीयों के लिये मुद्रा बैंक के जरिये संस्थागत समर्थन का प्रबन्धन किया गया है। इसके लिये 1,37,449,27 करोड़ की धन राशी स्वीकृत की गयी है। इस योजना को भारतीय औद्यौगिक वित्त निगम लागू करेगा और निगम को इसके लिये 200 करोड़ जारी भी कर दिये गये  हैं। इससे पूर्व भी यूपीए सरकार के समय में भी इन जातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये वित्त निगम कार्य कर रहे थे। बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग तक गठित थे जिन्हे अब बन्द किया जा रहा है। इसलिये कुल मिलाकर आर्थिक संद्धर्भ में समाज के गरीब वर्गों के लिये यूपीए और एनडीए की येाजनाओं में कोई भी गुणात्मकता अन्तर अभी सामने नजर नही आ रहा है।
बल्कि काॅरपोरेट जगत के लिये यह सरकार ज्यादा उदार नजर आ रही है। जो बैंक अपने एनपीए के बोझ तले दबकर बन्द होने के कगार पर पंहुच गये थे उन्हें सरकार ने नये सिरे से जीवन दे दिया है। बड़े उद्योगपतियों के लिये आर्थिक पैकेज पहले की तर्ज पर ही आज भी जारी हैं बल्कि बढे़ है। आज एक तरह से अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धा में जाने की बात की जा रही है उसी के लिये येाजनाएं बन रही हैं। जबकि देश की जमीनी हकीकत यह है कि जहां सरकारें जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय बढ़ने के दावे कर रही हैं उसके अनुपात में बीपीएल और सार्वजनिक ऋण के आंकडे ज्यादा बढ़ रहे हैं। अभी यह तथ्य सार्वजनिक चर्चा में नही आ पा रहे हैं लेकिन बहुत जल्द आम आदमी इस हकीकत से वाकिफ होने जा रहा है क्योंकि उसी रसोई का खर्च और स्कूल जाते बच्चे की फीस में कोई कमी आने की बजाये उसमें बढ़ौत्तरी ही देखने को मिल रही है। यदि सरकार समय रहते इस ओर ध्यान नहीं देगी तो कब स्थितिंयां उसके हाथ से निकल जायें इसका अन्दाजा भी नही लग पायेगा।