हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल ने प्रदेश विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के प्रौफेसर डा0 शशीकांत शर्मा को अपना अवैतनिक सलाहकार नियुक्त किया है। डा0 शशीकांत एक अनुभवी पत्रकार हैं। उसी अनुभव के परिणाम स्वरूप वह दैनिक ट्रिब्यून से विश्वविद्यालय पहुंचे और अब विश्वविद्यालय के अध्यापन के साथ ही महामहिम राज्यपाल के सलाहकार भी हो गये हैं और राज्यपाल आचार्य डा0 देवव्रत स्वयं भी एक विद्वान चिन्तक है और उन्होनेे बहुत सारे सामाजिक कार्य भी अपनी जीवन शैली का हिस्सा बना रखे है। ऐसे में राजभवन के दायित्वों के निर्वहन के साथ ही सामाजिक कार्यों को भी बराबर चलाये रखने के लिये उन्हें कुछ सहयोगीयों और सलाहकारों की आवश्यकता रहेगी ही। संभवतः इसी मनोधारणा को अंजाम देने के लिये ही उन्होने पहले कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रौफैसर डा0 राजेन्द्र सिंह को बतौर ओएसडी राजभवन में तैनाती दी और अब उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए डा0 शशीकांत को अपना सलाहकार बनाकर लाये हैं। यह शायद इसलिये आवश्यक हुआ होगा क्योंकि डा0 राजेन्द्र सिंह अपना पूरा समय राजभवन को नहीं दे पा रहें है।
राजभवन की यह नियुक्तियां अपने में एक प्रशंसनीय कदम है। फिर डा0 शशीकांत प्रदेश की राजनीति से भली प्रकार से परिचित हैं। डा0 आचार्य देवव्रत प्रदेश के राज्यपाल केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद आये हैं और प्रदेश में पदभार संभालने के बाद यहां पर सत्तारूढ़ कांग्रेस तथा मुख्य विपक्षी दल भाजपा में कैसे राजनीतिक रिश्ते हैं यह पूरी तरह खुलकर सामने आ चुका है। इतना ही नहीं मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल के बीच रिश्तों का मुकाम यहां तक पहुुंच गया कि वीरभद्र अपने खिलाफ चल रहे मामलों को सीधे धूमल, जेटली और अनुराग का षडयंत्र करार दे चुके हैं बल्कि स्पोर्टस बिल को लेकर वीरभद्र राजभवन की भूमिका पर भी अपनी नाराजगी जग जाहिर कर चुके हैं। राजनीतिक रिश्तों के इस परिदृश्य में यह डा0 शशीकांत ही थे जिन्होने वीरभद्र-धूमल और विक्रमादित्य को एक टेबल पर बिठाया। भले ही डा0 शशीकांत की इस भूमिका को लेकर सभी हल्कों में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं उस समय रही है। आज भी डा0 शशीकांत उसी भूमिका को महामहिम राज्यपाल, मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल के बीच निभा पाते है या नहीं। क्योंकि इस नये पद पर उनका चयन इन तीनों की सहमति के बिना संभव नही हो सकता। इसलिये डा0 शशीकांत इस नयी भूमिका में कैसे उतरते हैं और यहां से कुलपति तथा राज्यसभा तक का सफर तय कर पाते हैं या नहीं यह सब आने वाले समय मे स्पष्ट हो जायेगा।
लेकिन इस नियुक्ति से जो अन्य सवाल उभरे हैं वह बहुत महत्वपूर्ण है। डा0 शशीकांत की नियुक्ति की फाईल सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग से अनुमोदित होकर राजभवन पहुंची है। सामान्य प्रशासन स्वयं मुख्यमन्त्री देख रहे हैं। ऐसे में पहला सवाल यह आता है कि क्या सरकार बिना वेतन के नियुक्ति पत्र दे सकती है? क्योंकि सांकेतिक रूप से एक रूपया वेतन तो हो सकता है या फिर एक पद के साथ दूसरे पद का अतिरिक्त दायित्व कानून की नजर में भी सवाल उठायेगा क्योंकि राज्यपाल, मुख्यमन्त्री या किसी भी मन्त्री का अवैतनिक सलाहकार होने के लिये दर्जनों लोग सामने आ सकते हैं फिर अवैतनिक दायित्व निभाते हुए प्रशासनिक गोपनीयता का निर्वहन कैसे और कितना अपेक्षित व संभव हो सकता है यह दूसरा बड़ा सवाल होगा।
इसी के साथ तीसरा सवाल यह है कि संविधान में राज्यपाल के लिये "To aid and advise" पूरा मन्त्रीमण्डल है। जब राज्य में राष्ट्रपति शासन की सूरत में मन्त्रीमण्डल नही रहता है तब वरिष्ठतम प्रशासनिक अधिकारियों को राज्यपाल का सलाहकार नियुक्त किया जाता है। क्योंकि सलाहकार और ओएसडी के पदनामो में भी भारी प्रशासनिक अन्तर रहता है। ऐसे में क्या राजभवन और राज्यपाल को मन्त्रीमण्डल और पूरे प्रशासनिक तन्त्र की सलाह पर भरोसा नहीं रहा है जिसके कारण राज्यपाल को अलग से मन्त्रीमण्डल के समानन्तर सलाहकार की आवश्यकता आ खड़ी हुई है। राज्यपाल का सलाहकार होने का बड़ा व्यापक अर्थ है क्योंकि संविधान के अनुसार राज्यपाल ही सरकार को ‘‘मेरी सरकार’’ कह कर संबोधित कर सकता है दूसरा कोई नही। ऐसे में राज्यपाल का सलाहकार पूरे मन्त्रीमण्डल और प्रशासनिक तन्त्र का समानन्तर बन जाता है।