मोदी भी कर गये भ्रष्टाचार पर राजनीति

Created on Monday, 01 May 2017 08:47
Written by Shail Samachar

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिमला में भाजपा द्वारा आयोजित परिवर्तन रैली को संबोधित करते हुए प्रदेश के मुख्यमन्त्री का नाम लिये बगैर कहा कि जिन्होने इतने समय तक प्रदेश का शासन चलाया है आज उनका अधिकांश समय वकीलों से सलाह लेने में ही गुजर रहा है। मोदी के सहयोगी मन्त्री नड्डा ने भी नाम लिये बगैर ही वीरभद्र पर निशाना साधा। वीरभद्र अपने खिलाफ चल रही जांच के लिये वित्त मन्त्री अरूण जेटली का नाम लेकर उन पर षडयंत्र का आरोप लगा चुके हैं। उनका आरोप है कि केन्द्र सरकार जांच एजैन्सीयों का अपने विरोधियों के खिलाफ दुरूपयोग कर रही है। केन्द्र में जब कांग्रेस नीत यूपीए सरकार थी तब सीबीआई को देश के सुप्रीम कोर्ट ने पिंजरे का तोता कहा था। आज भाजपा नीत एनडीए सरकार है और जांच ऐजैन्सीयां वही हैं। आज भी दुरूपयोग का आरोप लग रहा है। अन्तर केवल इतना भर है कि आरोप लगाने वाले बदल गये हैं। हर सरकार यह दोहराती है कि भ्रष्टाचार कतई बर्दाश्त नही किया जायेगा। मोदी सरकार भी यह परम्परा निभा रही है।
मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ वर्ष 2013 से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की याचिका के परिणाम स्वरूप जांच चल रही है जो अभी तक पूरी नही हुई है। इस जांच को पूरा होने में कितना समय लगेगा यह कहना संभव नही है। लेकिन इतना स्पष्ट है कि जब तक यह जांच पूरी नही होे जाती हैं इसका पूरा-पूरा राजनीतिक लाभ उठाया जायेगा। लेकिन क्या प्रधानमन्त्री के स्तर पर भी ऐसा किया जाना चाहिए? क्योंकि इस मामले में जांच ऐजैन्सीयां केन्द्र सरकार की हैं उनके ऊपर सरकार का प्रशासनिक नियन्त्रण है। ऐसे में किसी भी मामले में जांच को प्रभावित किये बिना क्या उसकी जांच एक तय समय सीमा के भीतर नही हो जानी चाहिए? क्या एक जांच को सालों तक चलाये रखा जाना चाहिये? जब ऐसा होता है तब उसके साथ राजनीति जुड़ जाती है। सत्ता संभालते ही प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने यह ऐलान किया था कि ‘‘न खाऊंगा और न ही खाने दूंगा’’ लेकिन पिछले दिनों अरूणांचल के पूर्व मुख्यमन्त्री स्व.काली खो पुल्ल का जो पत्र मरणोपरान्त सार्वजनिक हुआ है क्या उसमें लिखे गये तथ्यों पर जांच नही होनी चाहिए थी और इसका जिम्मा मोदी सरकार पर नहीं आता है। इस पत्र के बाद मोदी के अपने सहयोगी केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जे.पी. नड्डा को लेकर रामबहादुर राय के यथावत में कई गंभीर आरोप लग चुके है। एम्ज़ की जमीन के मामलें में हजारों करोड़ के घपले के आरोप लग चुके हैं। रामबहादुर राय संघ में भी एक बड़ा नाम है। परन्तु नड्डा पर लगे आरोपों को लेकर न तो मोदी की सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया आयी है और न ही स्वयं नड्डा ने इसका कोई खण्डन किया है या ‘‘यथावत’’ को मानहानि का नोटिस ही दिया है।
इसलिये जब प्रधानमन्त्राी नरेन्द्र मोदी जैसा व्यक्ति वीरभद्र पर नाम लिये बगैर हमला करता है तो स्वाभाविक रूप से उसमें राजनीति की ही गंध आयेगी। प्रधानमन्त्री के स्तर से तो परिणाम आने चाहिए और खास तौर पर तब जब स्वयं केन्द्र की जांच ऐजैन्सीयों की कार्यशैली का मामला हो। क्योंकि इस मामलों में ईडी की जो कार्यशैली अब तक सामने आ रही है उससे ऐजैन्सी की निष्पक्षता पर ही सवाल उठने शुरू हो गये हैं। जांच ऐजैन्सी के स्तर पर संबद्ध मामले की जांच को एक निश्चित समय सीमा के भीतर जांच पूरी करके चालान अदालत तक पहुंचाना होता है। परन्तु इस मामले में जांच को जिस तरह से लम्बा किया जा रहा है उससे यह संकेत उभरने शुरू हो गये हैं कि इस मामले में जांच परिणाम से ज्यादा राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास हो रहा है। वैसे भी भ्रष्टाचार को लेकर प्रदेश में भाजपा का आचरण कुछ अलग ही रहा है। भाजपा ने बतौर विपक्ष 2003 से 2007 के कार्यकाल में जो आरोप पत्र कांग्रेस सरकार के खिलाफ सौंपे थे उन पर सत्ता में आने के बाद कोई कारवाई नही हुई है। उन आरोप पत्रों पर भी कवेल राजनीति ही हुई थी जो अब वीरभद्र के मामले में हो रही है।