पिछले दिनों मनीपुर, गोवा, उत्तराखण्ड, पंजाब और उत्तर प्रदेश की विधानसभाओं के चुनाव संपन्न हुए है। इन राज्यों में पंजाब को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में भाजपा की सरकारें बनी है। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को मिली करारी हार पर मायावती ने इसके लिये वोटिंग मशीनों की विश्वनीयता पर सवाल उठाते हुए इनमें मैनुपुलेशन होने का आरोप लगाया है। मायावती की पार्टी ने इस आश्य की सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर कर दी है। मायावती के बाद आम आदमी पार्टी ने भी इसी तरह का आरोप लगाया है और चुनाव आयोग के पास अपना
प्रतिवेदन दायर किया है। इसी बीच मध्यप्रदेश के भिण्ड में एक विधानसभा चुनाव के लिये ईवीएम मशीन का एक अधिकारिक परीक्षण किया गया और इसमें यह सन्देह और पुख्ता हो गया कि मशीन में मैनुपुलेशन की जा सकती है। भिण्ड का मुद्दा राज्यसभा में उठा है। लेकिन इस पर नियम 267 के तहत चर्चा की अनुमति नहीं दी गयी। राज्यसभा में यह मुद्दा मध्यप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने उठाया था। ईवीएम मशीन पर मैनुपुलेशन की संभावना के सवाल उठना लोकतन्त्र के लिये बहुत घातक हो सकता है। यह मामला इस समय सर्वोच्च न्यायालय के पास लंबित है। इसलिये इस पर अदालत के फैसलें का इन्तजार करना आवश्यक है।
ईवीएम मशीन पहली बार 1982 में प्रयोग के तौर पर चुनाव आयोग ने इस्तेमाल की थी उस समय इसकी वैधानिकता पर सवाल उठे और इसके लिए जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 में संशोधन कर धारा 61 A जोड़ी गयी इसी के साथ एक चुनाव सुधार कमेटी का आयोग ने गठन किया। इस विशेषज्ञ कमेटी ने अप्रैल 1990 में अपनी सिफारिशें आयोग को दी। इसके बाद वर्ष 2000 से इसका प्रयोग राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों और लोकसभा के 2004, 2009, और 2014 के आम चुनावों में हुआ है। लेकिन हर बार इस पर स्वाल भी उठते रहे हैं। 2001 में मद्रास उच्च न्यायालय, 2002 में केरल उच्च न्यायालय और 2004 में मुंबई, दिल्ली और कर्नाटक उच्च न्यायालय में इस संद्धर्भ में याचिकाएं आयी है। इसके बाद जुलाई 2011 में सर्वोच्च न्यायालय में राजेन्द्र सत्यनारायण गिल्डा की जनहित याचिका आयी और शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को इसेs Modify करने के निर्देश दिये। इसके बाद जनवरी 2012 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने डा. सुब्रहमन्यमस्वामी की 2009 की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि "EVM & are temper proof" डा.स्वामी इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में चले गये। इस पर चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि VVPAT सिस्टम को लेकर ट्रायल चल रहा है और इसकी स्टे्टस रिर्पोट जनवरी 2013 में अदालत मे पेश की जायेगी। इस पर अक्तूबर 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला देते हुए कहा कि Election Commission of India will use VVPAT alongwith EVMS in a phased manner and the full completion should be achieved by 2019 इस परिदृष्य मे यह स्पष्ट हो जाता है कि ईवीएम मशीन की विश्वसनीयता पर पहले ही दिन से सवाल उठते आ रहे हैं। अदालतों ने भी हर बार इसमें सुधार की संभावनाओं को मानते हुए इसमें VVPAT सिस्टम लागू करने के निर्देश दिये है।
VVPAT सिस्टम में मशीन पर बटन दबाने के साथ ही उसकी कागज पर प्रिन्ट रिपोर्ट भी आ जायेगी और उससे वोट डालने वाले व्यक्ति को पता चल जायेगा कि जिसके लिये उसने बटन दबाया था उसी के पक्ष मे उसका वोट पड़ा है। इस सिस्टम से विश्वसनीयता पर उठने वाले सवालों को विराम मिल जायेगा। लेकिन चुनाव आयोग को इसके लिये 3174 करोड़ रूपये की आवश्यकता है चुनाव आयोग ने शीर्ष अदालत से यह कहा है कि जब सरकार यह पैसा दे देगी तो उसके बाद तीस माह के अन्दर ही इस सिस्टम को सभी जगह लागू कर पायेगा। इस समय आयोग के पास 53500 मशीने इस VVPAT सिस्टम से लैस है। अभी तक 255 विधानसभा क्षेत्रों और नौ संसदीय क्षेत्रों मेें इन मशीनों का उपयोग किया जा चुका है। आज पंजाब के चुनावों को लेकर आम आदमी पार्टी ने सवाल उठाये है। पंजाब में 117 और उत्तराखण्ड में 70 विधानसभा सीटें है। ऐसे में चुनाव आयोग इन राज्यों में बड़ी सहजता से इन VVPAT सिस्टम मशीनों का उपयोग कर सकता था क्योंकि वह 255 विधानसभा क्षेत्रों में पहले ही इनका उपयोग कर चुका है। ऐसे में आने वाले समय में जब गुजरात और हिमाचल विधानसभा के चूनाव आयेंगे तब इन राज्यों में इन मशीनों का उपयोग करके विश्वसनीयता पर उठने वाले सवालों को विराम मिल सकेगा। क्योंकि इस समय भापजा ने देश को कांग्रेस मुक्त करने का जो राजनीतिक अभियान छेड़ रखा है उसमें इस तरह के आरोप लगना स्वाभाविक है। इसमें केन्द्र सरकार को भी अपनी विश्वनीयता बनाये रखने के लिये चुनाव आयोग को इतना धन देना ही होगा। यदि अभी इतने धन का प्रावधान नही किया जाता है तो 2019 के चुनावों में भी इस सिस्टम का लागू हो पाना संदिग्ध हो जायेगा और सरकार की नीयत पर सवाल उठेंगे जो देशहित में नही होंगे।