बलदेव शर्मा
अभी हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद चार राज्यों में भाजपा और एक राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी है। इस जनादेश को लेकर जो भी पूर्वानुमान लगाये जा रहे थे वह गलत सिद्ध नहीं हुए हैं। क्योंकि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जो बहुमत भाजपा को मिला है शायद इसकी उम्मीद भाजपा को भी नही रही होगी। यहां सपा और कांग्रेस के गठबन्धन को 50.5% वोट मिले हैं। कांग्रेस को 22.5%और सपा को 28% जबकि भाजपा को 41%। लेकिन भाजपा 41% वोट लेकर 325 सीटें जीत गयी और सपा कांग्रेस 50.50% वोट लेकर भी 50 के आंकडे़ को नहीं छू पायी। उत्तराखण्ड और गोवा में मुख्यमन्त्री तक हार गये। पंजाब और गोवा में आम आदमी पार्टी
की हार ने आप के राजनीतिक विकल्प होने की सारी सभांवनाओं को लम्बे समय तक के लिये अनिश्चिता के गर्व में डाल दिया है। इस परिप्रेक्ष में यह जनादेश देश के राजनीतिक भविष्य की दिशा दशा तय करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा यह तय है। इसलिये इस जनादेश का विश्लेषण करने के लिये राजनीतिक पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर विचार करना आवश्यक होगा।
जो जनादेश आज आया है इसके बीज अन्ना आन्दोलन में बोये गये थे जिनकी पहली फसल लोकसभा चुनाव परिणामों के रूप में सामने और दूसरी अब। अन्ना आन्दोलन का मुख्य बिन्दु था भ्रष्टाचार समाप्त करना और इसके लिये व्यवस्था परिवर्तन को इसका साधन बताया गया। लेकिन जब व्यवस्था परिवर्तन के लिये राजनीतिक मंच के गठन करने की बात उठी तो पूरा अन्ना आन्दोलन विखर गया। आन्दोलन के संचालको और आयोजकों में उभरे मतभदों से खिन्न होकर अन्ना ने ममता के सहारे अलग मंच का जो प्रयास किया वह शक्ल लेने से पहले ही ध्वस्त हो गया। अन्ना की यह असफलता स्वभाविक थी या प्रायोजित यह प्रश्न आज तक अनुतरित है। लेकिन इस आन्दोलन का बड़ा फल मोदी और भाजपा को मिल गया तथा छोटा फल केजरीवाल को। मोदी और भाजपा के पास संघ परिवार की वैचारिक जमीन थी। केन्द्र में सरकार बनने के बाद इस जमीन की ऊवर्श शक्ति को और बढ़ाने के लिये मोदी के मन्त्रीयों ने अपने भाषणों में अपनी सोच का खूलकर प्रचार जारी रखा। भले ही मोदी ने राजधर्म निभाते हुए अपने मन्त्रीयों को संयम बरतने की सलाह दी। लेकिन इस सलाह का संज्ञान लेने की बजाये यह लोग अपने कर्म में लगे रहे और इस कर्म का परिणाम उत्तर प्रदेश के जनादेश के रूप में सामने है। संघ परिवार की वैचारिक सोच स्पष्ट है वह भारत को हिन्दु राष्ट्र देखना और बनाना चाहते हैं। इसका माध्यम सता होता है और सता उसको मिल गयी है। हिन्दु राष्ट्र की अवाधारणा देश की वर्तमान परिस्थितियों में कितनी प्रसांगिक और वांच्छित हो सकती है उसके लिये संघ की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विचारधारा को समझना आवश्यक होगा। इस विचारधारा को समझे बिना इस पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि यह स्वीकार्य है या नही। संघ और भाजपा अपने ऐजैन्डा को लेकर पूरी तरह स्पष्ट है और उसपर उनका काम जारी है क्योंकि उनको यह अवसर देश की जनता ने अपने प्रचण्ड जनादेश के माध्यम से दिया है।
दूसरी ओर कांग्रेस के पास जो वैचारिक धरोहर थी उस पर भ्रष्टाचार की दीमक इतनी हावि हो गयी है कि भ्रष्टाचार कांग्रेस के संगठन से बड़ा होकर देश की जनता के सामने है। कांग्रेस शासन पर राज्यों से लेकर केन्द्र तक भ्रष्टाचार के जो आरोप लगे हैं उनका इतना प्रचार प्रयास हो चुका है कि कांग्रेस अब भ्रष्टाचार का पर्याय मानी जा रही है। कांग्रेस नेतृत्व इतना कमजोर और लाचार हो गया है कि भ्रष्टाचार के एक भी आरोपी के खिलाफ संगठन के स्तर पर कभी कोई कारवाई नहीं हो पायी है। सारे आरोपों और आरोपीयों को अदालत के सिर पर छोड़ दिया जाता है और अदालतों से ऐसे मामलों पर दशकों तक फैसले नही आते हैं। लेकिन जब एक सीमा के बाद यह आरोप जन चर्चा का रूप ले लेते हैं तो उसका परिणाम यह चुनाव नतीजे बनते हैं। कांग्रेस जब तक संगठन के स्तर पर अपने भीतर फैले भष्टाचार से लड़ने का फैसला नही लेगी तब तक उसका उभरना संभव नही होगा।
आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार अन्ना आन्दोलन का प्रतिफल है। लेकिन आज पंजाब और गोवा की हार संगठन और दिल्ली सरकार का प्रतिफल है। संगठन के स्तर पर आम आदमी पार्टी अभी तक राज्यों में अपनी ईकाईयां स्थापित नही कर पायी है। क्योंकि विचारधारा के नाम पर आप कुछ सामने नही ला पायी है। स्वराज की जो कार्यशैली परिभाषित की जा रही है वह एक स्वतन्त्र राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक चिन्तन का स्तर नही ले पा रही है। भ्रष्टचार के खिलाफ लड़ना और भ्रष्टाचार के वैचारिक धरातल पर चोट करना दो अलग-अलग विषय हैं। आज भाजपा और संघ का विकल्प होने के लिये उसी के बराबर विचारधारा को बहस में लाना होगा और इस बहस के लिये एक स्वस्थ विचारधारा तैयार करनी होगी। क्योंकि यह देश वाम विचारधारा को आज तक स्वीकार नही कर पाया है। बल्कि यह कहना ज्यादा प्रसांगिक होगा कि यदि वामपंथी विचारधारा चर्चा के लिये उपलब्ध न होगी तो शायद दक्षिण पंथी विचारधारा आज सता के इस मुकाम तक न पहुंच पाती।