कालीखोपुल के नोट पर चुप्पी क्यों

Created on Tuesday, 28 February 2017 11:05
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। अरूणाचल के स्वर्गीय मुख्यमन्त्री कालीखो पुल ने 9 अगस्त 2016 को आत्महत्या कर ली थी। उनकी आत्महत्या के बाद उनके आवास से एक 60 पन्नों का नोट बरामद हुआ है। इस नोट के हर पन्ने पर उनके हस्ताक्षर हैं। नोट के अन्तिम पृष्ठ पर 9 अगस्त को हस्ताक्षर हुए कालीखोपुल के नोट पर चुप्पी क्यों और उसी दिन पुल्ल ने आत्महत्या की है। इसलिये उनके इस नोट को Dying declaration करार दिया जा सकता है और उनके इस ब्यान को हल्के से नज़रअन्दाज नही किया जा सकता। कालीखो पुल को सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश के तहत मुख्यमन्त्री पद से हटाया गया था। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने अरूणाचल से राष्ट्रपति शासन निरस्त किया गया था। कालीखो पुल सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से इस कदर आहत हुए कि न्यायपालिका और राजनीति तथा राजनेताओं के प्रति उनकी सारी धारणा ही बदल गयी। इस धारणा के बदलने के कारण उन्होने इस फैसले की कोई अपील दलील करने की बजाये प्रदेश और देश की जनता के सामने इस सारी वस्तु स्थिति को रखने का फैसला लिया। 60 पन्नों का विस्तृत पत्र लिखा। हर पन्ने पर हस्ताक्षर किये और उसके बाद अपना जीवन समाप्त कर दिया।
इस नोट में देश की शीर्ष न्यायपालिका से लेकर विधायकों/मन्त्रियों और राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप है। कालीखो पुल की आत्महत्या के बाद जब यह नोट बरामद हुआ और सार्वजनिक हुआ तब इस नोट पर अपनी प्रतिक्रिया में अरूणाचल के राज्यपाल राज खोवा ने इन आरोपों को गंभीर बताते हुए इसकी सीबीआई से जांच करवाये जाने की वकालत की थी। लेकिन राज्य सरकार ने ऐसा नही किया। केन्द्र सरकार और उसकी ऐजैन्सीयां भी इस बारे में खामोश रही। राज्यपाल राज खोवा ने जब इसकी सीबीआई जांच पर ज्यादा बल दिया तो केन्द्र सरकार ने राज्यपाल राज खोवा को ही हटा दिया। इस नोट में एक  मुख्यमन्त्री ने मरने से पहले जो गंभीर आरोप लगाये हैं उन्हें क्यों नज़रअन्दाज किया जा रहा है? भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी इस नोट पर क्यों चुप है? देश का कोई भी राजनीतिक दल एक मुख्यमन्त्री के इस आत्मकथ्य पर चुप क्यों है? मीडिया भी इस पर कोई सार्वजनिक बहस क्यों नही उठा रहा है?
कालीखो पुल मुख्यमन्त्री थे और इससे पहले कई सरकारों में मन्त्री रह चुके है यह उन्होने अपने नोट में कहा है। वह कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे। कांग्रेस के कई लोगों पर उन्होने गंभीर आरोप लगाये है। लेकिन न्यायपालिका से लेकर नीचे तक जितने भी लोगों पर आरोप लगे है। वह सब इस पर खामोश क्यों है? खो का यह नोट सरकार की कार्य प्रणाली का एक आईना है। सरकारी कामकाज सब जगह एक ही जैसा है। हर राज्य में एक ही तरह की योजनाएं होती है। केन्द्र सरकार की योजनाएं भी हर राज्य के लिये एक ही जैसी रहती है। ऐसे में सरकार के कार्यक्रमों को लागू करने में सरकारी तन्त्र कैसे काम करता है उसमें कितना जनता तक पहुंचता है और कितना बीच में ही खत्म हो जाता है इसका खुलासा पुल के इस नोट में विस्तार से है। कैसे विधायक और मन्त्री बनने के बाद हमारे राजनेता एकदम अमीर बन जाते है। इस ओर पुल्ल ने ध्यान आकर्षित किया है। स्व. पुल ने अपने पत्र में सबसे बड़ा सवाल यह उठाया है कि जब कानून की किताब नही बदलती है तो फिर उस पर आधारित फैसले बार-बार क्यों बदल जाते हैं? स्व. कालीखो पुल के नोट में सर्वोच्च न्यायपालिका और देश के सर्वोच्च शासन पर गंभीर आरोप लगे हैं। स्वाभाविक है कि जब पुल्ल इस भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ने का साहस नहीं जुटा पाये तो फिर उनके परिजन कैसे इस लड़ाई को जारी रख पायेंगे? ऐसे में देश के प्रत्येक ईमानदार संवदेनशील नागरिक को इस नोट में उठाये गये सवालों को सार्वजनिक बहस का मुद्दा बनाना होगा। पुल के उठाये गये आरोपों पर सर्वोच्च न्यायालय के शीर्ष पांच न्यायधीशों की देखरेख में एक एसआईटी गठित करके इन आरोपों की जांच की जानी चाहिये। प्रधानमन्त्री मोदी के लिये भी यह नोट एक परीक्षा पत्र है और इस पर उन्हे देश के सामने पास होकर दिखाना होगा। इस उम्मीद के साथ मैं इस पत्र को अपने पाठकांे के सामने रख रहा हूं