कहां तक जायेगा वीरभद्र और संगठन का टकराव

Created on Tuesday, 28 February 2017 10:09
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। 2012 के विधानसभा चुनावों से पूर्व कांग्रेस ने धूमल सरकार के खिलाफ एक विस्तृत आरोप पत्र
महामहिम राष्ट्रपति को दिल्ली में सौंपा था। इस आरोप पत्र के बाद चुनावों के दौरान कांग्रेस ने चुनाव घोषणा पत्र जारी किया था। सरकार बनने के बाद आरोप पत्र की जांच और घोषणा पत्र के वायदों को पूरा करने की जिम्मेदारी सरकार की थी। आरोप पत्र में सबसे बड़ा आरोप ‘हिमाचल आॅन सेल’ का था। सरकार बनने के बाद यह आरोप पत्र जांच के लिये विजिलैन्स को सौंप दिया गया। लेकिन विजिलैन्स ने अब तक जितने भी मुद्दों पर जांच की है उनमें एक भी मामलें में उसे सफलता नही मिली है। बल्कि विजिलैन्स की सारी जांच एचपीसीए के गिर्द ही केन्द्रित होकर रह गयी है। एचपीसीए पर ही ज्यादा ध्यान केन्द्रित होने पर जब संगठन और सरकार के कुछ वर्गो में सवाल उठे तब वीरभद्र ने आरोप पत्र से यह कहकर किनारा कर लिया था कि वह आरोप पत्र तैयार करने वाली कमेटी के सदस्य ही नहीं थे। कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में एक सबसे बड़ा वायदा था प्रदेश के बेरोजगार युवाओं को प्रतिमाह एक हजार रूपये का बेरोगारी भत्ता देना। वीरभद्र इस वायदे को भी पूरा नही कर पाये है। इन दिनों यह बेरोजगारी भत्ता सरकार और संगठन में फिर मुद्दा बनकर उछल गया है। परिवहन मन्त्री जीएस बाली द्वारा यह मुद्दा उठाया गया है। स्मरणीय है कि बाली ने धूमल शासन के दौरान भी इस मुद्दे पर एक पद्यात्रा निकाली थी और अब फिर युवाओं का एक सम्मेलन बुलाने जा रहें हैं। प्रदेश के विभिन्न रोजगार कार्यालयों में दर्ज आंकड़ो के मुताबिक बेरोजगार युवाओं की संख्या दस लाख से भी ऊपर है। बाली की ही तर्ज पर राज्यसभा सांसद विप्लव ठाकुर ने भी इस मुद्दे पर अपनी चिन्ता मुखर की है। लेकिन वीरभद्र ने बेरोजगारी भत्ता देने के मुद्दे पर यू टर्न ले लिया है। वीरभद्र यहां तक कह गये हैं कि वह चुनाव घोषणा पत्र तैयार करने वाली कमेटी के सदस्य ही नही थे और वह इस वायदे को मानते ही नही है।
यह सही है कि आरोप पत्र तैयार करने वाली कमेटी के अध्यक्ष जीएस बाली थे और घोषणा पत्र कमेटी के अध्यक्ष आनन्द शर्मा थे। लेकिन जब आरोप पत्र सौंपा गया था तब वीरभद्र साथ थे और जब घोषण पत्र जारी किया गया था तब भी वह इसमें शामिल थे। लेकिन दोनों ही मामलों पर वीरभद्र ने जिस तरह से अपने आप को संगठन से अलग कर लिया है वह राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में एक अलग चर्चा का विषय बन गया है। संभवतः इसी कारण आनन्द शर्मा को भी एक पत्राकार वार्ता करके बेरोजगारी भत्ते पर अपना पक्ष रखना पड़ा है। लेकिन आनन्द शर्मा पूरी स्पष्टता के साथ न तो इसके पक्ष में और न ही इसके विरोध में खड़े हो पाये है। उन्होने इस पर केवल वीरभद्र से बात करने की बात की है। वह भी चुनाव घोषणा पत्र के वायदों पर हुए अमल को लेकर एक समीक्षा बैठक के दौरान। चुनावी घोषणा पत्र और उसके बाद अब तक के कार्यकाल में हुई विभिन्न घोषणाओं पर कितना अमल हुआ है इसको लेकर एक बैठक की जायेगी। जो वायदे/घोषणाएं पूरी नही हो पायी है उन पर संगठन और सरकार का रूख क्या होगा इसको लेकर कुछ नही कहा जा रहा है। क्योंकि वीरभद्र जिस तरह की कार्यशैली से काम कर रहे है उससे स्पष्ट हो जाता हैं कि इस समय सरकार के साथ -साथ वीरभद्र संगठन का भी पर्याय बनते जा रहें है।
वीरभद्र ने संगठन में हुई विभिन्न नियुक्तियों को लेकर कई बार यह स्पष्ट कर दिया है कि वह इन नियुक्तियों को कोई ज्यादा अधिमान नही देते है। जिलाध्यक्षों और ब्लाॅक अध्यक्षों को लेकर जो टिप्पणी अभी हाल ही में वीरभद्र सिंह ने की है उस पर आनन्द शर्मा का यह कहना कि इसमें भविष्य में सुधार करने की आवश्यकता है अपने में एक महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया है। आनन्द शर्मा ने वीरभद्र के संगठन के प्रति इस तरह के रिमार्कस पर कोई सीधा स्टैण्ड नही लिया है। बल्कि एक तरह से वीरभद्र का समर्थन ही किया है इसी के साथ आनन्द शर्मा ने अब तक वीरभद्र सरकार की सफलताओं/असफलताओं पर भी खुलकर कोई प्रतिक्रिया वयक्त नही की है। लेकिन कभी प्रदेश अध्यक्ष का खुलकर समर्थन भी नही किया है। वीरभद्र संगठन के काम काज से संतुष्ट नही है ऐसे संकेत वह कई बार दे चुकें है। इस चुनावी वर्ष में उनका यह प्रयास रहेगा कि संगठन की बागडोर भी उनके किसी विश्वस्त के हाथ ही रहे। इस दिशा में वह कई बार प्रयास कर भी चुके हंै। लेकिन उन्हे सफलता नही मिली है। अब आनन्द शर्मा ने अपरोक्ष में एक बार फिर वीरभद्र का समर्थन ही किया है। आनन्द केन्द्र में वरिष्ठ मंत्री रह चुके है और इस समय राज्य सभा में पार्टी के उपनेता है। इस नाते हाईकमान के विश्वस्त भी है। वीरभद्र के नाम से जब उनके समर्थकों ने ब्रिगेड का गठन कर लिया था। (जिसे बाद में भंग कर दिया गया था ) उस मुद्दे पर आनन्द ही ऐसे बडे नेता है जिनकी इस पर कोई प्रतिक्रिया नही आयी थी। अब यह बिगे्रड एक एनजीओ बन गया है और इसके अध्यक्ष ने सुक्खु के खिलाफ मानहानि का मामला दायर कर रखा है। लेकिन कांग्रेस का एक भी बड़ा नेता इस पर कुछ भी नही बोल पा रहा है। जबकि यह एनजीओ राजनीतिक संगठन की तर्ज पर ही सक्रिय है। कांग्रेस सरकार और संगठन में एक समय कौल सिंह, जीएस बाली, आशा कुमारी, राकेश कालिया और राजेश धर्माणी ने विरोध के स्वर मुखर करने का प्रयास किया था लेकिन आज जीएस बाली को छोड़कर बाकी सभी खामोश होकर बैठ चुके है। इस समय वीरभद्र सरकार और संगठन का पर्याय बनते जा रहे है क्योंकि आरोप पत्र और घोषणा पत्र से जिस लहजे में उन्होने किनारा किया है और संगठन की नियुक्तियों को स्पष्ट शब्दों में अप्रसांगिक करार दिया है उससे यह स्पष्ट हो जाता है। ऐसे में विपक्ष भी सबसे अधिक वीरभद्र को ही अपने निशाने पर रखेगा। विपक्ष का मुकाबला भी वीरभद्र को अकेले अपने ही दम पर करना पडे़गा। संगठन और सरकार में इस परिस्थिति में कौन वीरभद्र का कारगर सहारा बनेगा इसको लेकर कोई तस्वीर अब तक साफ नही है और वीरभद्र के लिये आने वाले समय में यह एक बड़ी चुनौति होगा।