आऊट सोर्स-लाखों बेरोजगारों के साथ अन्याय की तैयारी

Created on Tuesday, 21 February 2017 06:46
Written by Shail Samachar

शिमला/बलदेव शर्मा।
वीरभद्र ने आऊट सोर्स कर्मचारियों के लिये नीति बनाने की घोषणा की है। इस घोषणा के लिये तर्क दिया है कि आऊट सोर्स के माध्यम से करीब 35000 कर्मचारी सरकार के विभिन्न अदारों में तैनात है और इनके भविष्य को देखते हुए इसके लिये कोई नीति बनाई जाना आवश्यक है वीरभद्र की घोषणा पर पूर्व मुख्यमंत्री नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल ने अपनी प्रतिक्रिया जारी की है। धमूल ने कहा है कि वीरभद्र यह नीति लाने के प्रति गंभीर नही हैं वह केवल इन कर्मचारियों से छलकर रहें है। धूमल ने दावा किया है कि उनकी सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में इस आश्य की कमेटी बनाई थी जिसे वीरभद्र ने आकर भंग कर दिया है। धूमल की प्रतिक्रिया से स्पष्ट हो जाता है कि उनके शासनकाल में भी आऊटसोर्स के माध्यम से सरकारी अदारों में कर्मचारी रखे गये थे और आज वीरभद्र शासन में भी यह प्रथा जारी है।
हिमाचल में सरकार ही रोजगार का मुख्य साधन है क्योंकि प्रदेश के निजिक्षेत्र में पंजीकृत 40 हजार छोटी बड़ी उद्योग ईकाइयों में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या केवल 2,58000 तक ही पंहुच पायी है जबकि यह उद्योग विभिन्न पैकेजों के नाम पर कैग रिपोर्ट के मुताबिक पचास हजार करोड़ सरकार से डकार चुके हैं। सरकार में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या इससे दो गुणा से भी अधिक है। इसलिये सरकार ही रोजगार मुख्य केन्द्र है। हमारे राजनेता इस तथ्य को जानते है और इसके लिये अपने चेहतों को चोर दरवाजे से सरकारी नौकरी देने का प्रबन्ध हर बार करते आयेे हैं। चोर दरवाजे से नौकरियों का चलन शान्ता के पहले शासन काल में शिक्षा विभाग से शुरू हुआ था जब उन्होने वाल्टिंयर अध्यापक लगाये थे। यह लोग केवल मैट्रिक पास थे जिन्हे विभाग ने काफी समय बाद अपने खर्च पर कुछ को जेबीटी करवाई और कुछ को वैसे ही ट्रेण्ड होने का प्रमाण पत्र दे दिया गया था। तब से लेकर आज तक शिक्षा विभाग में अध्यापकों के विद्याउपासक आदि कई वर्ग कार्यरत हैं। 1993 से 1998 के बीच वीरभद्र शासनकाल में चिटों पर भर्तीयों का चलन शुरू हुआ। बिना किसी प्रक्रिया के सरकारी विभागों और निगमों बोर्डो में 23969 कर्मचारी भर्ती किये गये। 1998 में धूमल ने इस पर दो जांच कमेटियां बिठाई जिनकी रिपोर्ट में यह आकंडा सामने आया। उस समय शैल ने इस पर दो जांच कमेटीयों की पूरी रिपोर्ट अपने पाठकों के सामने रखी थी उसके बाद यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में भी पहुंचा था और उच्च न्यायालय ने इसका गंभीर संज्ञान लिया और एफआईआर दर्ज हुई। लेकिन बाद में विजिलैन्स ने राजनीतिक दवाब के आगे घुटने टेक दिये। उच्च न्यायालय ने भी विजिलैन्स से कोई रिपोर्ट लेने का प्रयास नही किया।
अब फिर उसी तर्ज पर आऊट सोर्स के तहत रखे गए 35 हजार कर्मचारियों के लिये नीति लायी जा रही है। कार्यपालिका में कर्मचारियों की भर्ती और उनके प्रोमोशन के लिये संविधान की धारा 309 नियम बने हुए हैं पूरा प्रावधान परिभाषित है। इन प्रावधानों की अवहेलना नही कि जा सकती। सरकार ने जो कन्ट्रैक्ट के आधार पर कर्मचारी रखें है उन्हे नियमित करने के लिये 9-9-2008 और 8-6-2009 को जो पाॅलिसी लायी गयी थी उसे प्रदेश उच्च न्यायालय अपने अप्रैल 2013 के फैसले में गैर कानूनी करार दे चुका है। कान्ट्रैक्ट पर की गयी भर्तीयों को चोर दरवाजे से की गयी नियुक्तियां करार दे चुका है। सर्वोच्च न्यायालय को नियमित के बराबर वेतन देने के भी आदेश किये है। सरकार इन आदेशों की अनुपालना नही कर पा रही है। अब आऊट सोर्स के माध्यम से रखे गये कर्मचारियो के लिये पाॅलिसी लाकर यह सरकार चिटों पर भर्ती से भी एक बड़ा कांड़ करने जा रही है। आऊट सोर्स कर्मचारियों के लियेे सरकार कोई नीति बना ही नही सकती है। क्योंकि यह कर्मचारी तो मूलतः ठेकेदार के कर्मचारी हैं और बिना किसी प्रक्रिया के रखे जाते हैं जो कि सविधान की धारा 14 और 16 का सीधा उल्लघंन है। लेकिन आऊट सोर्स के नाम पर कर्मचारी सप्लाई करने का काम कुछ प्रभावशाली नेता कर रहे हैं। आऊट सोर्स के नाम पर यह ठेकेदार प्रति कर्मचारी मोटा कमीशन खा रहे हैं जो कि अपने में ही एक बहुत बड़ा घोटाला है। अब वीरभद्र इन ठेकेदारों के दबाव के आगे प्रदेश के लाखों बेरोजगार युवाओं के साथ खिलवाड़ करने जा रहे हैं। लेकिन चुनावों को सामने रख कर एक भी राजनीतिक दल या राजनेता इस घोटाले का विरोध करने का साहस नही कर रहा है।